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अरब सभ्यता का इतिहास

अरब देश में जब इस्लाम का उदय हुआ था, अब अरब देश दक्षिणी पश्चिमी एशिया का सबसे बड़ा प्रायद्वीप है, जो क्षेत्रफल में यूरोप के चतुर्थ तथा संयुक्त राज्य अमरीका के तृतीय भाग के बराबर है। इस देश के अधिकतर भाग मरुस्थल तथा पर्वतीय हैं।

इस्लाम धर्म का जन्म सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ था।

मक्का में शिव का महादेव का मंदिर था। इस मंदिर को मकेश्वर महादेव का मंदिर कहा जाता था। इस्लाम धर्म से पहले मक्का में शिवलिंग को पूजा जाता था।

यहाँ के निवासियों को अरब कहते हैं, जिनका संबंध सामी वंश से है। इसी वंश से संबंधित अन्य सभ्य जातियाँ जैसे – बाबुली (बाबिलोनियन), असुरी (असीनियन), किल्दानी, अमूरी, कनानी, फिनीकी तथा यहूदी हैं।

7वीं शता. में एक नए धर्म इस्लाम ने अरब में जन्म लिया। सातवीं सदी तक अरबों का इतिहास कबीलों के झगड़ों और छिटपुट रूप से विदेशी प्रभुत्व की कहानी लगती है। इस्लाम ने थोङे ही समय में न केवल प्रतिद्वंद्वी कबीलों के बीच एकता कायम की, बल्कि उसके परिणामस्वरूप एक बङे साम्राज्य की स्थापना हुई और एक नई सभ्यता का उदय हुआ, जो अपने समय की सबसे उत्कृष्ट सभ्यता थी। प्राचीन काल में दिल्मन सभ्यतासुमेर तथा मिस्र की प्राचीन सभ्यता के समकालीन थी। सन् 3500-2500 ईसापूर्व के मध्य में कुछ अरबों का बेबीलोनियाअसीरिया के इलाके में आगमन अरबों के इतिहास की पहली महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

अरबों की देन

शिक्षा

पैगंबर के एक निर्देश के अनुसार प्रत्येक मुसलमान का यह कर्त्तव्य है, कि वह ज्ञान की खोज करे। अरबों ने समस्त ज्ञान को अपनाकर उसे विकसित किया।

चिकित्सा

अरबों ने अनेक महान चिकित्सक प्रदान किये। अल-राजी नामक अरब वैज्ञानिक ने चेचक का उचित रूप से निदान किया।

अल – राजी को यूरोप में रहैजेस के नाम से जाना जाता था। इब्न-सिना जो मध्यकालीन यूरोप में एविसेन्ना के नाम से मशहूर था, ने पता लगाया कि तपेदिक छूत का रोग है।

इब्न-सिना ने तंत्रिका तंत्र संबंधी अनेक रोगों का वर्णन किया। अरबों ने प्लेग, आँख के रोगों, छूत की बीमारियों के फैलने आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करने और अस्पतालों के संगठन में बहुत प्रगति की।

अंक एवं गणित

गणित के क्षेत्र में अरबों ने भारतीय अंक – प्रणाली सीखी और उसे दूर-दूर तक फैलाया। इसी कारण ये अंक अब भी पश्चिमी देशों में अरबी अंक कहलाते हैं।

अरबों ने बीचगणित, त्रिकोणमिति और रसायन शास्त्र का भी विकास किया। उमर ख्य्याम ने एक पंचांग बनाया, जो ईसाइयों के उस पंचांग से अधिक शुद्ध है, जिसे संसार के अनेक देशों में प्रयुक्त किया जाता है। अरब ज्योतिषियों का अनुमान था, कि पृथ्वी संभवतः अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। अरब निवासियों ने रसायन शास्त्र में अनेक प्रयोग किये।

जिनसे अनेक नये मिश्रणों जैसे – सोडियम कार्बोनेट, सिल्वर नाइट्रेट और शोरे तथा गंधक के तेजाबों का पता किया।

दर्शन और जीवन

दर्शनशास्त्र में भी अरबों की उपलब्धियाँ महत्त्वपूर्ण थी। यूनान का ज्ञान और बौद्धिक परंपराएँ सीरिया और फारस के माध्यम से अरबों को मिली। इब्न-सिना को यूरोप में एक दार्शनिक के रूप में जाना जाता था। अबू अल-वलीद मुहम्मद इब्न-रुश्त को यूरोपवासी ऐवरोंज के नाम से जानते थे। मध्यकालीन इस्लामी साहित्य को मुख्य प्रेरणा ईरान (फारस) से मिली।

इस काल की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं – उमर, खय्याम की रुबाइयाँ, फिरदौसी का शाहनामा और एक हजार एक कहानियों का संग्रह अलिफ लैला जिसकी कहानियों से तत्कालीन संस्कृति और समाज के विषय में काफी जानकारी मिलती है।

अरबी कला

अरबी कला पर बाइजेंटाइन और ईरान की कला का प्रभाव पङा, किन्तु अरब निवासियों ने अलंकरण के मौलिक नमूने निकाल लिये।

उनके भवनों पर बल्बों जैसे गुंबद, छोटी मीनारें, घोङों के खुरों के आकार के मेहराब और मरोङदार स्तंभ होते थे। अरब वास्तुकला की विशेषताएँ तत्कालीन मस्जिदों, पुस्तकालयों, महलों, चिकित्सालयों और विद्यालयों में देखी जा सकती है।

अरबों ने लिखने की एक अलंकृत शैली का भी आविष्कार किया, जिसे खुशखती कहते हैं। इससे उन्होंने पुस्तक सजाने के कार्य को भी कला के रूप में विकसित किया।

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