आधुनिक भारतइतिहासविवेकानंद स्वामी

स्वामी विवेकानंद(swami-vivekananda) के आदर्श कार्य(विचार)

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स्वामी विवेकानंद जी (Swami Vivekananda)ने 19वी. शता. के धर्म एवं समाज सुधार आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके इस आंदोलन से संबंधित कार्य निम्नलिखित थे-

धार्मिक सुधार के कार्य-

स्वामी विवेकानंद हिन्दू, मुसलमान,ईसाई आदि किसी में भेद नहीं मानते थे।विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने सभी धर्मों की सत्यता में विश्वास व्यक्त किया। उनको जितने वेद मान्य थे उतने ही उपनिषद, पुराण,महाभारत आदि भी मान्य थे। उनको ईश्वर के निराकार रूप की उपासना में जितनी रुचि थी, उतनी ही साकार रूप में थी। उन्होंने धार्मिक उदारता, समानता और सहयोग पर बल दिया। उन्होंने धार्मिक झगङों का मूल कारण बाहरी चीजों पर अधिक बल देना बताया है। सिद्धांत, धार्मिक क्रियाएँ, पुस्तकें,मस्जिद, गिर्जे आदि जिनके विषय में मतभेद हैं, केवल साधन मात्र हैं। इस कारण इन पर अधिक बल नहीं देना चाहिये। उन्होंने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा,धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्व का विकास है, धर्म न तो पुस्तकों में है, न धार्मिक सिद्धांतों में। यह केवल अनुभूति में निवास करता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य सर्वत्र अन्न ही खाता है, किन्तु देश-2 में अन्न से भोजन तैयार करने की विधियां अनेक हैं। इसी प्रकार धर्म मनुष्य की आत्मा का भोजन है और देश-2 में उसके भी अनेक रूप हैं। इससे यह स्पष्ट है कि सभी धर्मों में मूलभूत एकता है, यद्यपि उसके स्वरूप भिन्न हैं। उन्होंने अन्य धर्म-प्रचारकों को बताया कि भारत ही ऐसा देश है, जहाँ कभी धार्मिक भेदभाव नहीं हुआ। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि धर्म-परिवर्तन से कोई लाभ नहीं है, क्योंकि प्रत्येक धर्म का लक्ष्य समान है। उन्होंने ईसाई धर्म के अनुयायियों को स्पष्ट किया कि भारत में ईसाई धर्म के प्रचार से उतना लाभ नहीं हो सकता जितना पश्चिमी औद्योगिक तकनीकी तथा आर्थिक ज्ञान से हो सकता है। भारत पर विजय राजनीतिक हो सकती है, सांस्कृतिक नहीं।

इसके साथ ही स्वामी जी ने हिन्दू धर्म की महानता का प्रदर्शन कर,भारत का मस्तक गौरव से ऊँचा किया। उन्होंने हिन्दू धर्म को सत्यम् शिवम् सुंदरम् पर आधारित बताया। उन्होंने प्रत्येक को इस बात का संदेश दिया कि हिन्दू राष्ट्र विश्व का शिक्षक रहा है और भविष्य में रहेगा भी।प्रत्येक हिन्दू को अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए। इन सबके साथ ही पाश्चात्य शिक्षा को भी अपनाना चाहिए।उन्होंने वेदांत दर्शन के सत्य की सुंदर ढंग से व्याख्या की और बताया कि वेदांत की आध्यात्मिकता के बल पर भारत सारे विश्व को जीत सकता है। विवेकानंद ने बताया कि ईश्वर या ब्रह्म से साक्षात्कार करने के लिए सांसारिक जीवन से विमुख होना अनुचित है। उन्होंने दृढतापूर्वक कहा कि सच्ची ईश्वरोपासना यह है कि हम अपने मानव बंधुओं की सेवा में अपने आपको लगा दें। उन्होंने दीन-दुःखी तथा दरिद्र मानव को ईश्वर का रूप बताया और उसके लिए दरिद्रनारायण शब्द का प्रयोग किया। जब पङोसी भूखा हो तब मंदिर में भोग चढाना पुण्य नहीं, बल्कि पाप है। स्वामीजी की इन घोषणाओं ने धार्मिक क्षेत्र में एक महान क्रांति उत्पन्न कर दी। जो लोग पश्चिम की भौतिकता तथा बुद्धिवाद से प्रभावित होकर ईसाइयत अथवा नास्तिकता की ओर दौङ रहे थे, उनकी आँखें खुल गई। लोगों में मानसिक दासता तथा आत्महीनता की भावना समाप्त होकर उनमें आत्म गौरव की भावना जागृत हुई। स्वामीजी की यह स्पष्ट मान्यता थी कि धर्मों की विभिन्नता स्वाभाविक है और आवश्यकता भी। उन्होंने कहा था, तुम सभी व्यक्तियों की विचारधारा को एक नहीं कर सकते, यह सत्य है और मैं इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ। विचारों की भिन्नता और संघर्ष से ही नवीन विचार जन्म लेते हैं।

