गुप्त कालइतिहासप्राचीन भारत

गुप्तों का प्रांतीय शासन कैसा था

प्रशासन की सुविधा के लिये विशाल गुप्त साम्राज्य अनेक प्रांतों में विभाजित किया गया था। प्रांत को देश, अवनी अथवा भुक्ति कहा जाता था। गुप्त शासन के प्रमुख प्रांत

  • सुराष्ट्र,
  • पश्चिमी मालवा (अवन्ति),
  • पूर्वी मालवा (एरण),
  • तीरभुक्ति,
  • पुण्ड्रवर्धन,
  • मगध

भुक्ति के शासक को उपरिक कहा जाता था, जिसकी नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी, तथा वह सम्राट के प्रति उत्तरदायी होता था।

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सीमांत प्रदेशों के शासक गोप्ता कहलाते थे, जिनकी नियुक्ति सम्राट पर्याप्त सोच-विचारकर करते थे। उपरिक के पद पर प्रायः राजकुमार अथवा राजकुल से संबंधित व्यक्तियों की ही नियुक्ति की जाती थी, परंतु कभी-२ अन्य योग्य व्यक्तियों को भी यह पद प्रदान कर दिया जाता था। चंद्रगुप्त द्वितीय का छोटा पुत्र गोविंदगुप्त तीरभुक्ति का तथा कुमारगुप्त प्रथम का पुत्र घटोत्कचगुप्त पूर्वी मालवा का राज्यपाल था। कुमारगुप्त के समय में उत्तरी बंगाल में पुण्ड्रवर्धन नामक प्रांत गुप्त साम्राज्य के अंतर्गत था, जहां का शासक चिरादत्त था। स्कंदगुप्त के समय में पर्णदत्त उसके साम्राज्य के पश्चिमी प्रदेश सुराष्ट्र का राज्यपाल था। इसकी नियुक्ति प्रायः ५ वर्षों के लिये की जाती थी।

जिला तथा नगर का प्रशासन-

भुक्ति का विभाजन अनेक जिलों में हुआ था। जिला को विषय कहा गया है, जिसका प्रधान अधिकारी विषयपति होता था। विषयपति को कुमारामात्य भी कहा गया है। विषयपति की नियुक्ति प्रायः संबंधित प्रांत के उपरिक (राज्यपाल) द्वारा ही की जाती थी, परंतु कभी-२ स्वयं सम्राट ही उनकी नियुक्ति करता था। विषयपति का अपना कार्यालय होता था। कार्यालय के अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाले अधिकारी को पुस्तपाल कहा जाता था।

विषयपति एक समिति की सहायता से जिले का शासन चलाता था, जिसमें निम्नलिखित सदस्य होते थे-

नगर श्रेष्ठि (नगर के महाजनों का प्रमुख), सार्थवाह (व्यवसायियों का प्रधान), प्रथम कुलिक (प्रधान शिल्पी), प्रथम कायस्थ (मुख्य लेखक)।

फरीदपुर ताम्रपत्र संख्या ३ में विषयपति के सदस्यों की संख्या बीस मिलती है। विषय समिति के सदस्य विषय महत्तर कहे जाते थे।

प्रमुख नगरों का प्रबंध नगरपालिकायें चलाती थी। नगर का प्रधान अधिकारी पुरपाल कहा जाता था। वह कुमारामात्य की श्रेणी का अधिकारी होता था। नगर प्रशासन में पुरपाल की सहायता करने के लिये भी एक समिति होती थी। जूनागढ लेख से पता चलता है, कि गिरनार नगर का पुरपाल चक्रपालित था, जो सुराष्ट्र के राज्यपाल पर्णदत्त का पुत्र था। उसी ने वहाँ सुदर्शन झील के बाँध का पुनर्निर्माण करवाया था।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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