गयासुद्दीन तुगलक का वारंगल अभियान कब किया गया?
गयासुद्दीन तुगलक का वारंगल अभियान – उत्तरी भारत के शासन तंत्र को ठीक करने के बाद और पूर्ण सत्ता स्थापित करके गयासुद्दीन ने दक्षिण पर आक्रमण करने के लिये बदायूँ,अवध,कङा,चंदेरी इत्यादि स्थानों से एक विशाल सेना को एकत्रित किया। उसने अपने बङे बेटे उलुग खाँ को चोल मंडल तट का प्रदेश विजित करने के लिये भेजा। उन दिनों वारंगल में काकतीय वंश के राजा प्रताप रुद्रदेव का शासन था। यद्यपि उसने अलाउद्दीन के समय में अपनी पराजय मानकर अधीनता भी स्वीकार की थी तथापि बाद में दिल्ली सल्तनत की कमजोरियों का लाभ उठाकर पुनः अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया और खराज देना भी ठुकरा दिया। उलुग खाँ विशाल सेना का नेतृत्व करते हुए दिल्ली से अग्रसर हुआ। वह दो महीने की यात्रा के बाद देवगिरि पहुँचा। उसे मराठा राज्य में स्थित शाही सेना भी सहयोग के लिये प्राप्त हुई। मार्ग में भी उसका कोई विरोध नहीं हुआ। वारंगल पहुँचकर उसने दुर्ग की घेराबंदी आरंभ की जो दक्षिण में अपनी विशालता और दृढता के लिए प्रसिद्ध था। उसमें सत्तर बुर्ज थे और प्रत्येक की रक्षा एक नायक कर रहा था। वारंगल का घेरा आठ महीने तक चलता रहा। किंतु फिर भी सुल्तान की सेना सफलता प्राप्त न कर सकी। युद्ध सामग्री एकत्रित करने के लिए उलुग खाँ ने अपने कुछ अमीरों को आदेश दिया कि वह तेलंगाना प्रदेश का विध्वंश करके सेना के लिये आवश्यक सामग्री और खाद्यान्न प्राप्त करे। इस प्रकार से घेरा डालने वालों ने प्रदेश को नष्ट करने और दुर्ग की सेना की आवश्यकता पुरी करने वाले सभी साधनों को रोकने की दोहरी नीति अपनाई। चूँकि रुद्रदेव संकटग्रस्त था। इसीलिए उसने संधि वार्ता प्रारंभ की और इस शर्त पर खराज देने का प्रस्ताव रखा कि राजकुमार घेरा उठाकर वापस चला जाए। उसने सोचा मलिक काफूर की भाँति उसके द्वारा दिल्ली के सुल्तान की सर्वसत्ता स्वीकार करने से उलुग खाँ संतुष्ट हो जाएगा। किंतु उलुग खाँ का उद्देश्य उसकी समस्त संपत्ति, राजकोष और प्रदेश पर अधिकार करना था, ऐसी स्थिति के कारण उसने संधि की शर्तों पर बातचीत करना ठुकरा दिया।
इस घटना के संबंध में चार लेखकों के परस्पर विरोधी विचार प्राप्त होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
बरनी के अनुसार उलुग खाँ की हार इस अवसर पर उसके दो साथियों उबैद खाँ तथा शेखजादा दमश्की के कपटपूर्ण व्यवहार के कारण हुई। प्रताप रुद्रदेव ने हार मानकर संधि वार्ता प्रारंभ की तो वह एक मास तक चलती रही शाही सेना की हिम्मत जवाब दे गयी, क्योंकि संचार व्यवस्था टूट जाने के कारण सेना में दिल्ली से कोई पत्र तक नहीं पहुँचा, जिससे सैनिकों में बहुत अधिक बेचैनी और आशंका उत्पन्न हुई इन परिस्थितियों में उबैद और दाश्मिक ने सुल्तान की मृत्यु की झूठी खबर फैला दी और कुछ बङे अमीरों से भी कह दिया कि उलुग खाँ सुल्तान को कत्ल करना चाहता है। शाही शिविर में बङी व्याकुलता और हलचल मच गई। वरिष्ठ अधिकारी दिल्ली लौटने के लिए व्याकुल हो गए। