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शैव धर्म महत्त्वपूर्ण तथ्य

शिव भक्ति की प्रारंभिक जानकारी सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों से होती है। शैव मत का उदय शुंग-सातवाहन काल में हुआ था। गुप्तकाल में शैव धर्म चरमोत्कर्ष पर था। ऋग्वेद में उन्हें पशुपति अथवा पशुओं का रक्षक कहा गया है।

शैव धर्म के पाँच सिद्धांत

  1. कार्य,
  2. कारण,
  3. योग,
  4. विधि तथा
  5. दुःखान्त

उपनिषदों में शिव दर्शन और ज्ञान तत्व की मीमांसा की गयी है तथा उनका संबंध ईश्वर, जीव और प्रकृति तत्वों से स्थापित किया गया है।

महाभारत में शिव का वर्णन श्रेष्ठ देवता के रूप में हुआ है, जिनसे पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के लिये अर्जुन को हिमालय जाना पङा था।

अभिज्ञान शाकुन्तलम में शिव के अष्ट रूप की इस प्रकार की व्याख्या की गयी है – जल, अग्नि, होता, सूर्य, चंद्र, आकाश, पृथ्वी और वायु।

यह माना गया है, कि ब्रह्मा जगत के सृष्टा हैं, विष्णु पालक हैं, और शिव संहारक हैं।

पुराणों में शिव की त्रयम्बकम भव, शर्व, महादेव, ईशान, शंकर, शूली, त्रिशूलधारी, पिनाकी, नील, लोहित, नील ग्रीव, शिविकंठ, सहस्त्राक्ष, वृषभध्वज, पशुपति, अति भैरव, आदि विभिन्न नामों से स्तुति की गयी है।

खजुराहो में उद्यन द्वारा एक मनोरम शिव मंदिर की स्थापना की गयी थी।

खजुराहो के कंदरिया महादेव का मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।

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भीम प्रथम शिवोपासक था। उसने सोमनाथ का प्रस्तर का मंदिर बनवाया था, जो कालांतर में महमूद गजनवी ने नष्ट कर दिया था, उसके बाद कुमारपाल ने उसका पुनः निर्माण करवाया था। वायु पुराण और लिंग पुराण के विवरणों के अनुसार पाशुपत मत का उद्भव लकुलिन अथवा लकुलीश नामक ब्रह्मचारी द्वारा हुआ था, जो शिव के अवतार थे।

कापालिकों के इष्ट भैरव हैं, जो शिव के अवतार माने जाते हैं। राष्ट्रकूट शासकों ने एलोरा के विख्यात कैलाश मंदिर का निर्माण कराया था। राजराज प्रथम (चोल शासक)ने तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण किया था, जो वृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है।

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