इतिहासपूर्वी समस्या और बर्लिन कांग्रेसविश्व का इतिहास

सेन स्टीफेनो की संधि

सेन स्टीफेनो की संधि

सेन स्टीफेनो की संधि – यह संधि रूस और तुर्क साम्राज्य के बीच एक संधि थी। रूसी साम्राज्य और विदेश मंत्री सफ्तर पाशा और जर्मनी के राजदूत सदाउल्ला बे की तरफ से काउंटी निकोलस पावलोविच इग्नातेव और अलेक्जेंडर नीलिडोव द्वारा 3 मार्च 1878 को कॉन्स्टेंटिनोपल के पश्चिम में स्थित एक गांव सेन स्टीफेनो है जहाँ पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि से रूस-तुर्की युद्ध, 1877-78 समाप्त हुआ।

सेन स्टीफेनो की संधि

सेन स्टीफेनो की संधि

3 मार्च, 1878 को रूसी सेनापति इग्नातेव ने तुर्की के सुल्तान को सेन स्टीफेनो नामक स्थान पर रूस को शर्तों के आधार पर संधि करने को बाध्य किया। इस संधि की शर्तें इस प्रकार थी-

  1. तुर्की ने सर्बिया, माण्टीनीग्रो और रूमानिया की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही सर्बिया को दक्षिण की ओर कुछ प्रदेश तथा माण्टीनीग्रो को उत्तर-पूर्व की ओर कुछ प्रदेश दिए गये।
  2. बल्गेरिया को स्वायत्त राज्य के रूप में मान्यता दी गयी तथा उसे अपने राज्य के लिए इसाई गवर्नर निर्वाचित करने का अधिकार दिया गया, साथ ही उसकी सीमाएँ डेन्यूब से एजियन सागर तक तथा काले सागर से अल्बानिया तक मान ली गई। इस प्रकार वृहत बल्गेरिया राज्य का निर्माण किया गया।
  3. तुर्की के सुल्तान ने बोस्निया व हर्जीगोविना में कुस्तुन्तुनिया सम्मेलन में प्रस्तावित सुधारों को रूस व आस्ट्रिया के संरक्षण में तुरंत कार्यान्वित करने का वचन दिया।
  4. तुर्की के सुल्तान ने अन्य ईसाई प्रांतों में क्रीट के समान व्यवस्था स्थापित करने का वचन दिया।
  5. रूस ने तुर्की से 1 अरब 41 करोङ रूबल की राशि हर्जाने के रूप में माँगी। तुर्की इतनी बङी राशि नहीं दे सकता था, अतः रूस ने उससे दोब्रुजा, अर्दहान, कार्स, कार्टुम, बायजिद तथा कुछ अन्य भू-भाग प्राप्त कर लिये।
  6. वृहद बल्गारिया को तीन भागों में बांटकर उसका आकार छोटा कर दिया गया और नवीन बल्गारिया को सुल्तान की संप्रभुता के अन्तर्गत एक स्वयं शासित राज्य मान लिया गया तथा यह निश्चय हुआ कि उसके शासक और जनता एक योजना प्रस्तुत करें जो इतिहास में ‘लंदन प्रोटोकोल’ के नाम से विख्यात हुई। टर्की के सुल्तान ने इसको अस्वीकार किया। यह भी निश्चय हुआ कि यूरोप के किसी सिंहासनहीन राजवंश का कोई भी सदस्य बल्गारिया का शासक चुना नहीं जायेगा।
  7. ‘वृहद बल्गारिया’ के द्वितीय भाग को टर्की की राजनीतिक तथा सैनिक सत्ता के अंदर रखा गया, परन्तु उसके प्रशासन के लिये सुल्तान द्वारा मनोनीत ईसाई गवर्नर की व्यवस्था की गई।
  8. मैसीडोनिया का प्रदेश, जो वृहद बल्गारिया में रखा गया था, तुर्की को लौटा दिया गया।
  9. साइप्रस द्वीप ब्रिटेन को मिल गया जिससे वह टर्की तथा स्वेज नहर की रक्षा कर सके।
  10. ब्रिटेन ने आर्मीनिया की रक्षा तथा सुधार लागू करवाने की नैतिक जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। सुल्तान ने सुधारों की व्यवस्था करने का आश्वासन भी दिया।
  11. आस्ट्रिया को बोसनिया और हर्जीगोविना के प्रदेश अपने प्रशासन में रखने का अधिकार प्राप्त हो गया, परन्तु उन पर सुल्तान की संप्रभुता नाम मात्र के लिए रखी गई। आस्ट्रिया को सर्बिया और मान्टीनीग्रो के बीच में स्थिति नबीबाजार के प्रदेश में अपने सैनिक रखने का अधिकार भी मिल गया। सर्बिया तथा मान्टीनीग्रो को इस प्रबंध से असंतोष हुआ, क्योंकि अब वे एक दूसरे से सर्वदा के लिये पृथक हो गये।
  12. सर्बिया, मान्टीनीग्रो तथा रूमानिया को स्वतंत्र राज्य मान लिया गया। रूमानिया को डोबर्जा का प्रांत भी प्राप्त हुआ।
  13. ग्रीस की सीमाओं पर पुनर्विचार करने की सिफारिश की गई, किन्तु सुल्तान ने उसकी अपेक्षा की ओर ग्रीस को कुछ प्राप्त नहीं हो सका।
  14. तुर्की के सुल्तान ने अपनी प्रजा को धार्मिक स्तंत्रता देने तथा कीट, ईपिरस, थिसली, मेसीडोनिया, अल्बानिया आदि प्रांतों में उसने सुधारों की व्यवस्था करने का वचन दिया।
  15. रूस को यूरोप में बेसेरेबिया और एशिया में बाटुम, तथा आर्मीनिया का एक भाग प्राप्त हुआ।

