प्राचीन भारतइतिहाससातवाहन वंश

सातवाहन शासक शातकर्णी प्रथम

सातवाहन शासक कृष्ण की मृत्यु के बाद श्रीशातकर्णि, जो सिमुक का पुत्र था, सातवाहन वंश का शासक बना। श्रीशातकर्णि “शातकर्णी प्रथम” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।यह शासक अपने वंश में शातकर्णी की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक था।

सातवाहन वंश का संस्थापक कौन था?

शातकर्णी प्रथम प्रारंभिक सातवाहन वंश के शासकों में सबसे महान शासक था। उसने अंगीय कुल के महारठी त्रनकयिरों की पुत्री नायानिका (नागनिका) के साथ विवाह कर अपना प्रभाव बढाया। महारठियों के कुछ सिक्के उत्तरी मैसूर से मिले हैं। जिनसे पता चलता है कि वे काफी प्रभावशाली व शक्तिशाली थे तथा नाममात्र के लिये शातकर्णी की अधीनता स्वीकार करते थे।

नायानिका के नानाघाट अभिलेख से शातकर्णी प्रथम के शासन काल के विषय में महत्त्वपूर्ण सूचनायें मिलती हैं।

YouTube Video

शातकर्णी प्रथम की विजयों का उल्लेख निम्नलिखित हैं-

  • इसने पश्चिमी मालवा, अनूप (नर्मदा घाटी) और विदर्भ के प्रदेशों की विजय की।
  • विदर्भ उसने शुंगों से छीना था, तथा कुछ समय के लिये उसे अपने नियंत्रण में रखा।शुंग कौन थे?
  • शातकर्णी प्रथम के समय में वासिष्ठिपुत्र आनंद, जो शातर्णी के अधिकार प्रमाणित मुखिया था, ने साँची स्तूप के तोरण पर अपना लेख खुदवाया था। यह लेख पूर्वी मालवा क्षेत्र पर उसका अधिकार प्रमाणित करता है।
  • पश्चिमी मालवा पर शातर्णी के अधिकार की पुष्टि श्रीसात नामधारी सिक्कों से हो जाती है, जो इस क्षेत्र से प्राप्त किये गये हैं।
  • शातकर्णी का साम्राज्य विस्तार पूर्व की ओर कलिंग राज्य की सीमा को स्पर्श करता था।कलिंग कहाँ स्थित है ?
  • उत्तरी कोंकण तथा गुजरात के कुछ भागों को जीतकर उसने अपने राज्य में मिला लिया था।
  • शातकर्णी को कलिंग नरेश खारवेल के आक्रमण का सामना करना पङा था।
  • हाथीगुंफा अभिलेख से पता चलता है कि अपने राज्यारोहण के दूसरे वर्ष खारवेल ने शातकर्णी की परवाह न करते हुए पश्चिम की ओर अपनी सेना भेजी। यह सेना कण्णवेणा के (वेगंगा) नदी तक आई तथा असिक नगर में आतंक फैल गया। यह स्थान शातकर्णी के अधिकार में था।यहाँ की खुदाई से शातर्णी का सिक्का मिला है।

शातकर्णी प्रथम ने दो अश्वमेघ यज्ञ किये थे। प्रथम अश्वमेघ यज्ञ राजा बनने के तुरंत बाद हुआ तथा द्वितीय अपने शासनकाल के अंत में करवाया। अश्वमेघ यज्ञ के बाद शातकर्णी ने रजत मुद्रायें उत्कार्ण करवायी।जिन पर उसकी पत्नी का नाम नागनिका अंकित है। इनके ऊपर अश्व की आकृति भी मिलती है।

शातकर्णी प्रथम ने मालव शैली की गोल मुद्रा चलाई।

उसने दक्षिणापथपति तथा अप्रतिहतचक्र जैसी महान उपाधियाँ धारण की। इसकी उपलब्धियों का वर्णन नागनिका(पत्नी) के नानाघाट अभिलेख से प्राप्त होता है। उसका शासन काल भौतिक दृष्टि से समृद्धि एवं संपन्नता का काल था। यह प्रथम ऐसा शासक था जिसने सातवाहनों को सार्वभौम स्थिति में ला दिया। उसकी विजयों के फलस्वरूप गोदावरी घाटी में प्रथम विशाल साम्राज्य का उदय हुआ, जो शक्ति तथा विस्तार में गंगा घाटी में शुंग तथा पंजाब में यवन साम्राज्य की बराबरी कर सकता था।

शातकर्णी प्रथम का मूल्यांकन-

पेरीपल्स से पता चलता है, कि एल्डर सैरागोनस एक शक्तिशाली राजा था, जिसके समय में सुप्पर तथा कालीन(सोपारा तथा कल्यान)के बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वाणिज्य के लिये पूर्णरूपेण सुरक्षित हो गये थे। इस शासक से तात्पर्य शातर्णी प्रथम से ही है। प्रतिष्ठान को अपनी राजधानी बनाकर उसने शासन किया। मालवा के सात नामधारी कुछ सिक्के मिलते हैं। इनका प्रचलनकर्ता शातकर्णी प्रथम को ही माना जाता है।

शातकर्णी की मृत्यु के बाद सातवाहनों की शक्ति कमजोर पङने लगी। नानाघाट के लेख में उसके दो पुत्रों का उल्लेख हुआ है – वेदश्री तथा शक्तिश्री। ये दोनों ही अवयस्क थे। अतः शातकर्णी प्रथम की पत्नी नायानिका ने संरक्षिका के रूप में शासन का संचालन किया। इसके बाद का सातवाहन वंश का इतिहास अंधकारपूर्ण है।

सातवाहन वंश का शासक हाल-

शातकर्णी प्रथम के बाद महत्त्वपूर्ण शासक हाल हुआ। इसका शासन काल सांस्कृतिक विकास के लिये जाना जाता है। हाल ने प्राकृत भाषा में गाथासप्तशती नामक मुक्तक काव्य लिखा।

हाल के दरबार में दो महत्त्वपूर्ण विद्वान गुणाढ्य जिसने वृहदकथा की रचना की। तथा सर्ववर्मन जिसने कातंत्र की रचना की, रहते थे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!