इतिहासराजस्थान का इतिहास

भङोंच के गुर्जर-प्रतिहार

भङोंच के गुर्जर-प्रतिहार – सातवीं और आठवीं सदी के कुछ दान-पत्रों से पता चलता है कि भङोंच और उसके आसपास के क्षेत्रों पर गुर्जर-प्रतिहारों का शासन था। परंतु ये कौन थे। इस पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं। एक मान्यता के अनुसार भीनमाल के गुर्जरों ने ही भङोंच तक अपने राज्य का विस्तार किया था।

भङौंच के गुर्जर-प्रतिहार

कालांतर में भीनमाल तो उनके अधिकार से निकल गया परंतु भङोंच उनके अधिकार में बना रहा। डॉ.ओझा इस मत की पुष्टि करते हैं। दूसरी मान्यता के अनुसार भीनमाल की एक शाखा ने अलग होकर अपने लिये इस नवीन राज्य की स्थापना की हो।

परंतु दानपत्रों में उनके लिए सामंत तथा महासामंत जैसे शब्दों के प्रयोग से यह स्पष्ट है कि वे स्वतंत्र शासक न होकर किसी अन्य शक्ति के अधीन शासन करते रहे हों। यह अन्य शक्ति मंडौर के प्रतिहार, गुजरात के चालुक्य अथवा कलचुरियों की हो सकती है। जयभट्ट चतुर्थ इस शाखा का अंतिम शासक प्रतीत होता है। वह 735 ई. के आसपास हुआ। इसके बाद इस राजवंश का अंत हो गया। भङोच के गुर्जरों की राजधानी नान्दीपुरी थी।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : गुर्जर-प्रतिहार

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