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प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल नागार्जुनीकोण्ड

आन्ध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 100 मील दक्षिण-पूर्व की दिशा में (वर्तमान गुन्टूर जिले में) यह स्थल स्थित है। परम्परा के अनुसार बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन से सम्बन्धित होने के कारण इसका यह नाम पड़ गया। महाभारत में इसका प्रारम्भिक नाम श्रीपर्वत मिलता है। सातवाहनों के राज्य में यह स्थान था। सातवाहन नरेश हाल ने श्रीपर्वत पर नागार्जुन के लिये एक विहार बनवाया था। यहाँ वे जीवन-पर्यन्त रहे जिससे यह स्थान नागार्जुनीकोंड नाम से प्रसिद्ध हो गया।

सातवाहनों के पश्चात् इस क्षेत्र में ईक्ष्वाकु वंश का शासन स्थापित हो गया। उनके समय में आन्ध्र की राजधानी अमरावती से हटाकर नागार्जुनीकोंड में आई तथा इसे ‘विजयपुरी’ कहा गया। ईक्ष्वाकु राजाओं ने यहाँ बौद्ध स्तूप तथा विहारों का निर्माण करवाया था। नागार्जुनीकोंड का पता 1926 ई. में लगा। 1927 से 1959 के बीच यहाँ कई बार खुदाइयाँ की गयीं जिससे बहुमूल्य अवशेष प्राप्त हुए। एक स्तूप तथा कई अन्य स्तूपों के अवशेष मिलते है। कई ब्राह्मी लेख भी प्रकाश में आये हैं। महास्तूप गोलाकार था। इसका व्यास 106 इंच तथा ऊँचाई 80 इंच के लगभग थी। भूमितल पर 13 इंच चौड़ा प्रदक्षिणापथ था जिसके चतुर्दिक् वेदिका थी। बुद्ध का एक दन्तावशेष धातु-मंजूषा में सुरक्षित मिला है।

महास्तूप के अतिरिक्त कई छोटे स्तूपों के अवशेष भी यहाँ मिलते है। सबसे छोटा स्तूप 20 इंच के व्यास का है। लेखों से पता चलता है कि ईक्ष्वाकु राजाओं की रानियों ने यहाँ कई विहारों का निर्माण करवाया था। यहाँ ‘कुलविहार’ तथा ‘सीहलविहार’ नामक दो बड़े विहार बने थे। यहाँ से एक ‘मल्लाशाला’ का भी अवशेष मिला है जो 309’X356′ के आकार में थी। इसे पक्की ईंटों से बनाया गया था। इसके पश्चिम ओर एक मण्डप था। चारों ओर दर्शकों के बैठने के लिए चौड़ा स्थान था।
नागार्जुनीकोंड के अवशेषों को देखने से स्पष्ट होता है कि यह महायान बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध केन्द्र था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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