शेरशाह सूरी की राजस्व व्यवस्था कैसी थी

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शेरशाह सूरी की राजस्व व्यवस्था कैसी थी?

Subhash Saini Changed status to publish अगस्त 11, 2020
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आय का मुख्य स्त्रोत लगान, लावारिस संपत्ति, व्यापारिक कर, टकसाल, नमक कर आदि थे। शेरशाह की वित्त व्यवस्था के अंतर्गत राज्य का मुख्य स्त्रोत भूमि पर लगने वाला कर था जिसे लगान कहा जाता था। शेरशाह की लगान व्यवस्था मुख्यरूप में रैय्यतवाङी थी जिसमें किसानों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित किया गया था।

शेरशाह ने उत्पादन के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में विभाजित किया-

  • अच्छी
  • मध्यम
  • खराब।

शेरशाह ने लगान निर्धारण के लिए मुख्यतः तीन प्रकार की प्रणालियाँ अपनायी-

  • गलाबख्शी अथवा बटाई
  • नश्क या मुक्ताई अथवा कनकूत
  • नकदी अथवा जब्ती ( जमई)।
  • शेरशाह ने भूमि कर निर्धारण के लिए राई (फसलदारों की सूची) को लागू करवाया।

शेरशाह ने भूमि की किस्म एवं फसलों के आधार पर उत्पादन का औसत निकलवाया और उसके बाद उत्पादन का 1/3 भाग कर के रूप में वसूल किया जाता था। शेरशाह द्वारा प्रचलित तीनों प्रणालियों में जब्ती या जमई (जिसे मापन पद्धति भी कहा जाता था) व्यवस्था किसानों में अधिक प्रिय थी।

शेरशह ने कृषि योग्य भूमि और परती भूमि दोनों की नाप करवायी। इस कार्य के लिए उसने अहमद खाँ की सहायता ली थी। जिसने हिन्दू ब्राह्मणों  की मदद से यह काम पूरा किया। शेरशाह ने भूमि की माप से लिए सिकंदरी गज (39अंगुल या 32इंच) एवं सन् की  डंडी का प्रयोग करवाया। शेरशाह ने सम्पूर्ण  साम्राज्य के उत्पादन का 1/3 भाग कर के रूप में लिया। जबकि मुल्तान से उपज का 1/4 हिस्सा लगान के रूप में वसूला जाता था।

मालगुजारी (लगान) के अतिरिक्त किसानों को जरीबाना ( सर्वेक्षण- शुल्क ) एवं महासिलाना ( कर-संग्रह शुल्क) नामक कर भी देने पङते थे, जो क्रमशःभू-राजस्व का 2.5 प्रतिशत एवं 5 प्रतिशत होता था।

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