प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल पिपरहवा
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में नौगढ़ से 13 मील उत्तर की ओर नेपाल की सीमा से लगा हुआ यह प्राचीन बौद्ध-स्थल है। यहाँ से एक प्राचीनतम बौद्ध स्तूप तथा इसके भीतर रखी हुई बुद्ध के अस्थियों की मंजूषा मिली है। यह पाषाण की है। ब्राह्मी लिपि में एक लेख पर जो उत्कीर्ण है उससे पता लगता है कि इसका निर्माण शाक्यों ने करवाया था।
स्तूप का व्यास 119 फीट तथा उसकी ऊँचाई 21 फीट थी। मंजूषा में रखी हुई कुछ अन्य वस्तुयें यथा – मूर्तियाँ, रत्नपुष्प, नीलम, शंख, स्वर्ग पत्र आदि भी मिलती है। इसकी राजगिरी अत्यन्त कलात्मक है तथा रखी हुई मूर्तियाँ तथा आभूषण स्वर्गकारों एवं जोहरियों की उच्चस्तर की कलात्मक निपुणता को घोषित करते है।
पिपरहवा बौद्ध स्तूप उन आठ मौलिक स्तूपों में से एक है जिसका निर्माण बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद करवाया गया था। शाक्यों ने उनकी शरीर-धातु का एक भाग प्राप्त कर इसे बनवाया था। सम्प्रति स्तूप के अवशेष तथा मंजूषा लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है।
कुछ विद्वानों के अनुसार मौर्य गणराज्य की राजधानी पिप्पलिवन भी इसी स्थान में स्थित थी। आजकल इस स्थान को पिपरिया कहा जाता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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