अलाउद्दीन खिलजीइतिहासखिलजी वंशमध्यकालीन भारत

अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासन की कर प्रणाली

अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासन की कर प्रणाली – एक अन्य अध्यादेश द्वारा अलाउद्दीन ने उपज का पचास प्रतिशत, भूमिकर (खराज) के रूप में निश्चित किया। अलाउद्दीन भारत का प्रथम मुस्लिम शासक था, जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया। बरनी मापन की पद्धति (मसहत) और उसके उपकरणों के संबंध में विस्तृत सूचना नहीं देता। फिर भी वह बिस्वा के आधार पर राजस्व एकत्र करने की बात कहता है। इससे स्पष्ट है कि मापन की एकीकृत पद्धति अपनाई गई थी। इस पद्धति के अंतर्गत सभी की भूमि पर पचास प्रतिशत दर से लगान वसूल किया जाता था। धीरे-धीरे इन नियमों ने जमींदारों को कृषकों की स्थिति में पहुँचा दिया। उपज का आधा भाग शाही कोषागार में भेजकर, शेष आधे में से चराई और दूसरे कर चुकाने के बाद उनके पास बहुत कम अनाज रह जाता था। इस कारण वे अर्थात् जमीदार जो पहले आराम और निश्चितता का जीवन बिताते थे, अब भारी आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे थे।

यह सच है कि अलाउद्दीन ने बहुत अधिक भूमिकर वसूल किया। परंतु यह शरीअत के अनुसार अवैधानिक नहीं था, क्योंकि इस्लामी कानून में उपज का पचास प्रतिशत अंश लेने की अनुमति थी। इससे पूर्व बलबन और इल्तुतमिश कानून में उपज की एक तिहाई दर से अधिक नहीं लिया था। किंतु अलाउद्दीन को धन वसूल करने की अधिक आवश्यकता थी। इसका एक कारण तो यह था कि मद्यनिषेध और जुए के अड्डे बंद करने से शाही कोषागार को हानि हुई थी। लेकिन इसका प्रमुख कारण यही था कि सुल्तान मुसीबत के समय के लिये गोदामों में अनाज का भंडार भरा करता था। ऐसी स्थिति में राजस्व अनाज तथा नकद दोनों रूपों में वसूल किया जाता था।

राजस्व के अलावा अलाउद्दीन ने आवास कर और चराई कर भी लगाया। बरनी के अनुसार गायों और बकरियों जैसे दुधारू पशुओं पर कर लगाया गया। बरनी इस कर के संबंध में बताता है किंतु फरिश्ता के अनुसार दो जोङी बैल एक जोङी भैंस, दो गाएँ और दस बकरियाँ कर से मुक्त थे।

एक अन्य कर था करी या करही जिसके संबंध में बरनी कोई सूचना नहीं देता। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह गौण कर रहा होगा। जजिया गैर मुस्लमों से लिया जाने वाला कर था। जजिया स्त्रियों, बच्चों, विक्षिप्तों और अपंगों पर नहीं लगाया जाता था। बरनी और समकालीन इतिहासकार अलाउद्दीन के समय जजिया की दर का उल्लेख नहीं करते हैं। साथ ही वे खराज और अन्य करों की दर के विषय में भी मौन हैं।

खम्स से राज्य को पाँचवाँ हिस्सा मिलता था और शेष 4/5 हिस्सा सैनिकों में बाँट दिया जाता था। किंतु अलाउद्दीन ने नियम का उल्लंघन करके खुम्स का 4/5 भाग राज्य के भाग के रूप में लिया। बाद में मुहम्मद तुगलक ने भी इस प्रथा को कायम रखा।

जकात केवल मुसलमानों से लिया जाने वाला एक धार्मिक कर था। वह संपत्ति का 40 वाँ भाग था। चूँकि वह अत्यंत स्पष्ट कर था ऐसी स्थिति में अलाउद्दीन के समकालीन इतिहासकार इसकी जानकारी प्रायः नहीं देते हैं।

