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उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश – प्रतिहार,पाल, राष्ट्रकूट

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश – हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उसके द्वारा प्राप्त की गई उत्तरी भारत की एकता समाप्त हो गयी। अर्जुन ने कन्नौज के सिंहासन पर अधिकार कर लिया। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद वाँग-ह्यान-त्से के नेतृत्व में आए चीनी दूत-मंडल का उसने विरोध किया। वाँग-ह्यान-त्से के साथ आने वाले रक्षकों की या तो हत्या कर दी गयी या उन्हें बंदी बना लिया गया। दूत-मंडल की संपत्ति और भारतीय राजाओं द्वारा उसे दिये गये उपहार लूट लिये गये। किन्तु रात्रि के समय वाँग-ह्यान-त्से को 1,200 चुने हुए सैनिक दिये और उनके अतिरिक्त वाँग-ह्यान-त्से नेपाल से 7,000 अश्वारोही प्राप्त करने में भी सफल हो गया। कामरूप के राजा भास्करवर्मा ने भी उसकी सहायता की और उसने तिरहुत के मुख्य नगर पर आक्रमण कर दिया। वहाँ की सेना के 3,000 सैनिकों की हत्या कर दी गई और 10,000 व्यक्ति नदी में डूब गये। अर्जुन परास्त हुआ और बंदी बना लिया गया। वाँग-ह्यान-त्से ने 1,000 बंदियों का वध कर दिया और संपूर्ण राजवंश को बंदी बना लिया। उसने 12,000 व्यक्ति बंदी बनाए और 13,000 से अधिक घोङे, गाएँ और बैल आदि भी प्राप्त किये। इस युद्ध में 580 प्राचीर-नगरों ने समर्पण कर दिया। वाँग-ह्यान-त्से अर्जुन को बंदी बना कर अपने साथ चीन ले गया।

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इन परिस्थितियों में उत्तरी भारत में अनेक राज्य स्थापित हो गये और उनमें सर्वोच्चता के लिये संघर्ष होना स्वाभाविक था। इस संघर्ष में चार राज्यों ने भाग लिया। यथा – कन्नौज, कश्मीर, मगध और राष्ट्रकूट वंश। कुछ समय के लिये कन्नौज का प्रतिहार वंश सर्वोच्च बन गया। उनके बाद पाल वंश ने उनका स्थान ग्रहण किया। राष्ट्रकूटों ने दक्षिण भारत के पश्चिम और दक्षिण में अपने राज्य का विस्तार किया था। पाल वंश के पतन के बाद अहिल्वाङ के चालुक्य वंश,जेजाकभुक्ति के चंदेल वंश, ग्वालियर के कच्छकपघाप वंश, दहाल के चेदी वंश, मालवा के परमार वंश, दक्षिणी राजपूताना के गुहिल वंश और शाकंभरी के चाहमान वंश ने उत्तरी भारत का विभाजन कर दिया।

इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि 750-1000 ईस्वी के मध्य उत्तर भारत और डेक्कन में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ था। जिनमें पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट सबसे महत्वपूर्ण थे। राष्ट्रकूट साम्राज्य सबसे लंबे समय तक चलने वाला साम्राज्य था जो अपने समय में सर्वाधिक शक्तिशाली भी था।


गुर्जर-प्रतिहारों का इतिहास में क्या योगदान था

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गुर्जर-प्रतिहार(Gurjara Pratihara) उत्तर भारत का प्रमुख राजवंश था। इस वंश की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग मत दिये हैं, जो इस प्रकार हैं-

गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति

प्रतिहार प्रसिद्ध गुर्जरों की एक शाखा थे। गुर्जर उन मध्य एशियाई कबीलों में से एक थे, जो गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद हूणों के साथ आए थे। राष्ट्रकूट रिकार्डों के अनुसार प्रतिहार गुर्जरों से संबद्ध थे। अबु जैद एवं अल-मसूदी जैसे अरब लेखकों ने उत्तर के गुर्जरों से उनके संघर्ष का उल्लेख किया है। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण कन्नङ के कवि पंपा का है,जिसने महीपाल को गुर्जरराज कहा है। यह नाम राष्ट्रकूट दरबार के प्रतिहार (उच्च अधिकारी) पद धारण करने वाले राजा से व्युत्पन्न है।

हूणों का प्रथम आक्रमण किसके काल में हुआ था ?…अधिक जानकारी

पाल वंश के शासकों का इतिहास

शशांक की मृत्यु के बाद 650 से 750 ई. के बीच बंगाल का इतिहास अराजकता तथा अव्यवस्तता से परिपूर्ण था, जिसका परिणाम था, राजनीतिक विघटन। इस अराजकता तथा अव्यवस्तता के विरुद्ध स्वाभाविक प्रतिक्रिया हुई। संभवतः बंगाल के मुख्य लोगों ने गोपाल को समूचे राज्य का शासक चुना। पाल वंश( Pala Empire) उत्तरी भारत का प्रमुख राजवंश था।…अधिक जानकारी

राष्ट्रकूट शासकों का इतिहास में योगदान

राष्ट्रकूट शासकों की उत्पत्ति – राष्ट्रकूट शब्द का अर्थ है – राष्ट्र नामक क्षेत्रीय इकाई के अधिकार वाला अधिकारी। 7 वी. तथा 8वी. शता. के भूमि अनुदानों में राष्ट्रकूटों से यह प्रार्थना की गई है, कि वे अनुदानित क्षेत्र की शांति भंग न करें। राष्ट्रकूट मूलतः महाराष्ट्र के लात्रालुर, आधुनिक लातूर के थे। वे कन्नङ मूल के थे तथा कन्नङ उनकी मातृ भाषा थी।…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी


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