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दिल्ली सल्तनत की स्थापना किसने की थी

कुतुब-उद-दीन ऐबक एक गुलाम था, जिसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। वह मूल रूप से तुर्क था। 

दिल्ली सल्तनत का इतिहास

1206 से 1526 तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंश के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत या सल्तनत-ए-हिन्द/सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है।

ये पाँच वंश निम्नलिखित थे- 

गुलाम वंश (1206 – 1290) –

यह वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था। इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था जिसको मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद नियुक्त किया था। इस वंश ने दिल्ली सल्तनत पर 84 वर्षों तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया था।इस वंश के संस्थापक गुलाम थे, ये राजा नहीं थे। इसलिये इसे राजवंश की बजाय सिर्फ वंश ही कहा जाता है।गुलाम वंश का प्रथम शासक ( संस्थापक ) कुतुबुद्दीन ऐबक तथा गुलाम वंश का अंतिम शासक क्यूमर्श था…अधिक जानकारी

 ख़िलजी वंश (1290- 1320)

खिलजी वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था।  दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत में दूसरा शासक परिवार था, हालांकि खिलजी कबीला लंबे समय से अफगानिस्तान में बसा हुआ था, लेकिन अपने पूर्ववर्ती गुलाम वंश की तरह यह राजवंश भी मूलत: तुर्किस्तान का था।खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी था। इसको अमीर वर्ग, उलेमा वर्ग, जनता का समर्थन प्राप्त नहीं था…अधिक जानकारी

तुगलक वंश (1320 – 1414)

सैयद वंश (1414 – 1451)

खिज्रखां ने  तुगलक वंश के बाद सैयद वंश की स्थापना की और लोदी  वंश से हारने तक शासन किया। सैयद वंश दिल्ली सल्तनत का चौथे नंबर का वंश था।यह परिवार सैयद अथवा मुहम्मद गौरी के वंशज माने जाता है। तैमूर के लगातार आक्रमणों के कारण दिल्ली सल्तनत का केन्द्रीय नेतृत्व पूरी तरह से हतास हो चुका था । इसके बाद उथल-पुथल भरे समय में, जब कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी, सैयदों ने दिल्ली में अपनी शक्ति का विस्तार किया…अधिक जानकारी

लोदी वंश (1451 – 1526)

लोदी वंश भारत का प्रथम अफगान वंश था। जो सुलेमान पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में रहता था । इस वंश ने दिल्ली की सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया।पूर्व में मुल्तान और पेशावर के बीच और पश्चिम में गजनी तक सुलेमान पर्वत क्षेत्र में जो पहाड़ी निवासी फैले हुए थे। वेअज्ञात और निर्धनता की स्थिति थे। वे पशुपालन से अपनी जीविका चलाते थे और यदा कदा अपने संपन्न पड़ोसी क्षेत्र पर चढ़ाई करके लूटपाट करते रहते थे।उनके  लड़ाकू स्वभाव ने महमूद गजनवी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया और अल-उत्बी के अनुसार उसने उन्हें अपना अनुगामी बना लिया।गोरवंशीय प्रभुता के समय अफगान लोग दु:साहसी और पहाड़ी विद्रोही मात्र रहे…अधिक जानकारी

इनमें से पहले चार वंश मूल रूप से तुर्क थे और आखरी अफगान था।

मुहम्मद ग़ौरी का गुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक, गुलाम वंश का पहला सुल्तान था। ऐबक का साम्राज्य पूरे उत्तर भारत तक फैला था। इसके बाद ख़िलजी वंश ने मध्य भारत पर कब्ज़ा किया लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप को संगठित करने में नाकाम रहा।पर इसने भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।दिल्ली सल्तनत मुस्लिम इतिहास के कुछ कालखंडों में है जहां किसी महिला ने सत्ता संभाली। 1526 में द्वारा इस साम्राज्य का अंत हुआ।

आदि तुर्क

1206 ई. से 1290 ई. तक उत्तरी भारत के कुछ भागों पर जिन तुर्क शासकों ने शासन किया है, उन्हें फारसी इतिहासकारों ने मुइज्जी, कुत्बी, शम्सी और बल्बनी वर्गों में बाँट दिया है। आधुनिक लेखकों ने उन्हें पठान, गुलाम वंश, आरंभिक तुर्क सुल्तान, तुर्क ममलूक, और इल्बरी वंश आदि नामों से संबोधित किया है। वास्तव में इन वर्षों में शासन करने वाले सुल्तान तीन अलग-अलग वंशों के थे। कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206-210 ई. तक, इल्तुतमिश के वंश ने 1210-1266 ई. तक और बल्बन के वंशों ने 1266 – 1290 ई. तक राज्य किया। वे निश्चित रूप से पठान नहीं थे, ऐसी स्थिति में उन्हें पठान सुल्तान नहीं कहा जा सकता। इन्हें गुलाम शासक कहना भी सही नहीं है, क्योंकि गुलाम वंश के शासक अभी गुलाम नहीं रहे थे। तीनों राजवंशों के संस्थापक ऐबक, इल्तुतमिश और बल्बन गुलाम थे परंतु इनमें से पहले दो दासता से मुक्त कर दिए गये थे। उन्हें ममलूक कहना अधिक उचित है क्योंकि उससे आशय गुलामी के बंधन से मुक्त माता पिताओं से उत्पन्न वंशजों से है। साथ ही ऐसा भी नहीं था कि ये तीनों ही इल्बारी तुर्क हों। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश इल्बारी वंश का तुर्क था, किंतु ऐबक इल्बारी वंश का तुर्क नहीं था। बल्बन स्वयं को इल्बारी तुर्क कहता है, परंतु उसका दरबारी इतिहासकार मिनहाज जो तथ्य देता है उससे यह सिद्ध नहीं होता। अतः इन राजवंशों के सभी शासकों को प्रारंभिक तुर्क शासक या आदि तुर्क कहना सही है।

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