इस्लाम तथा भारतीय साहित्य का संबंध
इस्लाम तथा भारतीय साहित्य का संबंध
भारत में इस्लाम के आगमन का एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव यहाँ के साहित्य पर पङा। कई हिन्दू विद्वानों ने अरबी-फारसी भाषाओं का अध्ययन करना प्रारंभ कर दिया। कुछ मुसलमान शासक शिक्षा और साहित्य के उदार संरक्षक भी थे। फिरोज तुगलक के शासन काल में दर्शन, ज्योतिष के कुछ ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया गया।इसी प्रकार सिकंदर लोदी ने भी संस्कृत के आयुर्वेद ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया था।
इस्लामी प्रभाव के फलस्वरूप प्रादेशिक भाषाओं में अपने ग्रंथ लिखे।जायसी का पद्मावत हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। चौदहवीं शती में अमीर खुसरो हिन्दी के अच्छे विद्वान हुए। भक्ति आंदोलन के संतों तथा सुधारकों ने अपने उपदेश देशी भाषाओं के शब्द मिलते हैं, जिसके कारण बीस हजार पदों की हिन्दी भाषा में रचना की। उनकी रचनाओं में हुई प्रादेशिक भाषाओं के शब्द मिलते हैं, जिसके कारण कुछ विद्वान उनकी भाषा को पंचमेल खिचङी की संज्ञा प्रदान करते हैं। इसी प्रकार गुरु नानक ने गुरुमुखी तथा पंजाबी में अपनी रचनायें प्रस्तुत की जिसमें इन भाषाों का विकास हुआ। कृष्ण-भक्ति संतों ने ब्रजभाषा में अपने ग्रंथ लिखे।
हिन्दी भाषा के साथ ही साथ इस्लामी प्रभाव से मराठी, गुजराती, बंगाली भाषाओं के साहित्य भी इस युग में समृद्ध हुए। फारसी, अरबी, तुर्की आदि भाषाओं के बहुत से शब्दों को इन देशी भाषाओं में ग्रहण कर लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप इनका शब्दकोश समृद्ध हो गया। दक्षिण भाषाओं में भी कुछ शब्द ग्रहण किये गये। ज्ञानेश्वर तथा एकनाथ जैसे संतों ने मराठी भाषा में ग्रंथ लिखे।
गुजरात में अपभ्रंश भाषा का प्रयोग हुआ, जिसमें जैन लेखकों ने अपनी कृतियों का प्रणयन किया। अनेक रासों की रचना भी इस समय की जाने लगी, जिनके माध्यम से जैन संत अपने उपदेशों का प्रचार करते थे। बंगला साहित्य के प्रसिद्ध कवि विद्यापति हुए जिनकी रचनाओं में मैथिली भाषा का भी विकास हुआ। बंगाल के मुसलमान शासकों ने भी बंगला साहित्य को प्रोत्साहित किया तथा अनेक संस्कृत ग्रंथों का बंगला में अनुवाद करवाया।
रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रंथों का बंगला अनुवाद प्रस्तुत किया गया। महाप्रभु चैतन्य देव ने अपने भजन-गीतों के माध्यम से बंगला साहित्य को समृद्धशाली बनाया। इसी प्रकार दक्षिण में शैव संतों ने अपनी रचनाओं के द्वारा तमिल भाषा एवं साहित्य को समृद्ध बनाया। विजय नगर का शासक कृष्ण देवराय तेलगू भाषा का विद्वान एवं संरक्षक था।
भारत में मुसलमानों द्वारा लाई गयी तुर्की और फारसी भाषाओं के संपर्क के फलस्वरूप बोल-चाल की एक नई भाषा का जन्म हुआ, जिसे पहले जबान-ए-हिन्दीवी तथा बाद में उर्दू नाम दिया गया। इसमें अरबी, फारसी, तुर्की, ब्रजभाषा, हिन्दी तथा दिल्ली प्रदेश की स्थानीय भाषाओं के शब्दों का सम्मिश्रण दिखाई देता है।
वस्तुतः इसके माध्यम से हिन्दुओं तथा मुसलमानों के साहित्य को समन्वित करने का प्रयास किया गया। भारत के मुस्लिम शासकों ने बाद में इसे राजभाषा बनाया। अमीर खुसरो ने सर्वप्रथम इसमें अपनी रचनायें प्रस्तुत की थी। भक्ति आंदोलन के संतों ने हिन्दू-उर्दू भाषा को विकसित करने में महान योगदान दिया था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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