इतिहासराजस्थान का इतिहास

राजस्थान में मुस्लिम सत्ता का प्रसार

राजस्थान में मुस्लिम सत्ता का प्रसार

राजस्थान में मुस्लिम सत्ता – पृष्ठभूमि

तबकाते-नासिरी के अनुसार 1173 ई. में मुहम्मद गौरी गजनी का गवर्नर नियुक्त किया गया। इसके दो वर्ष बाद ही उसने भारत पर प्रथम आक्रमण किया और सुल्तान पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् उसने 1186 ई. में पंजाब को भी अधिकृत कर लिया पंजाब की विजयों से पूर्व वह संपूर्ण सिन्ध प्रान्त को जीत चुका था।

गौरी की इन विजयों के परिणामस्वरूप भारत में उसके अधिकृत प्रदेशों की सीमाएँ अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय के राज्य की सीमाओं से जा मिली। अतः दोनों में संघर्ष होना स्वाभाविक था। 1191 ई. में मुहम्मद गौरी ने पुनः भारत में प्रवेश किया। तराइन के ऐतिहासिक मैदान में दोनों पक्षों में भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें मुहम्मद गौरी पराजित हुआ।

लेकिन 1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध में विजय प्राप्त कर मुहम्मद गौरी ने अजमेर का राज्य पृथ्वीराज के पुत्र को लौटा दिया। गौरी भारत से लौटते समय अपने अधिकृत क्षेत्रों की सुरक्षा का दायित्व अपने सेनानायक कुतुबुद्दी ऐबक को सौंप गया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली को अपना केन्द्र बनाया, जिससे दिल्ली सल्तनत की पृष्ठभूमि तैयार हो गयी।

गौरी ने यद्यपि पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया था, किन्तु राजस्थान में मुस्लिम सत्ता के प्रभाव को सुदृढ करने का काम कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया। गौरी के लौटते ही पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने विद्रोह करके अपने भतीजे को खदेङ दिया, किन्तु ऐबक ने विद्रोह का दमन कर पुनः पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अजमेर में प्रतिष्ठित कर दिया। ऐबक ने विद्रोह का दमन कर पुनः पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अजमेर में प्रतिष्ठित कर दिया।

ऐबक के लौटते ही हरिराज और अन्य चौहान सरदारों ने विद्रोह कर दिया। इस बार ऐबक एक शक्तिशाली सेना लेकर आया और विद्रोह का निर्ममतापूर्वक दमन कर दिया। हरिराज ने खिन्न होकर आत्मदाह कर लिया। इस बार ऐबक ने अजमेर का राज्य निर्बल गोविन्दराज को न सौंप कर वहाँ अपना एक तुर्क सूबेदार नियुक्त कर दिया तथा गोविन्दराज को रणथंभौर का राज्य दे दिया। इस प्रकार राजस्थान के केन्द्र में स्थित अजमेर पर मुसलमानों का प्रत्यक्ष शासन स्थापित हो गया।

गौरी ने लौटते समय भरतपुर रियासत में स्थित बयाना पर आक्रमण कर उस पर भी अधिकार कर लिया था और बहाउद्दीन को बयाना का अधिकारी नियुक्त कर दिया था।

राजस्थान के जिन क्षेत्रों पर तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था, वहाँ के राजपूत सरदारों ने गुजरात के चालुक्य नरेश के सहयोग से पुनः स्वाधीनता का बिगुल बजा दिया। इस पर ऐबक ने ससैन्य अजमेर पहुँच कर राजपूतों व मेवों पर धावा बोल दिया, किन्तु उसे परास्त होकर दुर्ग में शरण लेनी पङी। राजपूतों ने दुर्ग को घेर लिया।

इसी समय गजनी से ऐबक की सहायतार्थ एक तुर्क सेना के आ जाने पर राजपूतों ने दुर्ग का घेरा उठा लिया और विसर्जित हो गये। उसके बाद ऐबक ने गुजरात पर ससैन्य अभियान किया। इस अभियान के दौरान अनेक राजपूत शासकों को अपने राज्यों से हाथ धोना पङा।

यद्यपि नाडोल, पाली और आबू जैसे राज्यों का अस्तित्व समाप्त हो गया था, किन्तु ऐबक ने केवल अजमेर को ही अपने राज्य में मिलाया। राजस्थान में तुर्क सत्ता एवं प्रभाव को सुदृढ बनाने का श्रेय कुतुबुद्दीन ऐबक को है।

कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद दिल्ली का सुल्तान इल्तुतमिश अपनी सत्ता को सुदृढ बनाने में लग गया, अतः वह राजपूतों की ओर ध्यान न दे सका। फलस्वरूप राजपूतों ने पुनः स्वतंत्र होने के प्रयास आरंभ कर दिये। जालौर के चौहान शासक उदयसिंह ने तुर्कों को खदेङ कर अपना राज्य स्वतंत्र कर लिया।

