इतिहासप्राचीन भारत

वेदों के ब्राह्मण ग्रंथों की जानकारी

संहिता के बाद वैदिक साहित्य में ब्राह्मण ग्रंथों का स्थान आता है। इनकी रचना यज्ञ के विधान तथा उसकी क्रिया को समझाने के लिये की गयी। इनका प्रधान यज्ञों का प्रतिपादन तथा उनकी विधियों की व्याख्या करना है। ब्रह्म का अर्थ यज्ञ होता है, अतः यज्ञीय विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ब्राह्मण कहे गये। जहाँ संहिता ग्रंथ स्तुति-प्रधान हैं, वहाँ ब्राह्मण ग्रंथ विधि-प्रधान हैं। ये अधिकांशतः गद्य में लिखे गये हैं।

प्रत्येक वेद के लिये अलग-अलग ब्राह्मण ग्रंथ लिखे गये। इनका विवरण निम्नलिखित है-

  1. ऋग्वेद से संबंधित ऐतरेय तथा कौषितकी।
  2. यजुर्वेद से संबंधित तैत्तिरीय तथा शतपथ।
  3. सामवेद से संबंधित पञ्चविंश, षडविंश, अद्भुत तथा जैमिनी।
  4. अथर्ववेद से संबंधित गोपथ ब्राह्मण।

इन ग्रंथों में शतपथ ब्राह्मण का सर्वाधिक महत्त्व है। इसमें चौदह काण्ड हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के यज्ञों का पूर्ण एवं विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार का विशद् एवं सांगोपांग वर्णन अन्यत्र दुर्लभ है। यज्ञीय कर्मकाण्डों के अतिरिक्त इसमें अनेक सामाजिक विषयों का वर्णन भी प्राप्त होता है।

ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञों के वर्णन के साथ ही साथ उदाहरणों के द्वारा उनसे मिलने वाले फलों को भी समझाया गया है। यज्ञों में निषिद्ध पदार्थों की निन्दा भी इनमें मिलती है। इस प्रकार ब्राह्मण ग्रंथ यज्ञों की वैज्ञानिक, आध्यात्मिक तथा आधिभौतिक मीमांसा प्रस्तुत करने वाले महान विश्वकोश हैं। संसार के किसी अन्य धार्मिक साहित्य में इस प्रकार के ग्रंथ सर्वथा अप्राप्य हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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