समाज सेवा के कार्य-

स्वामी जी ने अपने धर्म में मानव समाज की सेवा को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। वे शिक्षा,स्त्री पुनरुद्धार तथा आर्थिक प्रगति के पक्ष में थे। रूढिवादिता,अंधविश्वास, निर्धनता और अशिक्षा की उन्होंने कटु आलोचना की। उन्होंने यह भी कहा कि,जब तक करोङों व्यक्ति भूखे और अज्ञानी हैं, तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को देशद्रोही मानता हूँ, जो उन्हीं के खर्च पर शिक्षा प्राप्त करता है, किन्तु उनकी परवाह बिल्कुल नहीं करता है। इस प्रकार समाज सेवा स्वामी जी का प्रथम धर्म था। उनकी मान्यता थी कि देश की गरीबी को दूर करना आवश्यक है। वे कहा करते थे कि देशवासियों के उद्धार के पुनीत कार्य के लिये उन्हें मोक्ष छोङकर नरक में भी जाना स्वीकार है। स्वामीजी छुआछूत के घोर विरोधी थे तथा जन्म पर आधारित वर्ण-भेद को नहीं मानते थे। किन्तु स्वामी जी, प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक सुधारों में विश्वास नहीं करते थे। उनका कहना था कि आध्यात्मिकता से आत्मनिर्माण होता है और आत्मनिर्माण से ही देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति संभव है। आध्यात्मवाद द्वारा पहले वे मनुष्य को मनुष्य बनाना चाहते थे और उसी को वे प्रगति का आधार मानते थे। उन्होंने मान्यता थी कि संन्यास के साथ-2 सेवाभाव उतना ही महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिये। वे पश्चिम की जीवन पद्धति से काफी प्रभावित थे। उन्होंने जन-कल्याण के लिये संगठित प्रयत्नों पर बल दिया। अतः समाज कल्याण के लक्ष्यों की प्राप्ति कि लिये ही उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, जहाँ दीन दुखियों की सहायतार्थ विभिन्न जातियाँ, वर्ग और धर्म मिल सकते थे। उनका कहना था कि गरीबों की सहायता करना ईश्वर -प्राप्ति के मार्ग में एक यज्ञ होगा। विवेकानंद की सबसे बङी सफलता यह थी कि उन्होंने संन्यासियों के समक्ष व्यक्तिनिष्ठ मोक्ष की अपेक्षा समाज सेवा के आदर्श प्रस्तुत किये।

राष्ट्रीयता का निर्माण-

स्वामी विवेकानंद(Swami Vivekananda) ने राष्ट्रीयता के निर्माण में भी भारी योगदान दिया। उन्होंने समस्त हिन्दू धर्म और आध्यात्मवाद की श्रेष्ठता को स्थापित किया, जिससे हिन्दुओं में आत्मगौरव और देशप्रेम उत्पन्न हुआ। उन्होंने वेदांत की मुख्य शिक्षा यह बताई कि प्रत्येक व्यक्ति अपने में ईश्वर की ज्योति देख सकता है। जिस प्रकार ईश्वर सदा स्वतंत्र है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति भी सदा स्वतंत्र है।

इस प्रकार विवेकानंद ने हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की अद्वितीय सेवा की। उनके उपदेशों से भारतीयों को अपने उज्जवल अतीत का ज्ञान हुआ, जिससे उनमें अपने अतीत के प्रति अभिमान पैदा हुआ। इसीलिए रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है , यदि कोई भारत को समझना चाहता है तो उसे विवेकानंद को पढना चाहिए। इसी प्रकार अरविन्द ने लिखा है, पश्चिमी भारत में विवेकानंद को जो सफलता मिली, वही इस बात का प्रमाण है कि भारत केवल मृत्यु से बचने को जागृत नहीं हुआ है, एक बार इस हिन्दू संन्यासी को देख लेने के बाद उसे और उसके संदेश को भुला देना मुश्किल है। स्वामी जी की मृत्यु के बाद उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन उनके महान् कार्यों को सफलतापूर्वक कर रहा है।आध्यात्मिकता के प्रसार के लिए दो समाचार-पत्र प्रबुद्ध भारत अंग्रेजी भाषा का मासिक तथा उद्बोधन बंगाली भाषा का पाक्षिक निकाले जाते रहे। स्वामीजी के भाषणों का कई ग्रंथों में प्रकाशन हुआ। रामकृष्ण मिशन की शाखाएँ भारत के विभिन्न नगरों में विद्यमान हैं तथा अनेक कल्याणकारी कार्य कर रही हैं। चिकित्सालय,अनाथालय, विद्यालय,वाचनालय आदि स्थापित करके यह संस्था आज भी समाज सेवा कार्यों में लगी हुई है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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