इतिहासइस्लाम धर्ममध्यकालीन भारत

भारतीय सभ्यता पर इस्लाम धर्म का प्रभाव

इस्लाम धर्म का परिचय – विश्व के प्राचीन धर्मों में इस्लाम धर्म का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके प्रवर्तक पैगम्बर मुहम्मद थे। उनका जन्म 570-71ई. के लगभग अरब प्रायद्वीप के मक्का नगर में हुआ। उनके पिता अब्दुल्ला तथा माता आमिना, कुरैंश नामक कबीले से संबंधित थे। मुहम्मद के बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया, जिससे उनका पालन-पोषण उनके चाचा अबू तालिब के द्वारा किया गया । उनका प्रारंभिक जीवन लौकिक सुख-सुविधाओं से वंचित रहा। बचपन में वे ऊँट तथा बकरियाँ चराया करते थे। बङे होने पर उन्होंने व्यापार करना प्रारंभ किया। वे अपनी ईमानदारी के लिये प्रसिद्ध थे। वे खदीजा नामक व्यापारिक महिला के संपर्क में आये जो आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न थी। कालांतर में मुहम्मद से उसने विवाह कर लिया। इस प्रकार अब वे एक समृद्ध सौदागर बन गये तथा लौकिक सुख-सुविधा की सारी वस्तुयें उन्हें सुलभ हो गयी।

किन्तु मुहम्मद का मन सांसारिक विषय भोगों में वास्तविक संतोष नहीं प्राप्त कर सका। वे धार्मिक चिन्तन की ओर प्रवृत्त हुए। मक्का के समीप हीरा की पहाङी गुफा में बैठकर वे ध्यान लगाते तथा अलौकिक सत्ता के विषय में घंटों सोचा करते थे। यहीं ध्यान करते हुये मुहम्मद को जिब्राईल के माध्यम से अल्लाह का पैगाम मिला, कि वे सत्य का प्रचार करें। अब वे पैगम्बर तथा नबी (सिद्ध पुरुष) के रूप में विख्यात हो गये। उन्होंने अल्लाह का आनीम पैगम्बर माना जाता है। पैगाम प्राप्ति के बाद उन्होंने अपने मत का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने स्वयं यह अनुभव किया, कि वे ईश्वर के महानतम पैगम्बर हैं, जिन्हें उसने पृथ्वी पर अपना संदेश प्रचारित करने के उद्देश्य से प्रेषित किया है।

मुहम्मद ने शक्ति द्वारा इस्लाम का प्रचार किया। गिबन के अनुसार उन्होंने एक हाथ में तलवार तथा दूसरे में कुरान ग्रहण करके ईसाई तथा रोमन साम्राज्य के ऊपर अपना राजसिंहासन स्थापित किया था। उन्होंने अपने गृहनगर मक्का में 200 कट्टर अनुयायियों का संगठन तैयार किया तथा वहाँ वे मदीना पहुँच गये। वहाँ के कबीलों ने उनकी सहायता की तथा उन्होंने अपना मजबूत राजनैतिक संगठन तैयार किया तथा वहाँ से वे मदीना पहुँच गये। वहाँ के कबीलों ने उनकी सहायता की तथा उन्होंने अपना मजबूत राजनैतिक संगठन कायम कर लिया। अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिये उन्हें मक्का के कबीलों से कई युद्ध करने पङे और सभी में उन्हें सफलता प्राप्त हुई। उन्होंने मक्का पर अधिकार कर लिया तथा वहाँ इस्लाम का झंडा फहरा दिया। वहाँ के ईसाई, यहूदी तथा कबीलों ने उनकी प्रभुसत्ता स्वीकार कर लिया। इस प्रकार मुहम्मद ने विभिन्न संघर्षरत अरबी कबीलों के बीच एकता स्थापित कर दी। 632 ई. के लगभग उनकी मृत्यु हुई।