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर राय प्रताप रुद्रदेव की सेना शाही सेना पर टूट पङी और उलुग खाँ को अपनी रक्षा के लिए देवगिरि तक पीछे हटना पङा और वही उसे शरण प्राप्त हुई।
तारीख-ए-मुबारक शाही के लेखक यह्या-बिन-अहमद के अनुसार उबैद और दमश्की के उद्देश्य उलुग खाँ की सेना में केवल विद्रोह फैलाना ही नहीं था अपितु वे उसका कत्ल भी करना चाहते थे।
अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता (जो इस घटना के कई वर्ष बाद भारतवर्ष आया, लिखता है कि उबैद को उलुग खाँ ने स्वयं सुल्तान की मौत का समाचार फैलाने का आदेश दिया, क्योंकि उसे आशा थी कि यह खबर पाते ही सेना उसे बादशाह स्वीकार कर लेगी। किंतु इस युक्ति का उल्टा ही असर हुआ। सुल्तान की मृत्यु की खबर पाकर सैनिकों ने विद्रोह किया और उलुग खाँ को मार डालना चाहा। परंतु किसी तरह वह बचकर दिल्ली पहुँचा तथा अपने पिता को किसी प्रकार समझाने बुझाने में सफल हो गया जिससे उसके दोषों पर पर्दा पङ गया सुल्तान ने विद्रोहियों को पकङकर कठोर यातनाएँ दी। कुछ के सर काट डाले गए तथा बाकी को हाथियों के पैरों के नीचे कुचल दिया गया। उबैद खाँ तथा शेरजादा को जीवित ही जमीन में दफना दिया गया।) उलुग खाँ को बहुत सा धन तथा सेना देकर वापस भेजा गया। लेकिन वह वृतांत विश्वसनीय नहीं जान पङता क्योंकि गयासुद्दीन जैसा अनुभवी तथा कठोर सेनानी कभी ऐसी भूल नहीं कर सकता था।
इसामी जो दक्षिण का रहने वाला था जिसके कारण उसे वास्विकता को जानने का अधिक अवसर प्राप्त हुआ। उसके अनुसार उलुग खाँ वारंगल में प्रवेश करते ही चारों ओर लूट मार प्रारंभ कर दी। किंतु जब छह महीनों तक को सफलता प्राप्त न हुई तो उलुग खाँ ने उबैद खाँ को (जो ज्योतिषी भी था) भविष्यवाणी करने के लिये बुलाया कि वह दुर्ग की पराजय की तिथि बताए और यह भी कहा गया कि अगर तिथि असत्य निकली तो उसे मरवा दिया जाएगा। जब तिथि असत्य निकली तो उसने अपने आपको बचाने के लिये सेना में उपद्रव फैलाने का विचार किया। अतः उसने अधिकारियों में सुल्तान सुल्तान की मृत्यु की झूठी अफवाह फैला दी और कहा कि उलुग खाँ इस सूचना को इसलिए छुपा रहा है कि वह उन सबका वध कराना चाहता है। इस समाचार से भयभीत होकर बहुत से सैनिक उलुग खाँ को छोङकर वापस जाने के लिये तत्पर हो गए। यह उलुग खाँ के लिये भीषण आघात था जब कि विजय दूर नहीं रह गयी थी। उलुग खाँ ने बङी कठिनाई से अपनी जान बचाई। अतः इन मतों के आधार पर हम कह सकते हैं कि यह निश्चित है, कि उबैद की साजिश और झूठी खबरें उङाने के कारण ही उलुग खाँ को वारंगल का घेरा उठाने पर विवश होना पङा।