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1 जून : विश्व दुग्ध दिवस

बीस साल से 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस(World milk day) मनाया जा रहा है।विश्व दुग्ध दिवस संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है, जो वैश्विक भोजन के रूप में दूध के महत्व को पहचानता है। 2001 के बाद से हर साल 1 जून को यह दिन मनाया जाता है। दूध हमारे आहार का कितना जरूरी हिस्सा है और इसके सेवन के क्या-क्या फायदे होते हैं इसके बारे में बताना और लोगों को जागरूक करना ही इस दिन को मनाने का उद्देश्य होता है। भारत में 26 नवंबर को दुग्ध दिवस मनाया जाता है।

ऊंटनी का दूध : गुणकारी और लाभकारी

पहली बार ऐसा हो रहा है, कि ऊंटनी का दूध (कैमल मिल्क) विश्व दुग्ध दिवस का एजेंडा है। लोगों को केमिल मिल्क पसंद भी आ रहा है। और इसकी बिक्री भी बढी है। कैमल मिल्क अपेक्षाकृत अधिक जलवायु अनुकूल है। इसका सेवन विशुद्ध दूध अथवा दुग्ध उत्पादन दोनों ही रूप में किया जाता है।

ऊंट-ऊंटनियों की शारीरिक संरचना ऐसी होती है, कि वे बिना पीनी पिये हफ्तों तक गुजार सकते हैं। ऊंटनी सही मायनों में प्राकृतिक दूध देती है, जो विटामिन एवं रोग प्रतिराधक क्षमता बढाने वाले गुणों से भरपूर है।

राजस्थान में राइका समुदाय द्वारा उत्पादित कैमल मिल्क की मार्केटिंग करने वाली कंपनी कैमल करिश्मा के सहसंस्थापक हनुवंत सिंह राठौङ का कहना है, स्वास्थ्य संबंधी फायदों को देखते हुये भारत में कैमल मिल्क के प्रति लोगों का रुझान बढा है। हमारे ग्राहक अधिकतर वे अभिभावक हैं, जिनके बच्चे ऑटिज्म से पीङित हैं। परंतु धीरे-धीरे कैमल मिल्क राजस्थान के पारंपरिक सेहतमंद भोजन का हिस्सा बनता जा रहा है।

वर्ष 2019 में विश्व दुग्ध बाजार 1020 कङोङ अमरीकी डॉलर का आंका गया। जलन रोधी, सुदृढ रक्षात्मक प्रोटीन, जीवाणु रोधी और पोषक गुणों के कारण कैमल मिल्क की मांग है। यह लैक्टोम इनटॉलरैंस यानी दूध व दुग्ध उत्पादों से एलर्जी वालों के लिये बेहतर विक्लप है। पशु चिकित्सक एवं आइसोकार्ड (इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ कैमल रिसर्च एंड डेवलपमेंट) के अध्यक्ष डॉ. बर्नार्ड फये कहते हैं, अगले एक दशक तक वैश्विक ऊंट बाजार 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हासिल करने की ओर अग्रसर है।

पोषण विज्ञानी एं क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया के समर लैंड कैमल्स के सीईओ जैफ फ्लड के अनुसार गायों के मुकाबले ऊँट स्वयं को जलवायु के अनुरूप ढालने में अधिक सक्षम हैं। साथ ही उंट-उंटनियों की शारीरिक संरचना ऐसी होती है, कि वे बिना पानी पिये हफ्तों तक गुजार सकते हैं। वे सही मायनों में प्राकृतिक दूध देती हैं, जो विटामिन एवं रोग प्रतिराधक क्षमता बढाने वाले गुणों से भरपूर हैं। इसका स्वाद अच्छा होता है और लैक्टॉस इनटॉलरैंस वाले लोगों के लिये फायदेमंद हैं।

कैमल मिल्क शारीरिक और व्यवहार और व्यवहार संबंधी समस्याओं को सुलझाने में सहायक है, इसलिये यह गाय के दूध का अत्यधिक प्रभावी विकल्प है। कैमल मिल्क पर प्रकाशित कई पुस्तकों की लेखिका और जर्नल ऑफ कैमल साइंस में संपादकीय बौर्ड की सदस्य क्रिस्टिना एडम्स का कहना है, कि ऑडिज्म पीङित बच्चों के अभिभावक इसके प्रमुख खरीदार हैं, और रहेंगे। इसकी वजह है, कि कई शोध अध्ययनों में पाया गया है, कि यह कैमल मिल्क पीना सेहत के लिये सुरक्षित तो है,ही सथा ही इसके सेवन से व्यावहारिक के साथ चिकित्सकीय लाभ भी मिलते ैहं।

खुजेसातन एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड नेचुरल रिसोर्सेज यूनिवर्सिटी साइंसेज एंड नेचुरल रिसोर्सेज यूनिवर्सिटी, ईरान में एसोसियट एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.तारेह मोहम्मदाबादी के अनुसार, कैमल मिल्क में पाए जाने वाले फैटी एसिड मानव ह्रदय के लिये अधिक उपयुक्त होते हैं, क्योंकि इनमें गाय के दूध की तुलना में अधिक मोनो अनसेचुरेटेड (एकल असंतृप्त) व पॉली अनसेचुरेटेड (बहु असंतृप्त)फैटी एसिड पाए जाते हैं।

