प्राचीन भारतइतिहासपुष्यमित्र शुंगशुंग वंश
शुंग राजवंश की उत्पत्ति एवं इतिहास का वर्णन
शुंगों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों के अलग-2 मत हैं। शुंग वंश के राजा अपने नाम के अंत में मित्र शब्द का प्रयोग करते थे। अतः कुछ विद्वान शुंगों को मिथ्र (सूर्य) का उपासक मानते हैं।
शुंगों की उत्पत्ति से संबंधित महत्त्वपूर्ण मत निम्नलिखित हैं-
- पंडित हरप्रसाद शास्री ने यह मत प्रदिपादित किया है कि शुंग पारसीक थे तथा सूर्य के उपासक थे।
- बाणभट्ट के हर्षचरित में शुंगों को अनार्य कहा गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने शुंगों को निम्न जाति का बताया है। लेकिन यह मत मान्य नहीं है। क्योंकि बाणभट्ट ने शुंगों को अनार्य,पुष्यमित्र के कार्य (बृहद्रथ की धोखे से हत्या) के आधार पर कहा है।
- दिव्यावदान शुंगों को मौर्यों से संबंधित मानता है।
- पुराण पुष्यमित्र को शुंग कहते हैं।
- शुंग वंश को पाणिनि ने भारद्वाज गोत्र का कहा है।
- मालविकाग्निमित्रम् में पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र को बैम्बिक कुल का बताया है।
- तारानाथ ने भी पुष्यमित्र को ब्राह्मण बताया है।
- हरिवंश में पुष्यमित्र को काश्यप गोत्रीय द्विज बताया है।
इस प्रकार निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि शुंग प्रारंभ में मौर्य के पुरोहित रहें होंगे।
मौर्यों के इतिहास की जानकारी का वर्णन।
शुंग वंश का शासक वर्ग निम्नलिखित था-शुंगों के साहित्यिक स्रोत
- पुष्यमित्र शुंग
- अग्निमित्र – अग्निमित्र ने राजा की उपाधि धारण की थी।
- सुज्येष्ठ –
- वसुमित्र – वसुमित्र के नेतृत्व में शुंग सेना ने यवनों को पराजित किया था।यह पुष्यमित्र के समय में शुंग साम्राज्य की उत्तरी-पश्चिमी सीमा-प्रांत का राज्यपाल था।
- आंध्रक
- पुलिंदक
- घोष
- बज्रमित्र
- भागवत/भागभद्र – शुंग शासक भागवत के शासन काल के 14वें वर्ष तक्षशिला के यवन नरेश शासक एन्टीयालकीड्स का राजदूत (हेलियोडोरस) विदिशा में स्थित भागवत के दरबार में आया था।हेलियोडोरस ने विदिशा/बेसनगर (मध्यप्रदेश) में भागवत धर्म के सम्मान में गरुङध्वज स्थापित करवाया। (कृष्ण व विष्णु की पूजा)
- देवभूति – यह शुंग वंश का अंतिम शासक था। देवभूति के अधिकारी वसुदेव ने देवभूति की हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की।
Reference : https://www.indiaolddays.com/