भक्ति साहित्यराजस्थानी भाषा एवं साहित्यलोक देवता अर देविया

लोक देवता देवजी(देवनारायणजी)बगङावत

लोक देवता देवजी(देवनारायणजी)बगङावत

देवजी यानि देवनारायणजी देवरा आखै राजस्थान मांय फैल्यौङा है। देवजी रौ खास देवरो सवाईभोज नांव री जागां पर है, जिकी भीलवाङा जिले रै आसीन्द कनै है। दूजी खास जगांवा मांय फरणौ (मध्यप्रदेश रै उज्जैन जिले मांय) अर राजस्थान रै टोंक जिले मांय दांता गांव है।
चमत्कारी सगती सराबोर देवनारायणजी रो जलम गोठा गांव रै जागीरदार सवाई भोज री दूजी घरवाली सोठी खटाणी री कोक सूं हूयौ बतावै। ओ कहीजै कै सोढी खटाणी नै गुरु रूपनाथ आसीरवाद दियौ कै थारै बेटो हुसी अर ओ बेटो चमत्कारी हुवैला अर सवाई भोज रै खानदान रौ सफायौ कर दियौ हौ इण कारण सोढी खटाणी मालासेरी रै जंगला मांय गयी परी अर वठै इज माघ महीने री सातम (सूरज सप्तमी) नै देवनारायणजी रौ जलम हुयौ। देवजी रै जलम रै बरस बाबत इतिहासकारां में मतभेद हैं।
कुछ ख्यातकार जलम रौ बरस विक्रमी संवत् 1167 अर कैई वि.स.1097 तो कैई ईस्वी सन् 1243 रै लगै टगै बतावै। दुरजनसाल रै सागै हुवै जुध मांय सवाई भोज रै खानदान रा फगत पांच टाबर बच्या है, जिकै मांय अेक तो देवनारायणजी हा, बाकी चार हा मदनसिंह, महेन्द्र, मानसिंह (कान भांगी) अर भूणा। गोठा सूं पाछो जांवती बेला दुरजनसिंह भूणा नै आपरै सागै लेयग्यौ हौ।

बालपणै मांय देवजी रौ नांव उदयसिंह राखीज्यौ। राणा दुरजनसिंह नै उणां रै जलम बाबत ठा पङगी अर वौ देवनारायण नै मारण सारू आपरा सिपाई भेज्या अर दूजा केई जनत करया पण देवजोग सूं देवनारायण हरैक बार बचतो रयो। मालासेरी रै जंगला मांय देवनारायण माथै बधतो देख र सोढी खटाणी आपरै पीहर देवास आयगी। वठै इज देवनारायण री सीक्सा-दीक्सा हुई।
जवान हुंवता हुंवता देवनारायण भोत हूंसयार घुङसवार अर जोधा बणनै रै सागै-सागै आयुर्वेद अर तंत्र सास्त्र रौ ज्ञाता हुयग्यो। उम तय कर लियौ कै म्हारै जीवण रौ एक इज ध्येय है अन्याव अर अत्याचार रौ अंत अर धरम री थरपना।

सवाईभोज रौ एक खास भायलो हो छोछू भाट। बौ लगातार देवनारायण माथै निजर राख रैयौ हो। जद देवनारायण हरैक विद्या मांय पारंगत हुयग्यो तद भाट देवास आयौ अर देवनारायण नै गोठा चालण सारू कैयौ। सोढी खटाणी रै मन मांय कैई संकावां ही पण देवनारायण री जिद देख र वा भी गोठा जावण सारू त्यार हुगी।छोछू भाट, देवनारायणजी, सोढी खटाणी अर कुछैक रखवाला गोठा खातर रवाना हुयग्या।
मारग मांय धार रै महाकाली री अराधना री बखत देवनारायणजी वठै रै राजा जयसिंह री बीमार बेटी पीपल दे री जान बचाई। जद राजा जयसिंह आपरी बेटी रौ ब्याव देवजी सूं कर दियौ। धार मांय ही देवजी रौ ब्याव एक नागकन्या सूं भी हुयौ है।

