प्राचीन भारतइतिहासवाकाटक वंश

वाकाटकों की प्रधान शाखा के शासकों की सूची

प्रवरसेन प्रथम के चार पुत्र थे, जो उसके समय में साम्राज्य के विभिन्न भागों के राज्यपाल बनाये गये थे।प्रवरसेन की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी अलग-2 स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। उसका ज्येष्ठ पुत्र गौतमीपुत्र उसी के काल में मर गया तथा दूसरे पुत्र बासीम ने एक दूसरी शाखा की स्थापना की, जिसने लगभग 525 ईस्वी तक राज्य किया।

रुद्रसेन प्रथम

वाकाटक वंश की प्रधान शाखा का पहला शासक प्रवरसेन प्रथम का पौत्र तथा गौतमीपुत्र का पुत्र रुद्रसेन प्रथम (335-360 ईस्वी) हुआ। वह पद्मावती (ग्वालियर) के भारशिव नाग शासक भवनाग की कन्या से उत्पन्न हुआ था।अपने नाना भवनाग की सहायता से उसने अपने दो विरोधी चाचाओं को जीत लिया। परंतु सर्वसेन को वह पराजित नहीं कर सका। वह एक निर्बल शासक था, जिसके काल में वाकाटकों की शक्ति और प्रतिष्ठा को हानि हुई। कुछ विद्वान रुद्रसेन की पहचान प्रयाग प्रशस्ति के रुद्रदेव से करते हैं, जिसे समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त्त के युद्ध में उन्मूलित किया था।...अधिक जानकारी

पृथ्वीसेन प्रथम

रुद्रसेन प्रथम का पुत्र तथा उत्तराधिकारी पृथ्वीसेन प्रथम (360-385ईस्वी) हुआ। उसका शासन शांति और समृद्धि का काल था। वाकाटक लेखों में उसे अत्यंत पवित्र तथा धर्मविजयी शासक कहा गया है, जो आचरण में युधिष्ठिर के समान था। वह भी शिव का भक्त था। पृथ्वीसेन प्रथम के समय में बासीम शाखा में विन्ध्यसेन शासन कर रहा था।इस समय तक दोनों कुलों के संबंध सौहार्दपूर्ण हो गये थे तथा बासीम शाखा के लोग मुख्य शाखा की अधीनता नाममात्र के लिये स्वीकार करते थे। विन्ध्यसेन ने कुंतल राज्य की जीता और इस कार्य में पृथ्वीसेन ने उसकी सहायता की। कुंतल का प्रदेश इस समय कदंब वंश के शासन में था और वहाँ का शासक संभवतः कंगवर्मन् था। …अधिक जानकारी

रुद्रसेन द्वितीय

पृथ्वीसेन प्रथम के बाद उसका पुत्र रुद्रसेन द्वितीय (385-390 ईस्वी) गद्दी पर बैठा। इस समय से वाकाटकों पर गुप्तों का प्रभाव बढा। रुद्रसेन द्वितीय ने अपने ससुर चंद्रगुप्त द्वितीय के प्रभाव में आकर अपने कुलागत शैव धर्म को छोड कर वैष्णव धर्म अपना लिया, जो चंद्रगुप्त का धर्म था। दुर्भाग्यवश लगभग 30 वर्ष की अल्पायु में ही रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गयी। इस समय उसके दो पुत्र दिवाकरसेन और दामोरसेन अवयस्क थे। अतः प्रभावतीगुप्ता वाकाटक राज्य की संरक्षिका बनी। …अधिक जानकारी

प्रभावतीगुप्ता का संरक्षण – काल

प्रभावतीगुप्ता अल्पायु तथा अनुभवहीन थी। तथापि उसने वाकाटक राज्य का संचालन बड़ी कुशलता से किया।प्रशासन के कार्यों में उसे अपने अनुभवी पिता (चंद्रगुप्त द्वितीय) से अवश्य ही पर्याप्त सहायता मिली होगी। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री को प्रशासनिक कार्यों में सहायता देने के लिये अपने राज्य के योग्य तथा अनुभवी मंत्रियों को भेजा। …अधिक जानकारी

प्रवरसेन द्वितीय

प्रवरसेन द्वितीय जब सिंहासन पर बैठा तब उसकी आयु 20 वर्ष थी। कुछ समय तक उसने अपने नाना चंद्रगुप्त द्वितीय की सहायता प्राप्त की, किन्तु उसकी मृत्यु के बाद उसने शासन का स्वतंत्र भार ग्रहण कर लिया। …अधिक जानकारी

नरेन्द्रसेन

वाकाटक शासक प्रवरसेन द्वितीय का पुत्र तथा उत्तराधिकारी नरेन्द्रसेन (440-460 ईस्वी) हुआ। उसके समय में बस्तर के नलवंशी शासक भवदत्तवर्मन ने वाकाटक राज्य पर आक्रमण किया। नरेन्द्रसेन पराजित हुआ तथा भवदत्तवर्मन ने नंदिवर्धन पर अपना अधिकार कर लिया। …अधिक जानकारी

पृथ्वीषेण द्वितीय

वाकाटक शासक नरेन्द्रसेन के बाद उसका पुत्र पृथ्वीषेण द्वितीय (460-480 ईस्वी) वाकाटक वंश की प्रधान शाखा का राजा बना। उसके बालाघाट लेख में उसे महाराज कहा गया है, जिससे स्पष्ट होता है, कि वह वैष्णव था। इसी लेख से पता चलता है, कि उसके दो बार वाकाटक वंश की विलुप्त लक्ष्मी का पुनरुद्धार किया था। …अधिक जानकारी

Reference : https://www.indiaolddays.com

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