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बर्मा का उदय कैसे हुआ?

बर्मा का उदय (barma ka uday kaise hua) –

18 वीं शताब्दी के मध्य में एक तिब्बत – चीनी नस्ल की जाति के अलोनगप्पा (अलोम्प्रा) नामक साहसी व्यक्ति ने बर्मा की राजधानी आवा पर अधिकार करके एक नये राजवंश की नींव डाली। अलोनगप्पा ने अपनी सेना को संगठित करके 1750 ई. में इरावती नदी के किनारे होता हुआ तैलंगों से पीगृ तक के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।

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अलोनगप्पा के उत्तराधिकारियों ने भी पङौस के निर्बल राज्यों पर आक्रमण करके बर्मा की सीमाओं का विस्तार किया।1766 ई. में स्याम पर आक्रमण करके बर्मा ने तनासरीन के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। बर्मा राजवंश में एक दूसरे शासक बोदव्यपा (1782-1819 ई.) के लंबे शासनकाल में, 1784 ई. में अराकान पर तथा 1813 ई. में मणिपुर पर भी अधिकार कर लिया गया। मार्च, 1817 ई. में बर्मी सेनाएँ असम की ओर बढी। यद्यपि असम के अहोम राजा ने बर्मियों का मुकाबला करने का प्रयत्न किया, किन्तु उसे पराजय स्वीकार करनी पङी।

बर्मी सेनाएँ असम की राजधानी जोरहट तक आ पहुँची। बर्मी सेनाओं ने बदनचंद्र को असम का शासक नियुक्त किया और वापिस लौट गयी। 1821 ई. में एक बार पुनः बर्मी सेनाएँ असम की ओर बढी तथा संपूर्ण असम क्षेत्र में बर्मी सत्ता स्थापित कर दी। अब बर्मी सेनाएँ ब्रिटिश सीमा से मिल गई, क्योंकि नाफ नदी के एक ओर अराकान था तो दूसरी ओर चटगाँव था, जो कंपनी के अधीन था। इधर असम में सिलहट क्षेत्र से भी कंपनी की सीमा मिलती थी। अतः अब कंपनी और बर्मा के बीच झगङे उत्पन्न हो गये।

जब अराकान पर बर्मा का अधिकार हो गया तो अराकान के निवासी नाफ नदी को पार कर चटगाँव आ गये। बर्मी सरकार ने कंपनी से उन व्यक्तियों की माँग की, किन्तु कंपनी ने उन व्यक्तियों को लौटाने से इन्कार कर दिया। इतना ही नहीं, जब अराकान के व्यक्ति उपद्रव करके भागकर चटगाँव में प्रवेश करते थे अथवा प्रवेश करने का प्रयास करते थे, तो बर्मा के सैनिक उनका पीछा करते हुए कंपनी की सीमा में प्रवेश कर जाते थे। ऐसी स्थिति में कंपनी सरकार चुप नहीं बैठ सकती थी। किन्तु 1824 ई. के पूर्व कंपनी और बर्मा के बीच कोई खुला संघर्ष नहीं हुआ, क्योंकि कंपनी का ध्यान भारत के अन्य प्रदेशों पर सत्ता जमाने में लगा हुआ था।

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