आधुनिक भारतइतिहास

साम्प्रदायिक पंचाट क्या था

दूसरे गोलमेज सम्मेलन के अंत में रेम्जे मेक्डोनल्ड ने कहा था, कि यदि भारतीय प्रतिनिधि आपस में साम्प्रदायिक समस्या हल न कर सके, तो ब्रिटिश सरकार अपना निर्णय देने हेतु बाध्य हो जायेगी।

साम्प्रदायिक पंचाट ( saampradaayik panchaat )

चूँकि लंदन में विभिन्न जातियों के प्रतिनिधियों में कोई समझौता नहीं हो सका, अतः 16 अगस्त,1932 को मेक्डोनल्ड ने अपने निर्णय की घोषणा कर दी, जिसको साम्प्रदायिक पंचाट (कम्युनल एवार्ड) कहा जाता है। इस पंचाट में मुसलमानों,सिक्खों,ईसाइयों, एंग्लो-इंडियनों, व्यापारिक एवं औद्योगिक वर्ग, जमींदारों और विश्वविद्यालयों के लिए अलग चुनाव क्षेत्रों की व्यवस्था की गई, उनके लिए सीटें निश्चित कर दी गई।

साम्प्रदायिक पंचाट भारत के संवैधानिक इतिहास में सबसे अधिक घातक सिद्ध हुआ। इसके द्वारा हरिजनों को हिन्दुओं से अलग करने की कोशिश की गई। इसमें हिन्दुओं के साथ न्याय नहीं किया गया। जिन प्रांतों में हिन्दू अल्पमत में थे, वहाँ हिन्दुओं को वही रियायतें नहीं दी गई, जो मुसलमानों को उन प्रांतों में दी गई, जहां वे अल्पमत में थे।

भारतीय ईसाइयों ने कभी अलग प्रतिनिधित्व की माँग नहीं की थी, फिर भी यह पद्धति उन पर लाद दी गई। साम्प्रदायिक प्रणाली, जो भारतीय राष्ट्रवाद के लिए घातक थी, उसे न केवल जारी रखा गया, बल्कि उसका अधिक विस्तार भी कर दिया गया।

गाँधीजी को सबसे अधिक दुःख दलित वर्गों के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की स्थापना से हुआ। गाँधीजी ने इसके विरोध में 18 अगस्त,1932 को मेक्डोनल्ड को एक पत्र लिखा कि यदि 20 सितंबर,1932 तक दलित वर्गों के पृथक् निर्वाचन को नहीं समाप्त किया गया तो वे 20 सितंबर,1932 की दोपहर से आमरण अनशन कर देंगे।

ब्रिटिश सरकार ने इसकी कोई परवाह नहीं की। अतः 20 सितंबर,1932 को महात्मा गाँधी ने अपना आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।डॉ.अंबेडकर(Dr. Ambedkar) ने इसे राजनैतिक धूर्तता कहा।

पूना समझौता ( poona samajhauta )

किन्तु पं. मदनमोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा अन्य हिन्दुओं ने डॉ. अंबेडकर से विचार-विमर्श किया। अंत में 26 सितंबर,1932 को एक समझौते पर हस्ताक्षर हो गये, जिसे पूना समझौता कहते हैं। गाँधीजी ने 26 सितंबर को अपना अनशन समाप्त कर दिया।

डॉ. अंबेडकर ने अवसर का लाभ उठाते हुए 71 के स्थान पर 148 स्थान दलित वर्गों के लिए सुरक्षित करवा लिये। स्थानीय संस्थाओं तथा सार्वजनिक सेवाओं में हरिजनों को उचित प्रतिनिधित्व और हरिजनों को शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता देने की शर्त रखी गई।

गांधीजी द्वारा पूना पैक्ट स्वीकार करने से साम्प्रदायिक पंचाट को परोक्ष रूप से मान्यता प्राप्त हो गयी।अब तक साम्प्रदायिक समस्या केवल हिन्दुओं व मुसलमानों तक सीमित थी, लेकिन अब इस समस्या में दलित वर्ग भी सम्मिलित हो गया।

8 मई, 1933 को गाँधीजी ने आंदोलन समाप्त कर दिया तथा सरकार से बंदी सत्याग्रहियों को रिहा करने की माँग की। लेकिन सरकार ने इस माँग की भी उपेक्षा की।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!