मुहम्मद की मृत्यु के बाद एक शताब्दी में ही अरबों ने एक बङे भू-भाग पर अपना अधिकार जमा लिया तथा मुस्लिम साम्राज्य पश्चिमी यूरोप के पायरेनीज पर्वत से लेकर चीन तथा भारत की सीमाओं तक फैल गया।

इस्लाम के सिद्धांत

पैगम्बर मुहम्मद के उपदेशों तथा शिक्षाओं को ही सम्मिलित रूप से इस्लाम की संज्ञा दी जाती है। इस्लाम मत कट्टर एकेश्वरवाद में विश्वास करता है। इसके अनुसार सृष्टि का एकमात्र देवता अल्लाह (ईश्वर) है, जो सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ एवं असीम करुणा का सागर है। उसके अलावा कोई दूसरी सत्ता नहीं है…अधिक जानकारी

भारतीय सभ्यता पर इस्लाम का प्रभाव

भारतीय संस्कृति ने पूर्ववर्ती आक्रांताओं – शक, यवन, कुषाण, हूण आदि को आत्मसात कर लिया। उन्होंने भारतीय धर्म तथा सामाजिक आचार-विचारों को ग्रहण किया और अपनी विशिष्टता खो बैठे। किन्तु हिन्दू संस्कृति की यह ग्रहणशीलता एवं आत्मसातीकरण की प्रवृत्ति मुस्लिम आक्रान्ताओं के सम्मुख असफल रही। इसका सर्वप्रथम कारण यह था कि मुसलमान अपने साथ अपनी एक विशिष्ट संस्कृति लेकर भारतभूमि पर अवतरित हुये थे, जिससे वे अपने को पृथक रख सकने में समर्थ हो सके। इसमें संदेह नहीं कि दोनों सम्प्रदायों के उदार व्यक्तियों द्वारा परस्पर समन्वय के प्रयत्न हुए तथा उनका एक दूसरे के ऊपर प्रभाव भी पङा तथापि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही भारतीय समाज में अपनी विशिष्ट संस्कृतियों के साथ विद्यमान रहे।

हिन्दू मुस्लिम संस्कृतियों के स्वभावतः भिन्न होने के बावजूद निरंतर साथ रहने के कारण हिन्दू सभ्यता के कुछ सामाजिक एवं धार्मिक पक्षों पर इस्लाम धर्म का प्रभाव पङना स्वाभाविक ही था। परंतु यह प्रभाव किस सीमा तक पङा इस विषय में विद्वानों ने परस्पर विरोधी विचार व्यक्त किये हैं। पं. जवाहर लाल नेहरू का मत है, कि भारत में आने के बाद मुसलमानों का वंश पूर्णतया भारतीय हो गया तथा वे भारत को अपनी मातृभूमि तथा शेष विश्व को विदेश मानने लगे। ताराचंद के अनुसार इस्लाम का प्रभाव हिन्दू धर्म, साहित्य, कला तथा विज्ञान पर ही नहीं पङा अपितु उसने हिन्दू संस्कृति की आत्मा तथा हिन्दू मस्तिष्क की सामग्री को भी परिवर्तित कर दिया। फलस्वरूप हिन्दू सभ्यता के प्रमुख स्तंभ ढहने लगे तथा फिर दोनों ने समन्वय से एक नवीन सभ्यता का उदय हुआ, जिसे इंडो-इस्लामी सभ्यता कहा जा सकता है। उन्होंने आगे बताया है, कि नवीं शती से दक्षिणी भारतीय धार्मिक-सामाजिक विचारधारा की कुछ विशेषतायें जैसे एकेश्वरवाद पर बल दिया जाना, भक्ति का सिद्धांत, आत्मसमर्पण (प्रपत्ति) का सिद्धांत, गुरु का सम्मान, जाति प्रथा की शिथिलता, धर्म के कर्मकाण्डीय पक्ष की उपेक्षा आदि निश्चयतः इस्लाम धर्म के प्रवाह का परिणाव थी। कालांतर में भक्ति का सिद्धांत तथा शूद्रों के प्रति उदारता का भाव उत्तरी भारत में भी विकसित हुआ। विद्वान इतिहासकार ने इस बात पर बल दिया है, कि शंकराचार्य ने अपने अद्वैत का सिद्धांत इस्लाम के एकेश्वरवाद से ही ग्रहण किया था। इसके विपरीत हेवेल तथा श्रीराम शर्मा जैसे विद्वानों की मान्यता है, कि यद्यपि राजनैतिक दृष्टि से मुसलमानों ने भारतीयों को अपनी अधीनता में कर लिया, किन्तु भारतीय सभ्यता की आत्मा को वे कभी भी नियंत्रित न कर सके तथा उसका वैदिक आधिपत्य सदा की तरह अब भी विद्यमान रहा। जदुनाथ सरकार तथा टाइटस का विचार है, कि भारतीय सभ्यता ने ही इस्लामी सभ्यता को पूर्णतया प्रभावित किया था। किन्तु ये दोनों ही मत अतिवादी प्रतीत होते हैं। जहाँ यह कथन युक्तिसंगत नहीं है, कि इस्लाम ने भारतीय सभ्यता की आत्मा को परिवर्तित कर दिया, वहां हम यह निष्कर्ष भी नहीं निकाल सकते हैं, कि इस्लाम का भारतीय सभ्यता पर कोई भी प्रभाव नहीं पङा। वास्तविकता यह है, कि दीर्घकालीन साहचर्य के कारण दोनों ही सभ्यतायें एक दूसरे से प्रभावित हुई तथा यह प्रभाव सामाजिक-धार्मिक क्षेत्र में ही अधिक रहा।भारती की राजनैतिक संस्थायें यथावत विद्यमान रही तथा इनमें इस्लाम के आगमन के कारण कोई बङा परिवर्तन उत्पन्न नहीं हुआ।