रणथंभौर, जो अल्पकाल के लिये तुर्कों के अधिकार में चला गया था, चौहानों ने पुनः जीत लिया। अजमेर पर भी राजपूतों का अधिकार हो गया तथा अलवर व बयाना के निकटवर्ती क्षेत्रों पर से तुर्क नियंत्रण शिथिल पङ गया। अतः दिल्ली में अपनी सत्ता को सुदृढ करने के बाद इल्तुतमिश ने 1226 ई. में रणथंभौर पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।

अगले दो वर्षों में उसने नागौर, अजमेर, बयाना, तहनगढ, सांभर, जालौर तथा मारवाङ की राजधानी मंडौर पर भी अधिकार कर लिया। यद्यपि उसने मेवाङ के गुहिलों पर भी आक्रमण किया, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इल्तुतमिश के लौटते ही रणथंभौर, मंडौर, जालौर तथा बूंदी आदि राज्य तुर्क शासन से मुक्त हो गये।

अतः इन्हें पुनः अधिकृत करने के लिये दिल्ली के सुल्तानों को कई बार सैनिक अभियान करने पङे। फिर भी इल्तुतमिश के शासन काल में अजमेर, सांभर, नागौर, बयाना, मेवात आदि क्षेत्रों पर तुर्कों का स्थायी नियंत्रण स्थापित हो गया था। इल्तुतमिश से लेकर जलालुद्दीन खिलजी के शासन काल तक तुर्क-राजपूत संघर्ष चलता रहा। अलाउद्दीन खिलजी ने निर्णायक रूप से राजपूतों को परास्त कर राजस्थान पर तुर्क शासन स्थापित किया।

अलाउद्दीन खिलजी को राजस्थान में अपनी सत्ता का प्रसार करने के लिये रणथंभौर, जालौर और चित्तौङ के राजपूतों से कङा संघर्ष करना पङा। अतः इन राज्यों के साथ उसके संघर्ष का विस्तृत वर्णन करना सही रहेगा।

रणथंभौर और दिल्ली सल्तनत

राजस्थान में मुस्लिम सत्ता

रणथंभौर, जयपुर से दक्षिण-पूर्व की दिशा में स्थित है। यहाँ का विशाल दुर्ग एक पथरीले पठार पर, जो कि समुद्र की सतह से 1578 फुट की ऊँचाई पर है, बसा हुआ है। दुर्ग के चारों ओर सघन जंगल से आच्छादित पहाङियाँ फैली हुई हैं। सवाई माधोपुर रेलवे जंक्शन से उत्तर-पूर्व में लगभग 5-6 मील की यात्रा के बाद दुर्ग तक पहुँचा जा सकता है।

इतिहासकार अमीर खुसरो के अनुसार यह दिल्ली से दो सप्ताह की यात्रा की दूरी पर स्थित था और परिधि में तीन कोल लंबी एक ठोस दीवार से घिरा था। सैनिक तथा सामरिक दृष्टि से दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा के लिये अथवा उस पर आक्रमण करने के लिये इस दुर्ग का अत्यधिक महत्त्व था…अधिक जानकारी

जालौर और दिल्ली सल्तनत

जालौर और दिल्ली सल्तनत – जालौर का छोटा सा राज्य चौहनों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा था। कीर्तिपाल द्वारा इसको स्थापना से लेकर इसके अंतिम शासक कान्हङदे के समय तक इस छोटे से राज्य ने राजस्थान के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

यहाँ के कई शासकों को अपने राज्य की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिये अपने समकालीन दिल्ली सुल्तानों से कई बार लोहा लेना पङा। रणथंभौर की भाँति इस चौहान राज्य का अंत भी अलाउद्दीन खिलजी के शासन में हुआ था…अधिक जानकारी

चित्तौङ और दिल्ली सल्तनत

चित्तौङ और दिल्ली सल्तनत – समरसिंह के उत्तराधिकारी रत्नसिंह के समय में मुसलमानों ने चित्तौङ को जीत लिया था।

रत्नसिंह और अलाउद्दीन खिलजी –रावल समरसिंह के बाद 1302 ई. में रत्नसिंह गुहिलों के सिंहासन पर बैठा। वह समरसिंह का पुत्र था। एक साल बाद ही मेवाङ राज्य को सर्वाधिक खतरनाक अभियान का सामना करना पङा जब सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने गुहिलों के राज्य को पूरी तरह से पदाक्रान्त करके उसकी स्वतंत्र सत्ता का अंत कर दिया…अधिक जानकारी

सिसोदियायों का उदय और दिल्ली सल्तनत

सिसोदिया वंश – 1303 ई. में अलाउद्दीन ने गुहिल राजघरानों को परास्त करके चित्तौङ पर अपना अधिकार जमा लिया। इसके साथ ही गुहिलों की रावल शाखा का भी अंत हो गया। इस प्रकार से यह मेवाङ के सर्वनाश का काल था । अलाउद्दीन के सैनिक अभियान के समय की दीर्घकालीन घेरेबंदी तथा अंतिम संघर्ष के दौरान अधिकांश सरदार तथा सैनिक मारे गये और जौहर की अग्नि ने सैकङों स्रियों एवं बाल-बच्चों के प्राण ले लिये। चित्तौङ पर अधिकार करने के बाद सुल्तान के आदेश से किये गये कत्लेआम में भी 30,000 लोग मारे गये…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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