इतिहासराजस्थान का इतिहास

सिसोदिया वंश का उदय और दिल्ली सल्तनत

सिसोदिया वंश – 1303 ई. में अलाउद्दीन ने गुहिल राजघरानों को परास्त करके चित्तौङ पर अपना अधिकार जमा लिया। इसके साथ ही गुहिलों की रावल शाखा का भी अंत हो गया। इस प्रकार से यह मेवाङ के सर्वनाश का काल था । अलाउद्दीन के सैनिक अभियान के समय की दीर्घकालीन घेरेबंदी तथा अंतिम संघर्ष के दौरान अधिकांश सरदार तथा सैनिक मारे गये और जौहर की अग्नि ने सैकङों स्रियों एवं बाल-बच्चों के प्राण ले लिये। चित्तौङ पर अधिकार करने के बाद सुल्तान के आदेश से किये गये कत्लेआम में भी 30,000 लोग मारे गये। इस भयंकर संघर्ष ने समूचे मेवाङ राज्य की अर्थव्यवस्था तथा जन जीवन को भी मृतप्राय बना दिया। कुछ समय बाद अलाउद्दीन ने अपने पुत्र खिज्रखाँ, जिसे उसने चित्तौङ का अधिकारी नियुक्त किया था, को वापस दिल्ली बुला लिया और उसके स्थान पर जालौर के सोनगरा चौहान मालदेव को मेवाङ राज्य का अधिकारी नियुक्त किया। मालदेव के समय में मेवाङ में चौहानों का प्रभुत्व बढने लगा। गोङवाङ का समृद्ध एवं उपजाऊ क्षेत्र भी चौहानों के अधिकार में चला गया। परंतु मेवाङ के गुहिलवंशियों ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने गुहिलों की छोटी शाखा के सरदार हम्मीर के नेतृत्व में अपना संघर्ष जारी रखा। हम्मीर सीसोदे गाँव का सामंत था। उसी ने मेवाङ को इस दयनीय स्थिति से उभारा तथा चित्तौङ पर पुनः अधिकार स्थापित किया। हम्मीर के पहले चित्तौङ के गुहिलवंशी शासक रावल कहलाते थे। हम्मीर के समय से वे राणा तथा महाराणा कहलाने लगे और मेवाङ का राजवंश सिसोदिया राजवंश के नाम से विख्यात हुआ।

सिसोदिया वंश

मुहणोत नैणसी की ख्यात के आधार पर डॉ.के.एस.लाल का मानना है कि चित्तौङ अधिकृत करने के कुछ वर्षों बाद सुल्तान अलाउद्दीन ने खिज्रखाँ को चित्तौङ से वापस बुला लिया। और सोनगरा चौहान मालदेव को चित्तौङ का अधिकारी नियुक्त किया। मालदेव के बाद उसका लङका बनवीर चित्तौङ का शासक बना और हम्मीर ने इसी बनवीर से 1326 ई.के आसपास चित्तौङ छीना था। इसके विपरीत डॉ. उपेन्द्रनात डे का मानना है कि मालदेव को अलाउद्दीन खिलजी ने नहीं अपितु सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने चित्तौङ का शासक नियुक्त किया था। हम्मीर द्वारा चित्तौङ को अधिकृत करने की तिथि एवं घटनाक्रम भी काफी विवादास्पद है। वीर-विनोद के लेखक श्यामलदास के अनुसार मालदेव के जीवनकाल में हम्मीर ने मेहता मौजीराम की सहायता से चित्तौङ पर अधिकार कर लिया था। परंतु यह सही नहीं है। डॉ.ओझा के अनुसार हम्मीर ने 1326 के आसपास मालदेव की मृत्यु के बाद उसके पुत्र जैता से चित्तौङ छीना था। यह भी सत्य नहीं है। क्योंकि रणकपुर शिलालेख से पता चलता है कि मालदेव 1325 ई. तक जीवित था और उसकी हत्या के बाद जैता नहीं उसका छोटा लङका बनवीर उसका उत्तराधिकारी बना था। इसके अलावा चित्तौङ दुर्ग में प्राप्त कुछ फारसी शिलालेखों से पता चलता है कि चित्तौङ पर सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक का अधिकार बना रहा। अतः यह मानना अधिक युक्तिसंगत होगा कि हम्मीर ने 1326ई. के आसपास चित्तौङ जीता होगा।

