इतिहासमध्यकालीन भारत

सेन वंश का इतिहास

सेन वंश – पाल वंश के बाद साम्राज्य निर्माण द्वारा बंगाल को राजनीतिक नेतृत्व सेन वंश ने प्रदान किया। एक सेन अभिलेख के अनुसार वे कर्नाट-क्षत्रिय या ब्रह्म-क्षत्रिय थे। सामंत सेन ने राढ में एक राज्य स्थापित किया। उसके लङके हेमंत सेन ने राढ में अपनी स्थिति मजबूत की और बंगाल पर कलचुरी कर्ण के आक्रमण के समय यह स्वतंत्र हो गया।

उसका(हेमंत सेन) पुत्र विजय सेन (1095-1185ई.) इस वंश का सबसे प्रतापी शासक मान जाता है। एक साहसी तथा कुशल शासक होने के साथ ही वह महत्वाकांक्षी भी था। कलिंग के शूर शासक अनंत वर्मन की पुत्री विलास देवी से विजय सेन ने विवाह किया। पाल वंश के अंतिम शासक रामपाल के बाद बंगाल के अनेक छोटे-छोटे शासकों को अपने अधीन करने में उन्हें पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई। उसने कन्नौज के शासक, संभवतः गोविंद चंद्र गहङवाल के विरुद्ध गंगा नदी से एक नाविक अभियान किया और लौटते समय मिथिला के शासक नान्यदेव को हराया। उसने गौङ पर अधिकार कर लिया और पाल शासक मदनपाल को मगध भागने के लिए विवश किया। बारहवीं शताब्दी के मध्य में उसने पूर्वी बंगाल पर भी पूरी तरह कब्जा कर लिया। उसने कलिंग, कामरूप तथा मगध पर भी विजय पताका को फहराया था। साठ वर्ष के अपने लंबे शासनकाल में उसने बंगाल को पुनः राजनीतिक एकता प्रदान की और एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना का स्वप्न साकार कर दिया। उसके कारण बंगाल में शांति तथा संपन्नता की अभिवृद्धि का भी ठिकाना न रहा। विजय सेन के उत्तराधिकारी वल्लभसेन या बल्लभ सेन (1158-1178ई.) ने संभवतः मिथिला तथा उत्तरी बिहार पर विजय प्राप्त की थी। यह शासक सेन साम्राज्य को संगठित रखने में भी समर्थ रहा। उसके समय में शांति तथा व्यवस्था के कारण बंगाल की प्रत्येक दिशा में भारी प्रगति हुई। उसके उत्तराधिकारी लक्ष्मण सेन (1178-1205 ई.) ने अपने पिता के शासनकाल में अनेक युद्धों में अपनी सैनिक कुशलता का सफलता से प्रदर्शन किया। ध्यान देने की विशेष बात यह भी है कि यह साठ वर्ष की अवस्था में शासक बना था। उस अवस्था में उसने जयचंद्र के विरुद्ध आक्रमण करके विजय प्राप्त की थी। उसने बनारस तथा इलाहाबाद तक सैनिक अभियान किया। साथ ही कलचुरी शासकों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना भी किया। किन्तु उसके शासनकाल के अंतिम समय में अनेक सामंतों ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह इतना प्रबल था कि राजा उसे दबाने में असमर्थ रहा। परिणाम यह हुआ कि ये सभी सामंत स्वतंत्र होते चले गए। 1202 ई. में इख्तयारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने इसकी राजधानी लखनौती पर आक्रमण कर दिया। लक्ष्मण सेन बिना युद्ध किए ही वहाँ से भाग गया और पूर्वी बंगाल में 1205 ई. तक शासन करता रहा। उसके बाद विश्वरूप सेन तथा केशव सेन कमजोर शासक हुए। परिणाम यह हुआ कि सेन राज्य देव-वंश की अधीनता में आ गया।

Related Articles

error: Content is protected !!