स्कंदगुप्त की विजयें
स्कंदगुप्त ने अपने पिता कुमारगुप्त प्रथम के काल में पुष्यमित्रों को परास्त कर अपनी वीरता का परिचय दे दिया था। राजा होने पर उसके समक्ष जो सबसे महत्त्वपूर्ण व कठिन समस्या थी, वह थी हूणों के आक्रमण का सामना करना। हूण आक्रमण ने गुप्त साम्राज्य की जङे हिला दी थी।
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हूणों का आक्रमण-
हूणों का प्रथम आक्रमण स्कंदगुप्त के समय में हुआ। इस आक्रमण का नेता खुशनेवाज था, जिसने ईरान के ससानी शासकों को दबाने के बाद भारत पर आक्रमण किया। यह युद्ध बङा भयंकर था। उसकी भयंकरता का संकेत भितरी स्तंभलेख में हुआ है, जिसके अनुसार हूणों के साथ युद्ध -क्षेत्र में उतरने पर उसकी भुजाओं के प्रताप से पृथ्वी काँप गयी तथा भीषण आवर्त (बवंडर) उठ खङा हुआ। स्कंदगुप्त (क्रमादित्य) का इतिहास।
इस युद्ध में स्कंदगुप्त ने हूणों को बुरी तरह से परास्त किया तथा भारत से बाहर खदेङ दिया। इस युद्ध का प्रमाण स्कंदगुप्त के जूनागढ अभिलेख से मिलता है, जिसमें हूणों को म्लेच्छ कहा गया है। म्लेच्छ – देश से तात्पर्य गंधार से है, जहाँ पराजित होने के बाद हूण नरेश ने शरण ली थी।
चंद्रगोमिन ने अपने व्याकरण में एक सूत्र लिखा है – जटों (गुप्तों) ने हूणों को जीता, यहाँ इस पंक्ति का अर्थ स्कंदगुप्त की हूण-विजय से है।
सोमदेव के कथासरित्सागर में उल्लेख मिलता है, कि उज्जयिनी के राजा महेन्द्रादित्य के पुत्र विक्रमादित्य ने म्लेच्छों को जीता था। यहाँ भी स्कंदगुप्त की ओर ही संकेत है, जो कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य का पुत्र था। म्लेच्छो से तात्पर्य हूणों से ही है।
अन्य विजयें-
जूनागढ अभिलेख में कहा गया है,कि स्कंदगुप्त की गरुङध्वजांकित राजाज्ञा नागरूपी उन राजाओं का मर्दन करने वाली थी, जो मान और दर्प से अपने फन उठाये रहते थे। इस आधार पर फ्लीट ने निष्कर्ष निकाला है,कि स्कंदगुप्त ने नागवंशी राजाओं को पराजित किया था। परंतु इस संबंध में हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह सकते। लगता है, कि इस कथन का संकेत पुष्यमित्रों तथा हूणों के लिये था।
स्कंदगुप्त की प्रारंभिक उलझनों का लाभ उठाकर दक्षिण से वाकाटकों ने भी उसके राज्यों पर आक्रमण किया तथा कुछ समय के लिये मालवा पर अधिकार कर लिया। वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन को बालाघाट लेख में कोशल, मेकल, मालवा का शासक बताया गया है। किन्तु स्कंदगुप्त ने शीघ्र इस प्रदेश के ऊपर अपना अधिकार सुदृढ कर लिया तथा जीवनपर्यंत उसका शासक बना रहा। वाकाटक उसे कोई हानि नहीं पहुँचा सके।
Reference : https://www.indiaolddays.com