इतिहासप्राचीन भारतशाकंभरी का चौहान वंश

चौहान शासक विग्रहराज तृतीय का इतिहास

चौहान शासक दुर्लभराज तृतीय के बाद उसका भाई विग्रहराज तृतीय शासक बना। उसके समय में परमारों के साथ चौहानों की मित्रता स्थापित हुई।

पृथ्वीराजविजय से पता चलता है, कि विग्रहराज ने मालवा के राजा उदयादित्य (1059-87 ईस्वी) की सहायता की थी। उसके द्वारा दिये गये सारंग नामक अश्व की सहायता से मालवराज गुर्जर नरेश कर्ण को परास्त करने में सफल हुआ। संबंधों को और अधिक प्रगाढ बनाने के उद्देश्य से दोनों राजवंशों में वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ तथा परमारवंश की कन्या राजदेवी का विवाह विग्रहराज के साथ संपन्न हुआ।

प्रबंधकोश से पता चलता है, कि विग्रहराज एक दुराचारी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने महासत्या नामक एक ब्राह्मण पत्नी का अपहरण किया, जिसके शाप से उसका विनाश हो गया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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