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सोलंकी वंश के शासक भीमदेव प्रथम का इतिहास

सोलंकी वंश के शासक दुर्लभराज का उत्तराधिकारी उसका भतीजा भीमदेव प्रथम हुआ। वह अपने वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। उसके प्रबल प्रतिद्वन्दी परमार भोज तथा कलचुरि नरेश कर्ण थे। ऐसा प्रतीत होता है, कि प्रारंभ में भोज ने भीम पर दबाव बढाया तथा उसे कुछ सफलता भी मिली। उदयपुर लेख से पता चलता है, कि भोज ने भीम को पराजित किया था। किन्तु शीघ्र ही भीम ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली तथा उसने परमार नरेश भोज के विरुद्ध कलचुरि नरेश कर्ण के साथ मिलकर एक संघ तैयार किया। इस संघ ने मालवा के ऊपर आक्रमण कर धारा नगर को लूटा।

कल्याणी के चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम ने भी भोज पर आक्रमण कर उसे पराजित किया, धारा को लूटा तथा माण्डू पर अधिकार कर लिया। बिल्हण के विवरण से पता चलता है, कि भोज अपनी राजधानी छोङकर भाग गया। इस प्रकार उसकी प्रतिष्ठा मर्दित हो गयी। इसी बीच परमार भोज की मृत्यु हो गयी, जिससे भीम तथा कर्ण के आपसी संबंध भी बिगङ गये। इसका मुख्य कारण धारा से लूटी गयी संपत्ति का बँटवारा था। अतः भीम ने कर्ण के विरुद्ध एक दूसरा संघ तैयार किया। इसमें परमार जयसिंह द्वितीय,जो भोज का उत्तराधिकारी था, ने भी भीम की सहायता की थी।

जैन ग्रंथों से पता चलता है, कि भीम ने कर्ण को भी पराजित किया था।

ऐसा बताया गया है, कि पहले तो पहले तो चेदि नरेश ने भीम से लङने के लिये भीलों तथा म्लेच्छों की सेना तैयार की, किन्तु बाद में उसकी शर्तों पर संधि कर लेना ही श्रेयस्कर समझा। उसने भीम के वकील दामोदर को स्वर्म मेरु सौंप दिया, जिसे वह मालवा से उठा लाया था। हेमचंद्र हमें बताता है, कि भीम ने सिंध के राजा हम्मुक को पराजित कर उसे अपने अधीन कर लिया। वह एक शक्तिशाली शासक था, जिसने कई शत्रुओं को पराजित किया था। भीम ने सिंधु नदी पर पुल बनाकर उसके राज्यमें प्रवेश कर उसे पराजित किया था। भीम की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि आबू पर्वत क्षेत्र पर अपना अधिकार करना था। आबू पर्वत क्षेत्र मूलराज के समय चौलुक्यों के नियंत्रण में था, किन्तु बाद में वहाँ के शासक धन्धुक ने भीम की सत्ता को चुनौती दी। फलस्वरूप भीम ने वहाँ आक्रमण कर पुनः अपना अधिकार सुदृढ कर लिया। भीम के पूर्वजों का नड्डुल के चाहमान शासकों के साथ मधुर संबंध थे। किन्तु महत्त्वाकांक्षी भीम ने इसे उलट दिया। ऐसा प्रतीत होता है, कि भीम ने इस राज्य पर कई आक्रमण किये, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली तथा उल्टे उसे ही पराभव सहनी पङी। सुंधापहाङी लेख से पता चलता है, कि नाडुल के राजाओं – अहिल तथा उसके चाचा अणहिल, ने भीम को पराजित किया था। यह भी कहा गया है, कि अणहिल के पुत्र बालाप्रसाद ने भीम को पराजित किया था। यह भी कहा गया है, कि अणहिल के पुत्र बालाप्रसाद ने भीम को कारागार से कृष्णराज नामक शासक को मुक्त करने के लिये मजबूर किया था। यह परमार राजा था। इस प्रकार भीम नड्डुल के चाहमानों को नतमस्तक करने में सफल नहीं हो पाया।

भीम के शासनकाल की सबसे प्रमुख घटना, जिसका उल्लेख अनुश्रुतियों तथा लेखों में नहीं मिलता, महमूद गजनवी का सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण है। महमदूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा तथा मूर्ति को खंडित कर दिया। किन्तु भीम ने बङी बुद्धिमानी के साथ उससे अपनी रक्षा की।

फरिश्ता लिखता है, कि भीम ने तीन हजार मुसलमानों की हत्या कर दी थी। महमूद को उसके भय के कारण मार्ग बदल कर भागना पङा। उसके आक्रमण का भीम के शासन पर कोई प्रतिकुल प्रभाव नहीं पङा। महमूद गजनवी के सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करके चले जाने के बाद भीम ने उसका पुनः निर्माण करवाया। उसने 1064ईस्वी तक शासन किया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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