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भारत का मजदूर आंदोलन

मजदूर आंदोलन

भारत में मजदूर संघ का अस्तित्व 19 वी. शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आधुनिक उद्योगों की स्थापना के साथ शुरु होता है। रेलवे का निर्माण इस दिशा में प्रथम कदम था। आधुनिक उद्योगों के उदय के साथ ही कारखानों में अनेक बुराइयां जैसे कि काम करने के अधिक घंटे, आवास की असुविधा, कम वेतन, अत्यधिक असुरक्षा आदि देखने को मिली। कारखानों में सुधार हेतु प्रथम प्रयास समाजसेवी संस्थाओं द्वारा किया गया।

1870 में बंगाल के शशिपाद बनर्जी ने मजदूरों का एक क्लब स्थापित किया और भारत श्रमजीवी नामक पत्रिका का प्रकाशन किया।

1877 में नागपुर स्थित एम्प्रेस मिल के मजदूरों ने अपने वेतन की दरों के विरुद्ध हङताल का आयोजन किया।

1878 में सोराबाजी शपूर जी बंगाली ने बंबई विधानसभा में श्रमिकों की कार्यावधि के बारे में एक विधेयक पेश करना चाहा लेकिन असफल रहे।

1890 में एन.एम.लोखंडी महोदय ने बंबई मिल हैण्ड्स एसोसिएशन की स्थापना की जिसे आंशिक रूप से भारत का पहला मजदूर संघ माना जाता है।

कामगार हितवर्धन सभा(1990), सामाजिक सेवा संघ(1911),कलकत्ता मुद्रक संघ(1905),भारतीय रेल कर्मचारी एकीकृत सोसाइटी(1897) आदि प्रारंभिक मजदूर आंदोलन से जुङी संस्थायें थी।

प्रारंभिक दिनों में राष्ट्रवादी नेताओं का रुख मजदूर आंदोलन के प्रति उदासीनता का था।

उदासीनता का कारण साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन था जो अपने पहले चरण में था, राष्ट्रवादी नेता इस समय केवल उन्हीं मुद्दे से लङना चाहते थे।जिसमें समूचे देश की भागीदारी हो।

1881 और 1891 के कारखाना अधिनियमों का राष्ट्रवादी अखबारों और राष्ट्रवादी नेताओं ने इस लिए आलोचना की कि उन्हें इस बात की आशंका थी कि सरकार इन अधिनियमों द्वारा ब्रिटिश उत्पादकों का कल्याण करना चाह रही है, और भारतीय उत्पादों को बाजार से गायब करना चाह रही है।

चूँकि राष्ट्रवादी नेता तीव्र औद्योगिकरण के पक्षधर थे इसलिए औद्योगीकरण के इस दौर में श्रम कानूनों को व्यवधान नहीं बनाना चाहते थे।

इस समय का एक मात्र समाजार पत्र मराठा (तिलक) ही मिल-मजदूरों की रियासतों के लिए वकालत करता था।

मजदूर वर्ग की प्रथम संगठित हङताल ब्रिटिश स्वामित्व वाली रेलों में हुयी।1899 में ग्रेट इंडियन पेनिन सुलार में कार्यरत श्रमिकों ने कम मजदूरी और अधिक कार्यावधि के कारण हङताल कर दी।

मजदूर आंदोलनों परर 1903 से 1908 के बीच चले स्वदेशी आंदोलन का सकारात्मक प्रभाव पङा। स्वदेशी के प्रमुख नेताओं में अश्विनी कुमार दत्त, प्रभातकुमार राय चौधरी,अपूर्व कुमार घोष ने मजदूर आंदोलन को अपना सहयोग प्रदान किया।

16 अक्टूबर,1905 को बंगाल विभाजन के दिन मजदूरों ने समूचे बंगाल में हङताल रखी।

22 जुलाई, 1908 को बाल गंगाधर तिलक को आठ वर्ष की सजा होने के बाद तत्कालीन बंबई के कपङा मजदूर लगभाग एक सप्ताह तक हङताल पर रहे, मजदूरों की यह हङताल उस समय की सबसे बङी राजनीतिक हङताल थी।

