शक संवत् कब प्रारंभ हुआ था
जैनग्रन्थों के अनुसार विक्रमादित्य (57 ईसा पूर्व) के उत्तराधिकारी को उसके 135वें वर्ष में शकों ने पराजित कर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया। इस विजय के उपलक्ष्य में उन्होंने अपना संवत् चलाया जिसे ‘शक – संवत्’ कहा जाता है। इस प्रकार शक – संवत् की प्रारम्भिक तिथि 135 -57=78 ईस्वी निकलती है। इस संवत् के प्रवर्तक के विषय में भी मतैक्य नहीं है।
कुछ विद्वानों इसका प्रवर्त्तक किसी शक शासक को मानने के पक्ष में हैं। किन्तु अधिकांश यही स्वीकार किया जाता है कि प्रसिद्ध कुषाण शासक कनिष्क ही इसका प्रवर्त्तक था। पहले इसका कोई नाम नहीं था तथा मात्र संख्या में इसका उल्लेख होता था। शक शासक पहले कुषाणों के अधीन थे तथा इस संवत् का प्रयोग करते थे।
कुषाण शासकों का इतिहास जानने के साधन।
कुषाणों के पत्तन के बाद भी दीर्घकाल तक पश्चिमी भारत में शक – सत्ता बनी रही तथा लेखों में इस संवत् का प्रयोग होता रहा। अत: भारतीय परम्परा में कनिष्क( kanishk ) संवत् को शक – संवत् नाम प्रदान कर दिया गया। भारतीय लेखकों ने शक तथा कुषाणों में कोई विभेद नहीं किया है। यह भी इस नामकरण का कारण हो सकता है।
पाँचवी शती के बाद से ही लेखों में इसे शक – संवत् अथवा शक – काल ( shak – kaal ) नाम दिया गया है। यही आज भारत का राष्ट्रीय संवत् है।
अन्य महत्त्वपूर्ण संवत्
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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