हर्षवर्धन का सिंध के साथ युद्ध
बलभी के युद्ध के बाद हर्ष ने सिंध पर आक्रमण किया। बाणभट्ट के हर्षचरित से पता चलता है, कि हर्ष ने सिंधुराज को युद्ध क्षेत्र में मर्दित करके उसकी राजलक्ष्मी को छीन लिया था। इससे पता चलता है, कि सिंधु प्रदेश का राजा युद्ध में पराजित तो हुआ परंतु उसका राज्य नहीं छीना जा सका।
हुएनसांग के विवरण से पता चलता है, कि सिंध देश का राजा जाति से शूद्र था और बौद्ध धर्म में उसकी आस्था थी। यहाँ हर्ष ने धर्म विजयी शासक की नीति का अनुसरण किया, जो समुद्रगुप्त की दक्षिणापथ की नीति के समान है। ऐसा लगता है, कि हर्ष उससे भेंट लेकर ही संतुष्ट हो गया तथा उसने उसका राज्य वापस लौटा दिया। बाणभट्ट तथा ह्वेनसांग ने सिंध के राजा का नाम नहीं बताया है। संभवतः यह नरेश साहसीराय था, जो 7वी. शता. के प्रारंभ में वहाँ का शासक था।
ऐसा प्रतीत होता है, कि प्रभाकरवर्धन की मृत्यु तथा राज्यवर्धन की शशांक द्वारा हत्या के बाद थानेश्वर राज्य में जो अव्यवस्था फैली, उसी का लाभ उठाकर सिंधु के राजा ने एक बार फिर अपने को स्वतंत्र कर दिया था। इसी कारण हर्ष को उसके विरुद्ध पुनः सैनिक कार्यवाही करनी पङी थी।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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