बी.पी.वाडिया द्वारा गठित मद्रास मजदूर संघ (1918) भारत का पहला आधुनिक मजदूर संगठन था।

1919 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापनी तथा आई.एल.ओ. में भारत की सदस्यता एवं राष्ट्रवादियों के असहयोग आंदोलन ने भारत में एक अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन के रूप में सामने आया।

1920 में एम. एन. जोशी, जोसेफ बैपटिस्ट तथा लाला लाजपत राय के प्रयासों से अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई।

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपतराय हुए(1920), यह सम्मेलन बंबई में हुआ था।

लाला जी ने साम्राज्यवाद और सैन्यवाद को पूंजीवाद का जुङवा बच्चा कहा।

कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में पहली बार श्रमिकों के संगठनों उनकी न्यायोचित मांगों तथा उनके संघर्ष के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने का निर्णय लिया गया।

कांग्रेस के गया अधिवेशन(1922) में श्रमिकों को संघबद्ध करने के लिए एटक के साथ कांग्रेस ने सहयोग करने का निर्णय लिया।

निम्नलिखित कांग्रेसी नेताओं ने एटक की अध्यक्षता की थी। लाला लाजपतराय,सी.आर.दास,सी.एफ.एण्डूज, जे.एम.सेन गुप्त, सुभाषचंद्र बोस तथा जवाहरलाल नेहरू।

1918 में गांधीजी ने अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की स्थापना की। इसी संगठन द्वारा गांधी जी ने मजदूरों के लिए मध्यस्थता करने तथा अपने प्रसिद्ध ट्रस्टी – शिप दर्शन का उल्लेख किया।

वामपंथी विचारधारा के कारण 1926-27 में एटक का विभाजन हो गया।

एन.एम. जोशी के नेतृत्व में 1929 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन की स्थापना की।

1929 में एटक से पृथक हुए साम्यवादी नेता देशपांडे ने लाल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की।

कांग्रेस के अंदर 1934 में गठित समाजवादी कांग्रेस दल के प्रयासों से विभाजित एटक में पुनः एकता कायम हो गई।

कांग्रेस के अंदर वामपंथी विचारधारा वाले नेता जैसे- श्री पाद अमृत डांगे,मुजफ्फर अहमद,पूरनचंद्र जोशी तथा सोहन सिंह ने कामगार किसान पार्टी की स्थापना की।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय कांग्रेस ने मजदूर और किसान कांग्रेस के हाथ-पाँव हैं, का नारा दिया।

1930-36 के बीच मजदूर आंदोलन कमजोर हुआ, 1932-34 में शुरु हुए द्वितीय किसान सविनय अवज्ञा आंदोलन में मजदूरों की भागीदारी बहुत कम ही थी।

1937-39में प्रांतों में बनी कांग्रेस सरकारों के सहयोग से फिर मजदूर आंदोलन ने जोर पकङा।

3 सितंबर,1939 को शुरु हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के विरोध में बंबई के मजदूरों ने 2 अक्टूबर,1939 को समूचे विश्व में हङताल का आयोजन किया, जिसमें करीब 90,000 मजदूरों ने हिस्सा लिया।

एम.एन.राय जो साम्यवादी से अतिवादी लोकतंत्र के नेता बन गये थे, ने सरकार समर्थक श्रमिक दल इंडियन फेडरेशन ऑफ लेबर की स्थापना की.

भारत छोङो आंदोलन के समय 9 अगस्त,1942 को गांधी जी के गिरफ्तार कर लिये जाने पर दिल्ली, कलकत्ता,मद्रास, कानपुर,लखनऊ,बंबई, नागपुर,अहमदाबाद,जमदेशपुर,इंदौर,बंगलौर आदि में श्रमिक हङतालें हुई। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंतिम वर्षों में समूचे देश के आर्थिक मुद्दे को लेकर हुई हङतालों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, इन हङतालों में डाक तार विभाग की हङताल सर्वाधिक प्रसिद्ध थी।

राष्ट्रवादियों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में मई, 1947 में एटक से अलग होकर भारतीय राष्ट्रीय ट्रेक यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई।कांग्रेस के समाजवादी गुट ने हिन्द मजदूर सभा की स्थापना की।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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