पल्लव काल में मामल्ल-कला शैली (640-674ई.)
मामल्ल कला शैली का विकास पल्लव शासक नरसिंहवर्मन प्रथम महामल्ल के काल में हुआ। इसके अंतर्गत दो प्रकार के स्मारक थे-
- मंडप
- एकाश्मक मंदिर
इन स्मारकों को रथ कहा गया है।
इस शैली में निर्मित सभी स्मारक मामल्लपुरम् (महाबलिपुरम्) में विद्यमान हैं। यहाँ मुख्य पर्वत पर दस मंडप बनाये गये हैं। इनमें आदिवाराह मंडप, महिषमर्दिनी मंडप, पंचपाण्डव मंडप, रामानुज आदि विशेष प्रसिद्ध हैं। इन्हें विविध प्रकार से अलंकृत किया गया है।
मंडपों का आकार-प्रकार बङा नहीं है। मंडपों के स्तंभ पहले की अपेक्षा पतले और लंबे हैं। इनके ऊपर पद्म, कुम्भ, फलक आदि अलंकरण बने हुये हैं। स्तंभों को मंडपों में अत्यन्त अलंकृत ढंग से नियोजित किया गया है। मंडप अपनी मूर्तिकारी के लिये प्रसिद्ध है। इनमें उत्कीर्ण महिषमर्दिनी, अनन्तशायी विष्णु, त्रिविक्रम, ब्रह्मा, त्रिविक्रम, ब्रह्मा, गजलक्ष्मी, हरिहर आदि की मूर्तियाँ कलात्मक दृष्टि से अत्युत्कृष्ट हैं। पंचपाण्डव मंडप में कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत धारण किये जाने का दृश्य अति सुन्दर है। आदिवराह मंडप में राजपरिवार केदो दृश्यों का अंकन किया गया है। पहली मूर्ति में राजा सुखासन मुद्रा में बैठा है, जिसके दोनों ओर उसकी दोनों ओर उसकी दो रानियाँ खङी हैं। इसकी पहचान सिंहविष्णु से की गयी है। दूसरी मुद्रा में राजा महेन्द्र (महेन्द्रवर्मन द्वितीय)अपनी दो पत्नियों के साथ खङा दिखाया गया है।
मामल्लशैली के मंडप महेन्द्र शैली के विकसित रूप को प्रकट करते हैं। इनकी कलात्मक वराह, महिष तथा पंचपाण्डव मंडपों में स्पष्टतः दर्शनीय है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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