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कांग्रेस मंत्रिमंडल, 1937-39 ई.

कांग्रेस मंत्रिमंडल,1937 के आम चुनाव

भारतीय शासकों के असंतोष तथा राजनैतिक पार्टियों के प्रतिकूल व्यवहार के चलते 1935 के अधिनियम का संघीय भाग लागू नहीं हो सका।

सिर्फ अधिनियम प्रांतों से संबंधित दूसरा हिस्सा ही 1937 में लागू हो सका। परिणामस्वरूप फरवरी 1937 में प्रांतीय विधानमंडल के चुनाव हुए। हालांकि अधिनियम के कई प्रावधानों का कांग्रेस ने बहुत ही कङा विरोध किया। बावजूद इसके इन प्रावधानों को नष्ट करने के लिये कांग्रेस ने चुनाव लङने का भी फैसला किया।

दूसरे शब्दों में सरकार को सहयोग न कर प्रांतीय स्वायत्तता को असंभव बनाना ही कांग्रेस एकमात्र लक्ष्य था। अधिनियम की उपयोगिता को परखने के लिये मुस्लिम लीग और उदारवादियों ने भी चुनाव लङने का निश्चय किया।

इन चुनावों के सार्थक परिणाम सामने आए। मद्रास, बिहार, यू.पी. बाम्बेस मध्य प्रांत तथा उङीसा में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ, जहां दो-तिहाई भारतीय आबादी रहती थी।

असम में 108 सीटों में से 35 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बङी पार्टी के रूप में सामने आई। उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत में भी इसे 50 में से 19 सीटें प्राप्त हुई।

उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत चुनावों में मुस्लिम लीग की स्थिति बेहद दयनीय रही। प्रांतीय विधानसभा में मुसलमानों के लिये आरक्षित 482 सीटों में वह 31 सीटों पर ही चुनाव जीत सकी। कांग्रेस के टिकट पर 58 सीटों पर चुनाव लङे गये।

राष्ट्रवादी मुसलमानों ने 26 सीटों पर कब्जा किया। यहां तक कि पंजाब, बंगाल तथा उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में भी मुस्लिम लीग की स्थिति खराब रही।

हालांकि यू.पी., मध्य प्रांत, बाम्बे तथा अन्य हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम लीग को अच्छा लाभ प्राप्त हुआ।

कांग्रेस द्वारा विजित प्रांतों में मंत्रिमंडल के गठन को लेकर विवाद पैदा हो गए। विवाद में पलङा कांग्रेस का भारी होने के चलते उसने जुलाई, 1937 में यू.पी., बिहार, मद्रास, बाम्बे, उङीसा तथा मध्य प्रांत में अपना मंत्रीमंडल गठित किया, जबकि असम और उत्तर – पश्चिमी सीमांत प्रांत में वह दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन कर साझा मंत्रीमंडल बनाने के लिये तैयार हो गई।

जिन प्रांतों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला था, वहां उसने लीग को कैबिनेट में किसी भी तरह की छूट नहीं दी। उनका मानना था कि भिन्न-भिन्न विचारधारा के लोग एकजुट होकर कार्य नहीं कर सकते थे। हालांकि कैबिनेट में लीग को शामिल न करना नुकसानदायक सिद्ध हुआ। इससे हिन्दुओं तथा मुसलनानों के बीच तनाव पैदा हो गया। मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस पर कई तरह के आरोप लगा दिए।

References :
1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

Online References
wikipedia : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

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