प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल भृगुकच्छ
भृगुकच्छ नामक स्थान की पहचान आधुनिक गुजरात के भड़ौच से की जाती है। यह पश्चिमी भारत का प्रसिद्ध नगर एवं समुन्द्री बन्दरगाह था। साहित्य में इसके नाम भरूकच्छ, भृगुपुर, भृगुतीर्थ आदि मिलते है। विदेशी लेखक इसे बेरीगाजा, बैरूगाजा, बैर्गोसा आदि कहते है। पुराणों में इसे महर्षि भृगु का क्षेत्र बताया गया है तथा इसे तीर्थस्थल कहा गया है। नासिक के एक गुहालेख से पता चलता है कि नहपान उषावदात के दामाद ने यहाँ यात्रियों की सुविधा के निर्मित आवासगृह, कुएँ, तालाब आदि बनवाये थे।
व्यापार-वाणिज्य के क्षेत्र में यह नगर अत्यधिक प्रसिद्ध था। पश्चिमी तट का यह सबसे बड़ा बन्दरगाह था। ईसा की प्रथम शती उत्तरी तथा मध्य भारत का समस्त आयात-निर्यात यही से होता था। जातक ग्रन्थों से इस स्थान से जाने वाले व्यापारियों का उल्लेख हुआ है। सुप्पारक जातक में भरूकच्छ के समुन्द्री व्यापारियों की साहसिक यात्राओं के रोचक विवरण मिलता है। सुस्सोदि जातक के अनुसार यहाँ के व्यापारी सुवर्णभूमि को जलमार्गों द्वारा जाते थे।
यूनानी-रोमन लेखकों ने भी भृगुकच्छ के व्यापारिक महत्व को संकेत दिया था। पेरीप्लस से ज्ञात होता है कि यहाँ पहुँचने वाले जहाजों को संकट का सामना करना पड़ता था। पश्चिमी देशों से इस नगर में मदिरा, सीसा, स्वर्ण-रजत मुद्रायें, बर्तन, अनुलेप आदि पहुँचते थे। यहाँ से निर्यातित किये जाते थे जिसके बदले में रोम से एक करोड़ मुद्रायें प्रतिवर्ष पहुँचती थी। हुएनसांग भी इस बन्दरगाह की प्रसिद्धी का उल्लेख करता है। उत्तरी भारत के प्रमुख नगर भृगुकच्छ से जुड़े हुये थे। उज्जयिनी से यहाँ मलमल आति थी। दक्षिण के व्यापारी इसी बन्दरगाह से अपनी सामग्रियाँ पश्चिम देशों में भेजते थे।
हर्ष के समय में भृगुकच्छ में गुर्जर वंश की राजधानी थी। जिसका शासक दक्ष द्वितीय था। यह राज्य संभवतः नर्मदा तथा माही नदियों की बीच की भूमि में स्थित था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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