इतिहासराजस्थान का इतिहास

जांभोजी कौन थे

जांभोजी – अजमेर और नागौर के आस-पास के क्षेत्रों में सूफी संतों के प्रचार कार्य से प्रभावित होकर कुछ संतों ने हिन्दू और मुस्लिम संप्रदायों में सौहार्द्र उत्पन्न करने का प्रयास किया। ऐसे संतों में विश्नोई संप्रदाय के प्रवर्त्तक जांभोजी का नाम अग्रणीय है। जांभोजी का जन्म 1451 ई. में नागौर परगने के पीपासर गाँव में हुआ था।

वे जाति के पंवार वंशीय राजपूत थे। चूँकि वे माता-पिता के इकलौती संतान थे, अतः उन्हें सर्वाधिक स्नेह प्राप्त हुआ। बाल्यकाल से ही वे मननशील थे और कम बोलते थे, अतः लोग उन्हें गूँगा कहते थे। लेकिन कभी-कभी वे लोगों को आश्चर्यचकित करने वाली बातें किया करते थे। 7 वर्ष की आयु में उन्हें गायें चराने भेज दिया गया। जंगल के शांत वातावरण में वे जीवन से संबंधित गुत्थियों पर विचार करते थे,

तभी 16 वर्ष की आयु में उन्हें सद्गुरु से साक्षात्कार हुआ। माता-पिता की मृत्यु के बाद वे अपना घर बार छोङ बीकानेर के निकट संभराथल नामक स्थान पर सत्संग और हरिचर्चा में अपना समय व्यतीत करने लगे। यहीं पर वि. सं. 1542 (1482 ई.) की कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अपने विश्वनोई संप्रदाय का प्रवर्त्तन किया और यहीं रहकर अपने संप्रदाय का प्रचार करते रहे। सन् 1534 ई. में (विक्रम संवत् 1591)तालवा गाँव में अपना नश्वर शरीर छोङ दिया।

जांभोजी

जांभोजी उस युग की साम्प्रदायिक संकीर्णताओं, आडंबरों एवं कुरीतियों के प्रति जागरुक थे। उनका कहना था कि ईश्वर सर्वव्यापक है और यदि आत्मा को, जो अमर है, वश में कर लिया जाय तो मुक्ति का मार्ग खुल जाता है। वे कर्मफल में विश्वास करते थे और मोक्ष-प्राप्ति के लिये गुरु को अनिवार्य मानते थे। जांभोजी ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों संप्रदायों के ढोंग-पाखंड और आडंबरों के विरुद्ध आवाज उठायी और समाज में जाति-भेद को अस्वीकार किया।

उनका कहना था कि जन्म के आधार पर कोई व्यक्ति उच्च नहीं हो जाता, उच्च होने के लिये उच्च कर्म करना चाहिए। उनकी मान्यता थी कि शरीर पर भस्म लगाना, सिर मुँडवाना, कान छिदवाना, बङी-बङी जटायें रखना और निरपराध जीवों को मारना घोर पाखंड और पाप है। दान, तीर्थ आदि का विरोध करते हुये पवित्र और नैतिक जीवन को धार्मिक बताया। सामाजिक कुरीतियों का विरोध करते हुये उन्होंने विधवा-विवाह पर बल दिया।

जांभोजी ने अपने अनुयायियों को 29 नियमों का पालन करने का निर्देश दिया। इसलिए इन 29 नियमों का पालन करने वाले विश्नोई कहलाये। इन नियमों में जैन धर्म, वैष्णव धर्म, नाथ पंथ और इस्लाम का व्यापक प्रभाव दिखाई देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जाम्भोजी ने सभी धर्मों के मूलभूत सिद्धांतों का समन्वय करके धार्मिक एकता का मार्ग प्रशस्त किया था।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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