प्राचीन भारतइतिहास

मिनाण्डर(मिलिंद)कौन था

मिनांडर मनेन्दर’, ‘मीनेंडर’ या ‘मीनांडर’ आदि नामों से भी जाना जाता है। इंडो-यूनानी शासकों में मिनाण्डर का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। ऐसा लगता है कि मिनांडर डेमेट्रियस का छोटा भाई था। मिनांडर ने डेमेट्रियस के साथ ही भारतीय युद्धों में भाग लिया था।मिनाण्डर का शासनकाल 160-120 ई.पूर्व था।

अनेक लेखकों जैसे – स्ट्रेबो, जस्टिन, प्लूटार्क आदि ने मेनाण्डर की गणना महान् यवन विजेताओं में की है। उसका एक लेख, शिवकोट (बाजौर-घाटी) की धातुगर्भ मंजूषा के ऊपर अंकित प्राप्त हुआ है। इससे पता चलता है कि बाजौर क्षेत्र (पेशावर) उसके अधिकार में था। पेरीप्लस के अनुसार मिनांडर के सिक्के भङौंच से प्राप्त हुए हैं। पेरीप्लस ऑफ दी एरिथ्रियस सी (1 शता.) के अनुसार बेरीगाजा में मिनाण्डर के सिक्के चलते थे। मिनाण्डर को एशिया का संरक्षक कहा गया है।

प्लूटार्क ने मिनाण्डर की न्यायप्रियता की प्रशंसा की है।

मिनांडर की राजधानी साकल थी।

मिनांडर का साम्राज्य विस्तार-

पूर्व में मथुरा व दक्षिण में भारूकच्छ (भङौंच- गुजरात) तक था। इसका दूसरा नाम बेरीगाजा भी है। यह एक बंदरगाह भी था।

यूनानी स्ट्रेबो के अनुसार मिनाण्डर ने पाटलीपुत्र तक आक्रमण किया था और इसकी पुष्टि कोसांबी (इलाहाबाद) के निकट रेह गाँव से प्राप्त अभिलेख से होती है।

मिनाण्डर के सिक्कों पर हाथी का चित्र, धर्म चक्र(बौद्ध धर्म), धर्मिक्स शब्द मिलता है, जो उसके बौद्ध धर्म को अपनाने के प्रमाण हैं। इसकी पुष्टि बौद्ध ग्रंथ मिलिन्दपन्हों से भी होती है। यह ग्रंथ बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित तथा पालि भाषा में लिखा हुआ है। इस ग्रंथ में बौद्ध भिक्षु नागसेन तथा मिनांडर के बीच अनात्मवाद को लेकर दार्शनिक सिद्धांत को लेकर दार्शनिक वार्तालाप है।

मिनांडर के बाद स्ट्रेटो-1 शासक बना, जिसने सोटर की उपाधि ली।

बौद्ध अनुयायी

प्लूटार्क ने लिखा है कि मिलिन्द बड़ा न्यायी, विद्वान् और जनप्रिय राजा था। उसकी मृत्यु के बाद उसकी हड्डियों पर बड़े-बड़े स्तूप बनवाये गये। मिलिन्द को शास्त्र चर्चा और बहस की बड़ी आदत थी, और साधारण पंडित उसके सामने नहीं टिक सकते थे। बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम ‘मिलिन्द’ आया है। ‘मिलिन्द पन्हो’ नाम के पालि ग्रंथ में उसके बौद्ध धर्म को स्वीकृत करने का विवरण दिया गया है। उसके अनेक सिक्कों पर बौद्ध धर्म के ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ का चिह्न ‘धर्मचक्र’ बना हुआ है, और उसने अपने नाम के साथ ‘ध्रमिक’ (धार्मिक) विशेषण दिया है।

सोटर के बाद यूक्रेटाइड्स शाखा के शासक हेलियोक्लिज ने डेमेट्रियस शाखा पर आक्रमण शुरू कर दिया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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