इतिहासप्राचीन भारतवाकाटक वंश

वाकाटक शासक पृथ्वीसेन प्रथम का इतिहास

रुद्रसेन प्रथम का पुत्र तथा उत्तराधिकारी पृथ्वीसेन प्रथम (360-385ईस्वी) हुआ। उसका शासन शांति और समृद्धि का काल था। वाकाटक लेखों में उसे अत्यंत पवित्र तथा धर्मविजयी शासक कहा गया है, जो आचरण में युधिष्ठिर के समान था। वह भी शिव का भक्त था। पृथ्वीसेन प्रथम के समय में बासीम शाखा में विन्ध्यसेन शासन कर रहा था। इस समय तक दोनों कुलों के संबंध सौहार्दपूर्ण हो गये थे तथा बासीम शाखा के लोग मुख्य शाखा की अधीनता नाममात्र के लिये स्वीकार करते थे। विन्ध्यसेन ने कुंतल राज्य को जीता और इस कार्य में पृथ्वीसेन ने उसकी सहायता की। कुंतल का प्रदेश इस समय कदंब वंश के शासन में था और वहाँ का शासक कंगवर्मन् था।

इस विजय से दक्षिण महाराष्ट्र के ऊपर वाकाटकों का अधिकार हो गया। नचना तथा गज्ज (बघेलखंड क्षेत्र) से व्याघ्रदेव नामक किसी शासक के दो अभिलेख मिलते हैं, जिनमें वह अपने को महाराज पृथ्वीसेन का सामंत कहता है। यह शासक पृथ्वीसेन प्रथम ही है।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है,कि उसके समय में वाकाटकों का प्रभाव क्षेत्र बघेलखंड में फैला था। इस प्रकार पृथ्वीसेन के समय में वाकाटक वंश की शक्ति तथा प्रतिष्ठा दोनों ही बढ गयी।

इस समय उत्तर भारत में चंद्रगुप्त द्वितीय शासन कर रहा था। उसे गुजरात और काठियावाङ के शकों की विजय करनी थी। यह कार्य तब तक संभव नहीं था, जब तक कि वाकाटकों का सहयोग उसे मिल न जाता। अतः उसने अपनी पुत्री प्रभावतीगुप्ता का विवाह पृथ्वीसेन के पुत्र रुद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया। यह वैवाहिक संबंध दोनों राजवंशों के लिये लाभकारी रहा। विवाह के लगभग 5 वर्षों बाद पृथ्वीसेन प्रथम की मृत्यु हो गयी।

प्रश्न : जब उत्तरी भारत में चंद्रगुप्त द्वितीय शासन कर रहा था, तब दक्षिणी भारत में कौनसा राजवंश तथा राजा शासन कर रहा था ?

उत्तर: पृथ्वीसेन प्रथम राजा जो वाकाटक वंश का शासक था।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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