पल्लव काल में राजसिंह कला शैली (674-800ई.)
राजसिंह कला शैली का प्रारंभ पल्लव नरेश नरसिंहवर्मन द्वितीय ‘राजसिंह‘ ने किया। इसके अंदर गुहा-मंदिरों के स्थान पर पाषाण, ईंट आदि की सहायता से इमारती मंदिरों का निर्माण करवाया गया। इस शैली के मंदिरों में से तीन महाबलीपुरम से प्राप्त होते हैं – शोर-मंदिर (तटीय शिव मंदिर), ईश्वर मंदिर तथा मुकुन्द मंदिर।
शोर मंदिर इस शैली का प्रथम उदाहरण है। इनके अलावा पनमलाई (उत्तरी अर्काट) मंदिर तथा काञ्ची के कैलाशनाथ एवं वैकुण्ठपेरूमाल मंदिर भी उल्लेखनीय हैं।
शोर-मंदिर
महाबलीपुरम के समुद्र तट पर स्थित शोर-मंदिर पल्लव कलाकारों की अद्भुत कारीगरी का नमूना है। मंदिर का निर्माण एक विशाल प्रांगण में हुआ है, जिसका प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर है। इसका गर्भगृह धर्मराज रथ के समान वर्गाकार है, जिसके ऊपर अष्टकोणिक शुंडाकार विमान कई तल्लों वाला है। ऊपरी तल्ले क्रमशः छोटे होते गये हैं। गर्भगृह समुद्र की ओर है तथा इसके चारों ओर प्रदक्षिणापथ है। मुख्य मंदिर के पश्चिमी किनारे पर बाद में दो और मंदिर जोङ दिये गये। इनमें से एक छोटा विमान है। बढे हुये भागों के कारण मुख्य मंदिर की शोभा में कोई कमी नहीं आने पाई है। इसका शिखर सीढीदार है तथा उसके शीर्ष पर स्तूपिका बनी हुई है। यह अत्यन्त मनोहर है। दीवारों पर गणेश, स्कंद, गज, शार्दूल आदि की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। इसमें सिंह की आकृति को विशेष रूप से खोद कर बनाया गया है। घेरे की भव्य दीवार के मुङेर पर उँकडू बैठे हुए बैलों की मूर्तियाँ बनी हैं तथा बाहरी भाग के चारों ओर थोङी-थोङी अन्तराल पर सिंह-भित्ति-स्तंभ बने हैं। इस प्रकार यह द्रविङ वास्तु की एक सुन्दर रचना है। शताब्दियों की प्राकृतिक आपदाओं की उपेक्षा करते हुये यह आज भी अपनी सुन्दरता को बनाये हुये हैं।
कैलाशनाथ मंदिर
कांची स्थित कैलाशनाथ मंदिर राजसिंह शैली के चरम उत्कर्ष को व्यक्त करता है। इसका निर्माण नरसिंहवर्मन द्वितीय (राजसिंह) के समय से प्रारंभ हुआ तथा उसके उत्तराधिकारी महेन्द्रवर्मन द्वितीय के समय में इसकी रचना पूर्ण हुई। द्रविङ शैली की सभी विशेषतायें जैसे – परिवेष्ठित प्रांगण, गोपुरम्, स्तंभयुक्त मंडप, विमान आदि इस मंदिर में एक साथ दिखाई देती हैं। इसके निर्माण में ग्रेनाइट तथा बलुआ पत्थरों का उपयोग किया गया है। इसका गर्भगृह आयताकार है, जिसकी प्रत्येक भुजा 9 फीट की है। इसमें पिरामिडनुमा विमान तथा स्तंभयुक्त मंडप है। मुख्य विमान के चारों ओर प्रदक्षिणापथ है। स्तंभों पर आधारित मंडप मुख्य विमान से कुछ दूरी पर बना है। पूर्वी दिशा में गोपुरम् दुतल्ला है। संपूर्ण मंदिर ऊँचे परकोटों से घिरा हुआ है। मंदिर में शैव संप्रदाय एवं शिव लीलाओं से संबंधित अनेक सुन्दर-सुन्दर मूर्तियाँ अंकित हैं, जो उसकी शोभा को बढाती हैं।
बैकुण्ठपेरुमाल का मंदिर
कैलाशनाथ मंदिर के कुछ बाद का बैकुण्ठपेरुमाल का मंदिर है। उसका निर्माण परमेश्वरवर्मन द्वितीय के समय में हुआ था। यह भगवान विष्णु का मंदिर है, जिसमें प्रदक्षिणापथ युक्त गर्भगृह एवं सोपानयुक्त मंडप है। मंदिर का विमान वर्गाकार एवं चारतल्ला है। प्रथम तल्ले में विष्णु की अनेक मूर्तियाँ बनी हुई हैं। साथ ही साथ मंदिर की भीतरी दीवारों पर युद्ध, राज्याभिषेक, अश्वमेघ, उत्तराधिकार-चयन, नगर-जीवन आदि के दृश्यों को भी अत्यन्त सजीवता एवं कलात्मकता के साथ उत्कीर्ण किया गया है। ये विविध चित्र रिलीफ स्थापत्य के सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इन चित्रों के माध्यम से तत्कालीन जीवन एवं संस्कृति की जानकारी प्राप्त होती है। मंदिर में भव्य एवं आकर्षक स्तंभ लगे हैं। पल्लव कला का विकसित स्वरूप इस मंदिर में दिखाई देता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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