अलाउद्दीन की राजस्व नीति की सफलता, कर निर्धारण और कर वसूली का श्रेय नायब वजीर शर्फ कायिनी को जाता है। अनेक वर्षों तक इस अधिकारी ने साम्राज्य के अधिकांश हिस्सों में सुल्तान के अध्यादेश लागू करने का घोर प्रयत्न किया।

अलाउद्दीन के आर्थिक व राजस्व सुधारों के परिणाम

अलाउद्दीन के आर्थिक अधिनियम सल्तनत युग की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है। खेद की बात केवल यह है कि यह सब कुछ केवल एक ही व्यक्ति के जीवन और स्वास्थ्य पर निर्भर था। तभी तो उसकी मृत्यु के साथ उसके बाजार नियम समाप्त हो गए। उसका पुत्र इन नियमों को लागू नहीं कर सका।

ऐसा प्रतीत होता है कि अलाउद्दीन ने अपने विश्वासपात्र और अनुभवी परामर्शदाताओं और मंत्रियों से परामर्श करने के बाद ही आर्थिक सुधार हाथ में लिए थे। उन आर्थिक नियमों का सर्वाधिक विशिष्ट तत्व वह सफलता है, जिससे उन्हें लागू किया गया। सुल्तान, उसके शहना, बरीद, दीवान-ए-रियासत व मुनहियनों (गुप्तचर) सभी ने सुधारों को सफल बनाने का पूरा प्रयत्न किया।

अलाउद्दीन के समय में विशाल प्रदेशों को खालसा भूमि में परिवर्तित कर दिया गया।वसूली प्रणाली के दोषों के संबंध में आर.पी.त्रिपाठी लिखते हैं, राजस्व एकत्रीकरण में निहित दोषों में से एक दोष त्रुटिपूर्ण वसूली भी था, जिसके कारण बहुधा राशि बिना वसूल की हुई रह जाती थी। चूँकि राजस्व प्रणाली अभी तक विकास के दौर में थी और राजस्व निर्धारित और एकत्र करने का यंत्र अभी भी अविकसित था, वसूल न किया हुआ बकाया संभवतः अपरिहार्य था। खालसा भूमि के विस्तार से नीचे दर्जे के राजस्व कर्मचारियों की संख्या बढ गई थी जिनमें से अधिकांश भ्रष्ट और लुटेरे थे।

अलाउद्दीन ने इन दोषों को समाप्त करने के लिये दीवान-ए-मुस्तखराज नामक एक विभाग निर्मित किया। मुस्तखराज को राजस्व एकत्र करने वाले अधिकारियों के नाम बकाया राशि की जाँच करने और वसूल करने का कार्य सौंपा गया। आमिल, कारकून, पटवारियों और राजस्व से संबंधित अन्य निम्न अधिकारियों में भ्रष्टाचार समाप्त करने के कठोर उपाय किए गए। उन्हें ईमानदार बनाने और रिश्वतखोरी से रोकने के लिये उनके वेतन बढा दिए गए। अलाउद्दीन ने न तो मुक्ता-प्रथा समाप्त की और न खूती-प्रथा। उसने केवल स्वामियों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए, उनकी उदंडता कुचल डाली। उन्हें मितव्ययिता का जीवन व्यतीत करने को बाध्य किया। परंतु उसकी आर्थिक प्रणाली ने कृषक वर्ग को भी अपनी लपेट में ले लिया। कृषकों को अपनी आय का पचास प्रतिशत भूमि कर, चराई कर एवं आवास कर के रूप में चुकाना होता था। बाजार नियंत्रण के अंतर्गत निर्मित दोरों से बेचने के लिये बाध्य किया जाता था। फिर भी इतना कङा नियंत्रण समय की स्थिति को ध्यान में रखने पर अनुचित नहीं लगता है।

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