हर्षकालीन संस्कृति का इतिहास
एक विजेता तथा साम्राज्य निर्माता होने के साथ-साथ हर्ष एक कुशल प्रशासक भी था। उसकी शासन-व्यवस्था के बारे में हमें बाणभट्ट के हर्षचरित तथा हुएनसांग के यात्रा-विवरण के साथ-2 उसके कुछ लेखों से प्राप्त होता है। यहाँ उल्लेखनीय है, कि हर्ष ने किसी नवीन शासन-प्रणाली को जन्म नहीं दिया, अपितु उसने गुप्त शासन प्रणाली को ही कुछ संशोधनों एवं परिवर्तनों के साथ अपना लिया। यहाँ तक कि शासन के विभागों एवं कर्मचारियों के नाम भी एक समान ही दिखाई देते हैं।
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गुप्त काल की शासन प्रणाली कैसी थी?
प्रशासन संबंधी व्यवस्था
हर्ष के समय में भी शासन व्यवस्था का स्वरूप राजतंत्रात्मक था। राजा अपनी दैवी उत्पत्ति में विश्वास करता था। वह महाराजाधिराज, परमभट्टारक, चक्रवर्ती, परमेश्वर जैसी महान उपाधियाँ धारण करता था। हर्षचरित में हर्षवर्धन को सभी देवताओं का सम्मिलित अवतार कहा गया है। उसकी तुलना शिव, इंद्र, यम, वरुण, कुबेर आदि से करते हुए सभी में सम्राट को श्रेष्ठ बताया गया है। उल्लेखनीय है, कि मौर्यकाल के बाद राजत्व में देवत्व के आरोपण की जो भावना प्रचलित हुई वह इस समय तक पूर्णरूपेण प्रतिष्ठित हो गयी थी। वह प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी था। …अधिक जानकारी
धर्म तथा धार्मिक जीवन
हर्षचरित से पता चलता है, कि शशांक पर आक्रमण करने से पहले उसने शिव की पूजा की थी। लगता है, कि बचपन से ही उसकी प्रवृत्ति बौद्ध धर्म की ओर हो गयी थी। उसने विन्ध्यवन में दिवाकरमित्र नामक बौद्ध भिक्षु से साक्षात्कार किया था, जिसका प्रभाव हर्ष पर बहुत अधिक पङा। चीनी यात्री हुएनसांग से मिलने के बाद तो उसने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को राज्याश्रय प्रदान किया था तथा वह पूर्ण बौद्ध बन गया। अन्य धर्मों में महायान की उत्कृष्टता सिद्ध करने के लिये हर्ष ने कन्नौज में विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों के आचार्यों की एक विशाल सभा बुलवायी। …अधिक जानकारी
सामाजिक जीवन
हुएनसांग भी ब्राह्मणों की प्रशंसा करता है, तथा उन्हें सबसे अधिक पवित्र एवं सम्मानित कहता है। उसके अनुसार ब्राह्मणों की अच्छी ख्याति के कारण ही भारत को ब्राह्मण देश भी कहा जाता था। इस काल के ब्राह्मणों ने अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ-याजन के पारस्परिक व्यवसाय के अतिरिक्त कृषि तथा व्यापार करना भी प्रारंभ कर दिया था। प्रशासन में भी उन्हें प्रतिष्ठित पद दिये जाते थे। इस काल के ब्राह्मण अपने गोत्र, प्रवर, चरण या फिर शाखा के नाम से प्रसिद्ध थे। इस समय ब्राह्मणों के हाथ में काफी भूमि आ गयी थी, जो उन्हें अनुदान में प्राप्त हुई थी। हर्षचरित से पता चलता है, कि सैनिक अभियान पर निकलने के पूर्व हर्ष ने मध्य देश में ब्राह्मणों को 1000 हलों के साथ 100 गाँव दान में दिये थे। यह भूमि लगभग दस हजार एकङ रही होगी। …अधिक जानकारी
आर्थिक दशा
हर्षकालीन भारत की आर्थिक दशा के विषय में हमें बाण के ग्रंथों, चीनी स्रोतों तथा तत्कालीन लेखों से जानकारी मिलती है। सभी स्रोतों से स्पष्ट हो जाता है, कि उस समय देश की आर्थिक दशा उन्नत थी। कृषि जनता की जीविका का मुख्य आधार थी। हुएनसांग लिखता है, कि उस समय देश की आर्थिक दशा उन्नत थी। कृषि जनता की जीविका का मुख्य आधार थी। …अधिक जानकारी
शिक्षा और साहित्य
हर्षवर्धन स्वयं एक उच्चकोटि का विद्वान था, अतः अपने शासन काल में उसने शिक्षा एवं साहित्य की उन्नति को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया। पूरे देश में अनेक गुरुकुल, आश्रम एवं विहार थे, जहाँ विद्यार्थियों को विविध विद्याओं की शिक्षा दी जाती थी। बाण के विवरण से पता चलता है, कि वेदों तथा वेदांगों का सम्यक् अध्ययन होता था। अनेक गोष्ठियाँ आयोजित होती थी, जहाँ महत्त्वपूर्ण विषयों पर वाद-विवाद होते थे। व्याकरण, रामायण, महाभारत आदि के अध्ययन में लोगों की विशेष रुचि थी। …अधिक जानकारी
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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