क्रीमिया का युद्ध

पेरिस की संधि (1856)

सेन स्टीफेनो की संधि के प्रभाव

सेन स्टीफेनो की संधि रूस की महान सफलता थी। इस संधि द्वारा जहाँ बाल्कन में तुर्की का प्रभाव बहुत कम हो गया, वहाँ रूस का प्रभाव सर्वोपरि हो गया। सर्बिया, रूमानिया और माण्टीनीग्रो पहले ही रूस के प्रभाव में थे और अब वह एक नवीन बल्गेरिया का निर्माण कर रहा था, जिस पर उसका प्रभाव रहना स्वाभाविक था। इस प्रकार रूस ने युद्ध की विजय को कूटनीति द्वारा स्थायित्व प्रदान किया तथा क्रीमिया युद्ध एवं 1856 की पेरिस की संधि द्वारा हुए राष्ट्रीय अपमान को धो डाला।

बर्लिन कांग्रेस का सम्मेलन

सेन स्टीफेनो की संधि की शर्तों पर विचार करने के लिये जर्मनी की राजधानी बर्लिन में सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें जर्मनी के चांसलर बिस्मार्क ने ‘ईमानदार दलाल’ के रूप में कार्य किया। यह सम्मेलन 13 जून 1878 ई. को बर्लिन में हुआ। इंगलैंड का प्रतिनिधित्व वहां के प्रधानमंत्री डिजरायली ने स्वयं किया। सर्वविदित है कि सम्मेलन की कार्यवाही आरंभ होने के पूर्व ही यूरोप की विभिन्न शक्तियों के मध्य मुख्य प्रश्नों पर पारस्परिक समझौते हो चुके थे।

बर्लिन कांग्रेस (13 जून – 13 जुलाई 1878) बर्लिन में सम्पन्न एक सम्मेलन था जिसमें उस समय की महाशक्तियाँ (रूस, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रिया-हंगरी, इटली तथा जर्मनी), चार बाल्कन राज्य (ग्रीस, सर्बिया, रोमानिया, मान्टीनिग्रो) और उस्मानी साम्राज्य ने भाग लिया था।

सेन स्टीफेनो की संधि

इसका उद्देश्य 1877-78 के रूस-तुर्की युद्ध के बाद बाल्कन प्रायद्वीप के राज्यों की सीमायें तय करना था। इस सम्मेलन के परिणामस्वरूप बर्लिन की संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसने रूस और उस्मानी साम्राज्य में मात्र तीन माह पूर्व सम्पन्न सेन स्टीफेनो की संधि का स्थान ग्रहण किया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : सेन स्टीफेनो की संधि

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