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शिल्पादिकारम किस भाषा में लिखा गया ग्रंथ है

शिल्पादिकारम एक अद्वितीय रचना है। दुर्भाग्यवश इसके लेखक तथा समय के बारे में निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है।एक मान्यता के अनुसार इसकी रचना चेरवंश के राजा सेनगुट्टुवन के भाई इलांगों ने की थी।

शिलप्पादिकारम को ‘तमिल साहित्य’ के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- “नूपुर की कहानी”। ‘शिलप्पादिकारम’ की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका ‘कोवलन’ और ‘कण्णगी’ हैं। यह महाकाव्य ‘पुहारक्कांडम’, ‘मदरैक्कांडम’ और ‘वंजिक्कांडम’ तीन भागों में विभाजित है। इन तीनों भागों में क्रमशः चोल, पाण्ड्य, और चेर राज्यों का वर्णन है। महाकाव्य में कवि ने तत्कालीन तमिल समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत करने के साथ-साथ समाज में प्रचलित नृत्यों, व्यवसायों आदि का भी परिचय दिया है।

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शिल्पादिकारम महाकाव्य की कथा

इस महाकाव्य की कहानी एक अत्यंत लोकप्रिय कथा पर आधारित है, जिसका संक्षेप में विवरण इस प्रकार है- पुहार (कावेरीपट्टन) नगर के एक समृद्ध व्यापारी का पुत्र कोवलन ने एक अन्य व्यापारी की पुत्री कण्णगि से विवाह किया। कुछ समय तक दोनों सुखपूर्वक रहे। एक दिन कोवलन की भेंट राजदरबार में माधवी नामक नर्तकी से हुई, जिसके प्रेम जाल में वह फंस गया। उसने नर्तकी के ऊपर अपना सारा धन व्यय कर दिया तथा अपनी पत्नी तथा घर को भूल गया। यहाँ तक कि उसने अपनी पत्नी के सारे आभूषण भी नष्ट कर दिये। किन्तु नर्तकी द्वारा ठुकराये जाने पर कंगाली की हालत में वह पुनः पश्चाताप करते हुये अपनी पत्नी के पास वापस लौट आया। उस समय कण्णगि के पास केवल पायलों का एक जोङा ही शेष था। उसने खुशी से उन्हें अपने पति को सौंप दिया। उनमें से एक को बेचकर जीविकोपार्जन करने के उद्देश्य से कोवलन अपनी पत्नी के साथ मदुरा चला गया। वहाँ एक पायल को बेचने के लिये वह बाजार गया। इसी समय वहाँ के रानी का एक पायल राजवंश के सुनार के षङ्यंत्र से चोरी हो गया। राजा के नौकरों ने कोवलन को संदेह में पकङ कर बिना अभियोग चलाये ही मार डाला। कण्णगि दूसरा पायल लेकर राजा के पास गयी तथा अपने पति की निर्दोषता का प्रमाण दिया। आत्मग्लानि से राजा की मृत्यु हो गयी। उसके बाद कण्णगि ने अपनी क्रोधाग्नि से मदुरा को जला डाला तथा चेर राज्य में चली गयी। वहीं पहाङी पर उसकी मृत्यु हो गयी। स्वर्ग में वह अपने पति से मिल गयी। मृत्यु के बाद उसकी प्रतिष्ठा तमिल समाज में सतीत्व की देवी के रूप में हुई। उसके सम्मान में मंदिर बनवाये गये तथा उसकी पूजा की जाने लगी।

शिल्पादिकारम एक उत्कृष्ट रचना है, जो तमिल भाषा में रचित है। तमिल जनता में राष्ट्रीय काव्य के रूप में मानी गयी रचना है। नीलकंठ शास्त्री के शब्दों में यह अनेक अर्थों में तमिल साहित्य में अनुपम है। इसमें दृश्यों का जैसा स्पष्ट चित्रण है तथा छंदों का जैसा दक्षतापूर्ण प्रभाव है, वैसा अन्य किसी रचना में नहीं मिलता। वस्तुतः यह एक यथार्थवादी रचना है,जिसमें लोकजीवन की संवेदनाओं को सुरक्षित किया गया है।

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References:
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक-के.सी.श्रीवास्तव

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