हिन्दू समाज पर इस्लाम का प्रभाव

इस्लाम के संपर्क में आने के परिणामस्वरूप हमें हिन्दू समाज में कुछ नई प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं। मुस्लिम शासकों ने हिन्दू प्रजा को अधिकाधिक अपने मत में परिवर्तित करने का अभियान प्रारंभ कर रखा था। इसका एक परिणाम यह हुआ कि हिन्दू व्यवस्थाकारों ने अपनी जाति की शुद्धता एवं पवित्रता बनाये रखने के उद्देश्य से जाति प्रथा के नियमों को अत्यधिक कठोर बना दिया। दैनिक आचार-विचार के नियमों में भी कठोरता आई। माधव, विश्वेश्वर आदि हिन्दू व्यवसथाकारों ने हिन्दूओं के पालनार्थ कठोर सामाजिक-धार्मिक नियमों का विधान प्रस्तुत किया। खान-पान के नियमों में भी कठोरता आई। अन्तर्जातीय विवाह प्रायः बंद हो गये। सामाजिक संबंध अत्यन्त संकुचित हो गये। अलबरूनी के विवरण से पता चलता है, कि हिन्दू समाज में जाति-प्रथा के बंधन चट्टान के समान दृढ हो गये थे। जो स्त्री-पुरुष तुर्कों द्वारा बलात मुसलमान बना लिये गये थे, उन्हें हिन्दू धर्म में पुनः शामिल करने के लिये अनेक प्रकार के प्रायश्चितों का विधान किया गया।देवलस्मृति में इनका विवरण प्राप्त होता है। आक्रान्ताओं के नापाक इरादों से हिन्दू महिलाओं की पवित्रता को बचाने के उद्देश्य से समाज में बाल विवाह एवं पर्दा प्रथा का प्रचलन हुआ। अब कन्याओं का विवाह सात-आठ वर्ष में ही किया जाने लगा तथा उन्हें कठोर पर्दे में रखने का विधान प्रस्तुत किया गया। इससे उनकी स्वतंत्रता समाप्त हो गयी। राजपूत समाज में जौहर – प्रथा, जिसके अनुसार अपने सतीत्व की रक्षा के लिये राजपूत रानियाँ सामूहिक प्राणोत्सर्ग करती थी, का प्रचलन इस्लाम के आगमन से ही प्रारंभ हुआ। हिन्दू समाज ने इस्लामी समाज के कुछ उदार नियमों एवं सिद्धातों ने ग्रहण कर लिया। इस्लाम जाति – पाति को न मानकर मानवमात्र की समानता पर बल देता था। इस भाव को हिन्दुओं ने ग्रहण कर लिया। हिन्दु सुधारकों ने भी जाति-पाति, ऊँच-नीच, छुआ-छूत आदि को निरर्थक बताते हुये जातियों की एकता पर बल दिया। अब शूद्र तथा अछूतों को इस्लाम में दीक्षित होने से बचाने के लिये उनके साथ अधिक उदारता का व्यवहार किये जाने का उपदेश दिया जाने लगा,जिससे हिन्दू सामाजिक दृष्टि में परिवर्तन आया। मुस्लिम संपर्क के फलस्वरूप समाज में दास प्रथा का प्रचलन भी बहुत अधिक बढ गया। पुरुष तथा स्त्री दोनों में दास रखने का शौक बढता गया।

