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1858 का अधिनियम क्या था?

1858 का अधिनियम

1858 का अधिनियम (1858 ka adhiniyam kya tha?) –

महारानी विक्टोरिया की घोषणा के आधार पर ब्रिटिश पार्लियामेंट ने सत्ता हस्तांतरण और भारत के श्रेष्ठतर शासन हेतु कानून पारित किया, जिसकी मुख्य धारायें निम्नलिखित थी-

शक्ति हस्तान्तरण – 1858 का अधिनियम के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और अब भारत का शासन ब्रिटिश सम्राट ने सीधे अपने हाथ में ले लिया। इसके साथ ही कंपनी की थल व जल सेना पर भी ब्रिटिश सम्राट का पूर्ण नियंत्रण हो गया। दोनों सेनाओं के पद एवं वेतन यथापूर्वक रखे गये। महारानी विक्टोरिया की घोषणा क्या थी

1858 का अधिनियम

भारत-सचिव की शक्ति – कंपनी के संचालक मंडल और बोर्ड ऑफ कंट्रोल का स्थान भारत सचिव ने ले लिया जो ब्रिटिश सरकार के पाँच सचिवों में से एक होता था और संसद के प्रति उत्तरदायी था, परंतु वेतन उसे भारत के राजस्व से देना निश्चित हुआ। वह भारतीय शासन का निरीक्षण, नियंत्रण व निर्देशन करता था।

भारतीय परिषद की रचना – भारत सचिव की सहायतार्थ एक 15 सदस्यीय भारतीय परिषद की भी रचना की गयी। इन सदस्यों का वेतन भी भारतीय राजस्व से दिया जाना तय हुआ।

भारत सचिव की स्थिति – भारत सचिव को भारतीय परिषद का अध्यक्ष बनाया गया और उसे अपिरिमित शक्तियाँ प्रदान की गयी। भारतीय राजस्व व विनियोग को छोङकर वह परिषद के निर्णयों को रद्द कर सकता था। वह गवर्नर जनरल और देशी नरेशों से गुप्त पत्र-व्यवहार भी कर सकता था।

भारत सचिव ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधि –1858 का अधिनियम के अनुसार भारत सचिव को एक प्रकार से ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधि बनाया गया जो भारत की नैतिक उन्नति का लेखा रखता था।

भारत परिषद की बैठक – सप्ताह में एक बार भारत परिषद की बैठक होना अनिवार्य था, जिसकी गणपूर्ति पाँच रखी गयी।

भारतीय राजस्व व संसद की अनुमति – भारतीय सीमाओं के बाहर सैनिक कार्यों के लिए भारतीय राजस्व का धन ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों की अनुमति से खर्च होना तय हुआ।

क्राउन की शक्ति – गवर्नर जनरल व गवर्नर्स की नियुक्ति की शक्ति क्राउन अर्थात सम्राट को दी गयी। भारतीय सचिव को परिषदों के अनेक सदस्यों की नियुक्ति की शक्ति दी गयी।

ब्रिटिश सरकार का दायित्व – कंपनी द्वारा लिये गये ऋण व उसके द्वारा की गयी संधियों का दायित्व भी ब्रिटिश सरकार को सौंपा गया।

1858 के अधिनियम का महत्त्व

1858 का अधिनियम द्वारा भारतीय प्रशासन में अनेक सुधार किए गए, किन्तु भारत सचिव को अपरिमित शक्तियाँ सौंप कर उसे निरंकुश बना दिया गया। इस अधिनियम द्वारा वेतन आदि के रूप में भारतीय राजस्व पर बहुत भार डाल दिया गया। महारानी विक्टोरिया की घोषणा में कोई ठोस बातें नहीं थी, जिनको इस अधिनियम में सम्मिलित किया जाता।

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