प्राचीन भारतइतिहाससातवाहन वंश

सातवाहन कालीन स्थापत्य कला

स्तूप – सातवाहन सम्राटों की धार्मिक सहिष्णुता की नीति से दक्षिण भारत में बौद्ध कला को बहुत अधिक प्रोत्साहन मिला। इस समय नये स्तूपों का निर्माण हुआ तथा प्राचीन स्तूपों का जीर्णोद्धार किया गया।

स्तूप का शाब्दिक अर्थ है- ‘किसी वस्तु का ढेर’। स्तूप का विकास ही संभवतः मिट्टी के ऐसे चबूतरे से हुआ, जिसका निर्माण मृतक की चिता के ऊपर अथवा मृतक की चुनी हुई अस्थियों के रखने के लिए किया जाता था। गौतम बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं, जन्म, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन तथा निर्वाण से सम्बन्धित स्थानों पर भी स्तूपों का निर्माण हुआ। स्तूप के 4 भेद हैं- शारीरिक स्तूप, पारिभोगिक स्तूप, उद्देशिका स्तूप और पूजार्थक स्तूप।

स्तूप एक गुम्दाकार भवन होता था, जो बुद्ध से संबंधित सामग्री या स्मारक के रूप में स्थापित किया जाता था। सम्राट अशोक ने भी स्तंम्भ बनवाये थे। साँची के स्तूप का पता सन् 1818 ई. में ‘जनरल टायलर‘ ने लगाया था। विश्वप्रसिद्ध बौद्ध स्तूपों के लिए जाना जाने वाला साँची, विदिशा से 4 मील की दूरी पर 300 फीट ऊँची पहाड़ी पर है।

प्रमुख स्तूप निम्नलिखित हैं-

चैत्यगृह तथा विहार-

पर्वत गुफाओं को खोदकर गुहा विहार बनवाये जाते थे। प्राकृतिक गुफाओं में निवास करने की परम्परा आदिम युग से ही शुरू हो गई थी. आगे जाकर पत्थरों को काटकर तराशा जाने लगा और अपने निवास के लिए मनुष्य ने उन्हें शिलागृह का रूप दे दिया।राजगृह में स्थित सोणभण्डार और सप्तपर्णि गुफाएँ भिक्षुओं के आवास के लिए ही बनाई गई थीं।बिहार में ही बराबर और नागार्जुन पहाड़ियों को काटकर अशोक और उसके पुत्र दशरथ ने आजीवक सम्प्रदाय के साधुओं हेतु निवास हेतु गुफाओं का निर्माण करवाया था।इसी परम्परा की अगली कड़ी बौद्ध चैत्यों के रूप में पश्चिमी और दक्षिणी भारत में देखी जा सकती है।

चैत्य पूजा-भवन थे, इसलिए उनमें स्तूप का होना आवश्यक था।विहार बौद्ध भिक्षुओं के आवास के लिए बनाए जाते थे, इसलिए उनमें स्तूप का होना आवश्यक नहीं था।

प्रमुख चैत्य एवं विहार निम्नलिखित हैं-

पश्चिमी भारत के चैत्य एवं विहार-

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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