हिन्दू समाज के कुलीन वर्ग के लोग मुस्लिम वेश भूषा, आहार – विहार, सामाजिक रीति – रिवाजों से प्रभावित हुए तथा उनमें से अधिकांश को उन्होंने ग्रहण कर लिया। कुलीन हिन्दुओं ने मुसलमानों के समान पोशाक पहनना प्रारंभ कर दिया। वे लंबी बाहों वाला कुर्ता-पायजामा पहनने लगे। दोनों वर्गों के लोग साफा बाँधते थे। हिन्दू समाज में मद्यपान तथा मांसाहार का प्रचलन अधिक बढ गया। ताराचंद के शब्दों में इस्लाम का प्रभाव हिन्दू रीति-रिवाजों, गृहस्थी को छोटे-मोटे व्यवहारों, संगीत, पोशाक, पाक विधि, विवाह विधि, त्योंहार, उत्सवों आदि के आयोजन तथा मराठों, राजपूतों एवं सिक्खों के दरबारी संस्थाओं तथा शिष्टाचारों पर जितने सुस्पष्ट एवं सुन्दर ढंग से दिखाई देता है, वह अन्यत्र नहीं।

हिन्दू धर्म तथा इस्लाम

हिन्दूओं तथा मुसलमानों के साथ-साथ रहने के कारण दोनों के धर्मों का भी एक दूसरे के ऊपर न्यूनाधिक प्रभाव पङा। ताराचंद के इस कथन से सहमत होना कठिन है, कि भारतीय धर्म में भक्ति-भावना, गुरु के सम्मान की भावना का विकास, धर्म के कर्मकाण्डीय पक्षों की उपेक्षा के सिद्धांत आदि के पीछे इस्लाम धर्म का ही प्रभाव था…अधिक जानकारी

इस्लाम तथा भारतीय साहित्य

भारत में इस्लाम के आगमन का एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव यहाँ के साहित्य पर पङा। कई हिन्दू विद्वानों ने अरबी-फारसी भाषाओं का अध्ययन करना प्रारंभ कर दिया। कुछ मुसलमान शासक शिक्षा और साहित्य के उदार संरक्षक भी थे। फिरोज तुगलक के शासन काल में दर्शन, ज्योतिष के कुछ ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया गया।इसी प्रकार सिकंदर लोदी ने भी संस्कृत के आयुर्वेद ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया था…अधिक जानकारी

इस्लाम तथा हिन्दू कला

इस्लामी सभ्यता तथा संस्कृति का सबसे अधिक प्रभाव हिन्दू ललित कलाओं तथा विशेष रूप से स्थापत्य कला के ऊपर पङा। हिन्दूओं ने इस्लामी कला के प्रायः सभी उपयोगी एवं सुन्दर तत्वों का समायोजन अपनी कला में कर लिया। राजपूत शासकों ने इस्लामी स्थापत्य कला के विविध तत्वों को ग्रहण कर उनके अनुसार अपने राजमहलों एवं मंदिरों को सजा दिया था…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!