स्कंदगुप्त के लोकोपकारिता के कार्य
स्कंदगुप्त एक लोकोपकारी शासक था। जिसे अपनी प्रजा के सुख-दुःख की हमेशा चिंता रहती थी। वह दीन-दुखियों के प्रति दयावान था। प्रांतों में उसके राज्यपाल भी लोकापकारी कार्यों में संलग्न रहते थे। जूनागढ अभिलेख से पता चलता है,कि स्कंदगुप्त के शासन काल में भारी वर्षा के कारण ऐतिहासिक सुदर्शन झील का बाँध टूट गया। क्षण भर के लिये वह रमणीय झील संपूर्ण लोक के लिये दुदर्शन यानी भयावह आकृति वाली बन गयी।
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जूनागढ अभिलेख कहाँ स्थित है?
इससे प्रजा को महान कष्ट होने लगा। इस कष्ट के निवारण के लिये सुराष्ट्र प्रांत के राज्यपाल पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित ने, जो गिरनार नगर का नगरपति था, दो माह के भीतर ही अतुल धन का व्यय करके पत्थरों की जङाई द्वारा उस झील के बाँध का पुनर्निर्माण करवा दिया।
लेख के अनुसार यह बाँध सौ हाथ लंबा तथा अरसठ हाथ चौङा था। इससे प्रजा ने सुख की सांस ली।
Note :
यहाँ उल्लेखनीय बात यह है,कि सुदर्शन झील का निर्माण प्रथम मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के सुराष्ट्र प्रांत के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने पश्चिमी भारत में सिंचाई की सुविधा के लिये करवाया था। अशोक के राष्ट्रीय यवन जातीय तुषास्य ने उस झील पर बाँध का निर्माण करवाया था। यह बाँध प्रथम बार शकमहाक्षत्रप रुद्रदामन (130-150 ईस्वी) के समय टूट गया, जिसका पुनर्निर्माण उसने अतुल धन व्यय करके अपने राज्यपाल सुविशाख के निर्देशन में करवाया था।
स्कंदगुप्त का धर्म एवं धार्मिक नीति-
स्कंदगुप्त एक धर्मनिष्ठ वैष्णव था तथा उसकी उपाधि परमभागवत की थी। उसने भितरी में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवायी थी।
गिरनार में चक्रपालित ने भी सुदर्शन झील के तट पर विष्णु की मूर्ति स्थापित करवाई थी।
स्कंदगुप्त का मूल्यांकन –
स्कंदगुप्त एक वीर योद्धा था। उसने पुष्यमित्रों, हूणों जैसी क्रूर विदेशी जातियों को भारत से बाहर खदेङा, तथा गुप्त साम्राज्य को नष्ट होने से बचाया।
जैसे कि चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनानियों की दासता से देश को मुक्त किया तथा चंद्रगुप्त द्वितीय ने विदेशी शकों की शक्ति का विनाश किया वहीं स्कंदगुप्त ने अहंकारी हूणों के गर्व को चूर्ण कर दिया।
स्कंदगुप्त की मृत्यु के साथ ही गुप्त साम्राज्य विघटन एवं विभाजन की दिशा की ओर अग्रसर हुआ।
Reference : https://www.indiaolddays.com