राणा हम्मीर

राणा हम्मीर – राणा हम्मीर अपने समय का पराक्रमी, साहसी एवं चतुर शासक सिद्ध हुआ। वह सीसोदे के सरदार लक्ष्मणसिंह का पोता था। लक्ष्मणसिंह चित्तौङ की घेरेबंदी के समय अपने सात पुत्रों सहित मारा गया था। उसका लङका अजयसिंह भाग्यवश जीवित रहा। उसकी मृत्यु के बाद हम्मीर सीसोद का सरदार बना। उसने 1326 ई. के आसपास चित्तौङ को जीता और मेवाङ के सिसोसिया राजवंश की नींव रखी जो स्वतंत्र भारत में भी कुछ वर्षों तक मेवाङ का शासन करता रहा। चारण-भाटों के वृत्तांतों तथा कुछ बाद के शिलालेखों के आधार पर हम्मीर की प्रारंभिक गतिविधियों का उल्लेख किया जा सकता है। उसने अरावली पहाङों में स्थित केलवाङा को अपना केन्द्र बनाया तथा अपने दैनिक दस्तों की सहायता से आसपास के क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढाना शुरू किया…अधिक जानकारी

क्षेत्रसिंह

क्षेत्रसिंह – राणा हम्मीर की मृत्यु के बाद उसका बङा पुत्र क्षेत्रसिंह मेवाङ का राणा बना। उसने 1382 ई. तक शासन किया। उसके समय में दिल्ली के सिंहासन पर फीरोजशाह तुगलक (1351-88ई.) आसीन था। वह न तो एक पराक्रमी सैनिक था और न ही सुयोग्य सेनानायक। उसने मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र हो जाने वाले क्षेत्रों को पुनः जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वास्तव में यह साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा रखने वाला सुल्तान नहीं था। परिणाम यह निकला कि तुगलक सल्तनत की पतनोन्मुख स्थिति का लाभ उठाकर ईडर, सिरोही, डूँगरपुर, खींचीवाङा, हाङौती और मेरवाङा के शासक भी अपने-अपने राज्यों की सीमाओं को बढाने में लग गये…अधिक जानकारी

महाराणा लाखा

महाराणा लाखा(1382-1397ई.)- महाराणा लाखा के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत को अनेक उतार-चढाव देखने पङे। 1388 ई. में फीरोज तुगलक की मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु के बाद तुगलक सल्तनत तेजी से विघटित होने लग गई। 1398-99 में अमीर तैमूर के आक्रमण से तुगलक सल्तनत धराशाही हो गयी। तैमूर के एक प्रतिनिधि खिज्रखाँ ने दिल्ली में एक नये राजवंश सैयदवंश की नींव रखी जिसने 1414 से 1451 ई. तक शासन किया…अधिक जानकारी

मोकल

मोकल (1397-1433ई.) – राणा बनते समय मोकल की आयु केवल बारह वर्ष की ही थी। अतः लाखा का बङा पुत्र चूण्डा उसका अभिभावक बना और उसने कुशलतापूर्वक मोकल के नाम पर मेवाङ का शासन चलाया। कुछ दिनों तक सभी काम ढंग से चलते रहे। परंतु धीरे-धीरे हंसाबाई और चूण्डा के संबंधों में तनाव पैदा हो गया। हंसाबाई को संदेह होने लगा कि कहीं अवसर मिलने पर चूण्डा मेवाङ के सिंहासन को हस्तगत न कर ले। अंत में जब स्थिति असहनीय हो गयी तो चूण्डा मेवाङ छोङकर माण्डू में सुल्तान की सेवा में चला गया। इस घटना के संबंध में हंसाबाई और उसके भाई रणमल की भूमिका के संबंध में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

Online References
wikipedia : सिसोदिया वंश

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