ऊंट से मिलने वाले विश्व स्तरीय राजस्व के 60 प्रतिशत से अधिक पर मध्य पूर्व एवं अफ्रीका का आधिप्तय है। इनमें सोमालिया, इथोपिया, सूडान और केन्या ऐसे देश हैं, जहां इसके दूध का प्रति व्यक्ति उपभोग सर्वाधिक है। सऊदी अरब में 33 लीटर प्रति व्यक्ति सालाना खपत होती है। इसलिये इसे कैमल मिल्क का सबसे बङा बाजार कहा जा सकता है। उम्मीद है, कि उत्तरी अमरीका कैमल मिल्क के लिये नया उभरता हुआ बाजार हो, क्योंकि डायबिटीज के रोगी शुगर लेवल नियंत्रित करने के लिये कैमल मिल्क की ओर मांग करने लगे हैं। गाय डेयरी उद्योग को अधिक संगठित एवं सशक्त माना जाता है। अभी तक केवल संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब और मॉरिटेनिया में कैमल मिल्क एक निजी क्षेत्र के तौर पर स्थापित हुआ है। परंतु जलवायु परिवर्तन एवं कृषि संबंधी चिंताओं के साथ ही विश्व भर में ऊंट पालकों और कैमल मिल्क उत्पादकों की संख्या बढ रही है। पिछले 50 वर्षों में पाया गया है, कि भैंस के बाद ऊंट ही एक मात्र ऐसा शाकाहारी वन्यजीव है, जिसकी संख्या तेजी से से बढ रही है। बीते दशक में अफ्रीका में ऊंटों की संख्या में 4.5 प्रतिशत सालाना की दर से वृद्धि हुई है। मध्य पूर्व एवं हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र इस संदर्भ में अग्रणी हैं। अफ्रीका के ऐसे इलाकों में भी ऊंट पाए जाने लगे हैं, जहां पहले कभी नहीं देखे गए, जैसे युगांडा और तंजानिया। ट्यूनिशिया वासी ऊंट विशेषज्ञ मोहम्मद बेनगॉमी कहते हैं, कि ऊंटों का दुनिया भर में पारंपरिक एवं दीर्घकालीन उपयोग होता आया है। लेकिन कैमल मिल्क पर सामान्य और वैज्ञानिक अनुसंधान की जरूरत है। केन्या और ऑस्ट्रेलिया में भूमध्य रेखा पर जलवायु परिवर्तन के साथ सामंजस्य बिठाते हुये लोग व्यावसायिक डेयरी किसान ऊंट पालन की ओरर प्रवृत्त होने लगे हैं, क्योंकि सूखा ग्रस्त क्षेत्रों, गर्म जलवायु जैसी जटिल परिस्थितियों में बेहतर पशुधन साबित होने वाले ऊंट कंटीली झाङियों और पौधों का भी आहार कर लेते हैं। जबकि खेती से जुङे ज्यादातर पशु इन्हें नहीं खाते।

केन्या कैमल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. जेम्स चोम्बा निंजना के अनुसार, केन्या कैमल मिल्क उद्योग को कमतर माना जाता है। लेकिन यह विदेशी मुद्रा विनिमय अर्जित करने वाले अन्य व्यवसायों को टक्कर दे सकता है। अकालग्रस्त क्षेत्र होने तथा केन्या का 89 प्रतिशत हिस्सा शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क होने के कारण कई पशुपालक वहां अब गायों के बजाय ऊंट पालने लगे हैं, यहां तक कि दक्षिणी केन्या में भी।

आधिकारिक तौर पर दुनिया भर में सालाना 30 लाख टन कैमल मिल्क की बिक्री एवं उपयोग किया जाता है। वास्तविक तौर पर इसका उत्पादन दो गुना या प्रति वर्ष 50-60 लाख टन तक हो सकता है। गौरतलब है, कि 70 प्रतिशत कैमल मिल्क का सेवन ऊंट मालिकों द्वारा ही कर लिया जाता है, इसलिये वह बाजार पहुंचता ही नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले ऊंट विशेषज्ञ डॉ. अब्दुल रजिककार कहते हैं, रेगिस्तान में मानव पीढियों से ऊंच पाल रहे हैं। उसका संरक्षण कर रहे हैं। शुष्क क्षेत्रों में, जहां तापमान 45 डीग्री से अधिक रहता है, एक लीटर दूध देने में गायों को ऊंट के मुकाबले अधिक परेशानी होती है, क्योंकि उन्हें पीने के लिये ऊंट के अनुपात में आठ-दस गुना अधिक पानी चाहिये होता है।

कैमल मिल्क के प्रति रुझान बढने से पारंपरिक रूप से ऊंट पालने वाली घुमन्तु प्रजाति को भी फायदा हुआ है। ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले लीग फॉर पेस्टोरल पीपल्स के प्रोजेक्ट को – ऑर्डिनेटर डॉ.इलसे कोहलर रोलैफसन का कहना है, नवाचारों के जरिये विकेन्द्रीकृत ऊंट पालन को समर्थन देकर गरीबी से तो निजात पाई ही जा सकती है। साथ ही दुनिया के नर्धनतम इलाकों में बेहतर खाद्य सुरक्षा की ओर कदम बढाया जा सकता है।

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