गुप्तोत्तर शासक कुमारगुप्त का इतिहास
उत्तर गुप्त वंश का चौथा राजा कुमारगुप्त हुआ जो जिवितगुप्त का पुत्र था। उसी के काल में यह वंश सामंत स्थिति से मुक्त हुआ। वह एक शक्तिशाली राजा था, जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। अफसढ लेख में उसकी शक्ति की प्रशंसा करते हुए उसे वीरों में अग्रगण्य कहा गया है।
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उसका प्रतिद्विन्द्वी मौखरी नरेश ईशानवर्मा समान रूप से महत्वाकांक्षी था। ऐसी स्थिति में दोनों में संघर्ष होना संभव था।
अफसढ लेख दोनों के बीच युद्ध का चित्रण काव्यात्मक ढंग से प्रस्तुत करता है, जो इस प्रकार है- ईशानवर्मा की क्षीर सागर के समान विकराल सेना को कुमारगुप्त ने युद्ध क्षेत्र में उसी तरह मथ डाला जिस तरह देवासुर संग्राम में मंदराचल पर्वत द्वारा क्षीर सागर मथा गया था।
इससे स्पष्ट है, कि युद्ध में कुमारगुप्त विजयी रहा। इस विजय के फलस्वरूप कुमारगुप्त का साम्राज्य गंगा नदी के किनारे पश्चिम में प्रयाग तक विस्तृत हो गया। अफसढ लेख से पता चलता है, कि उसने प्रयाग में अपना प्राणांत किया। धंग तथा गांगेयदेव जैसे शासकों ने भी इसी तरह से प्राणांक किया था। इस प्रथा को उस समय में पवित्र माना जाता था। इसका विवरण ह्वेनसांग भी करता है।
Reference : https://www.indiaolddays.com