समै निकलते-निकलते देवनारायणजी री सगती बधतीगी अर वांरो जस बी च्यारूंमेर फैलण लागग्यौ। गोठा पूगते पूगते वांरी जस बी च्यारूंमेर फैलण लागग्यौ। गोठा पूगते पूगते वांरी मुलाकात भूणा सूं हुई अर बै भूणा नै रणनीति मुजब दुरजनसाल सागै रैवण रौ कयौ। गोठा पूग्यां पछै मदनसिंह, महेन्द्र अर कान भांगी उणां सूं मिलग्या। पैली तो सगला जणा मिल र गोठा मांय पाछी सांती रो वातावरण बणायो अर लोगां नै ढाढस बंधायो फैर धीरे-धीरे एक रणनीति बणाय र दुरजनसाल रै आदमियां रै कामां में लागग्या।
बै मानीज्यौङा सिधपुरुस हा अर आपरी सगती नै सदा ई लोगा रै कल्याण सारू लगाई। इण कारण वांरी ख्याति लोकदेवता रै रूप मांय हुई। छोछू भाट नै पाछो जलम दिरावणो, घर आली पीपल दे री कुरूपता नै दूर करणौ, तंत्र रै प्रभाव सूं सूखियौङै दरियाव मांय पाछौ पाणी बैवाणौ, सारंग सेठ रो पुनरजलम इत्याद ऐङा चमत्कार हुया जिकां सूं देवजी नै लोकदेवता री ख्याति मिली।

वै भगवान किसनजी रा अवतार मानीज्या।

देवलोकगमन

देवनारायणजी रै जद देवलोक जावण रौ बखत आयौ तो वांरी जोङायत कयो कै म्हें किणरै साहरै जीवूंला। तद देवजी उणांनै कैयौ कै जद भी तूं गोबर थाप र दीयौ जला र म्हारौ सिमरण करैला, म्हूं थारै सामी आ जाऊंला। जद तांई गोबर गीलो रैवेला, म्हे थारै कनै होवूंला अर गोबर सूखतां पाण ई पाछो अन्तरधान हुय जासूं।

देवजी रै देवलोकगमन हुया पाछै पीपलदे वां रौ रोज रात नै सिमरण करती अर वां सूं बातां करती। एक दिन देवजी री माता सोढी पीपलदे रै कमरे मांय सूं बात री आवाज सुणी तो वा पीपल दे नै इण बाबत पूछ्यौ। पीपलदे डरगी अर आ सोची कै कठै म्हारै चरितर माथै कोई दाग नीं लाग जावै, अर बा सगली बात सासू नै बताय दी। जद सोढी भी कयो कै अबकी म्हनै बी म्हारै बेटे रा दरसण कराईजै।
गोठा रौ राजपुरोहित भी अ बातां सुण रैयौ हो, बो आ सोची कै गोबर मांय जे तेल घाल देवांला तो बो सूखेला ई कोनी अर देवजी नै पछै अठै इज रैवणो पङसी। रात नै अ सगला आ ई जुगत लगाई। देवजी रा दरसण हुयग्या। वठीनै जद गोबर सूखतौ नीं लाग्यौ तो देवजी नै कीं संका हुई, वै ध्यान लगायौ तो वां नै ठा पङगी कै कांई खुराफात करीजी है। देवजी घणा नाराज हुया अर कैयो कै अबै म्हूं कदैई कोनी आवूं पण म्हारी पूजा रो अधिकार अबै गूजरां नै हुवैला ब्राह्मण नै नहीं अर गूजर म्हारी पूजा नीम रा पत्ता सूं करैला। इण भांत देवजी गोबर अर नीम री परतिस्ठा भी बढाय दीनी।

चूंकि देवनारायणजी रो जलम गूजर जात री सोढी खटाणी री कोख सूं हूयौ, इण कारण गूजर जात मांय देवजी री घणी मान्यता है। भादवे री छठ अर माघ सुदी सातम नै देवजी री पूजा घणै धूमधाम सूं करीजै अर इणां रै नांव रा भजन गाईजै।

देवनारायणजी रौ सिमरम देवजी, ऊदाजी (उदयसिंह), क्रस्णजी, धरमराज अर नारायण आंई पांच नांवा सूं करीजै। मुसलमान लोग आं नै ऊदलसार नांव सूं पूजै।

देवजी री पूजा री विधि सरल अर सैज है। पूजा खातर मूरत बणावण री कोई जरूरत नीं है, गांववाला छोटोसो क देवरो बणाय र पांच इंटा रै रूप मांय इणां री थापना करै अर पेङ रा पत्ता ईं माथै राख र गूगल इत्याद रौ धूप दिरीजै अर परसाद रूप में अ पत्ता ई बांटीजै।

Related Articles

error: Content is protected !!