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राजस्थान री लोक देवी जीण माता

जीण माता शेखावाटी अंचळ रा मानीज्या लोक देवी है। इणां रै सागै इ आं रै भाई हर्ष रौ नांव भी लोकदवता रै रूप मांय मानीजै। आं रै जलम रै बाबत इतिहासकारां रै अेका मत कोनी अर ना ही कोई प्रमाणिक जाणकारी इतिहास आ कैवै कै सेखावाटी मांय घाघू चैहान नांव रो राजा हुयो जिकौ विक्रमी संवत 959 मांय चुरू जिले मांय धाधू गांव बसायो जिका आज बी मौजूद है।

घाघू चैहान रै दो राणियां ही। अेक सूं ’हर्ष’, हरकरण अर जीण पैदा व्हिया अर दूजी राणी सूं तीन बेटा हुया कान्ह, इन्द्र अर चन्द्र। वचन रै मुजब घाघू चैहाण रै देवलोक हुयां पाछै कान्ह राजा बणयौ। गोगाजी चैहान इणी वंस मांय जलम लियो।

’हर्ष’ अर जीण भाई – बैन रै प्रेम री अेक अनूठी गाथा है अर सेखावाटी अंचळ में लोग आज भी इै गाथा नै अलग-अलग तरै गावै। हर्ष रौ ब्यांव हुग्यौ हौ अर पिता मरती वेळा हर्ष नै कैयौ हो कै म्हारै मरया पछै तूं जीण रौ पूरौ ख्याल राखीजै पण हर्ष री घरवाळी तेजतरार ही। वा बात-बात माथै जीण नै ताना मारती रैंवती।

अेकर हर्ष परदेस गयोङो हौ अर लारै सूं बींरी घरवाळी जीण नै परेसान करण सारू कोई कसर नीं छोडी। तंग आय’र जीण घर छोड’र निकळगी। जोग सूं उणी बखत हर्ष पाछो आय रैयो हौ अर भाई – बैन मारग मेई मिलग्या। हर्ष जीण नै घर सूं बारै निकळण सारू पूछयौ जद बा रोंवती रोंवती सगळी बात बतादी।

हर्ष उणनै पाछी घरै चालण सारू कैयौ पण वा नहीं मानी। जीण संन्यास लेवण रौ संकळप कर लियौ हो अर बींरै संकळप सूं हर्ष भी इत्तौ गळगळो हुग्यौ कै वौ बी उणी बखत बैन रै सागै इ’ज संन्यास लेण रो निरणै कर लीनो अर दोन्यूं भाई – बैन गांव सूं बारै निकळग्या। गांव सूं निकळ दोन्यूं भाई – बैन अलग अलग पहाङा पर तपस्या करी।

वांरै तप सूं पूरौ खेतर आळोकित हुग्यौ अर वांरां चमत्कारां सूं इलाके रा लोग-बाग वांरै दरसण सारू आवण लाग्या। जीण माता देवी रै अवतार रै रूप मांय पूजीजण लागी। वांरो मिंदर सीकर सूं 7 कोस दिखणा दमां पहाङ री घाटी मांय बण्यौङौ है अर आ पहाङी जीणमाता री पहाङी रै नांव सू मानीजै।

इणी भांत हर्ष दूजी पहाङी माथै बैठ’र भगवार शंकर अर भैंरूं
री तपस्या करी अर वां सूं वरदान लियौ। कालान्तर मांय बो हर्षनाथ भैरव रै नांव सूं पूजीज्यौ अर वा पहाड़ी हर्षनाथ री पहाङी रै नांव सूं पूजीजै। आज भी जन हर्षनाथ भैंरूं री पूजा घणै मान सूं करै। सिलालेखां रै मुजब सीकर जिले रै राणोली गांव मांय विक्रमी संवत 1013 मांय अेक ब्राह्मण अल्लट हर्षदेव रौ मिंदर बणवायौ।

अेक और सिलालेख रै मुजब विक्रमी संवत 1162 मांय जीण माता रौ पैलो मिंदर बणनै रौ प्रमाण मिळै है। हरेक बरस चैत अर आसोज महीने रै नौरतां मांय जीण माता रै मिंदर मांय बडौ मेळो लागै अर दूर – दूर सूं लोग दरसण करण सारू आवै। जीणमाता इणी लोक री क्षत्राणी ही पण आपरी त्याग अर तपस्या सूं लोक देवी रूप मांय पूजीजी।

हर्ष अर जीण रै जीवण बाबत अेक मार्मिक लोकगीत चावो है जिकै मांय दोनूं भाई – बैना रै जीवण रौ अर वांरै त्याग अर तपस्या रौ वरणण करयौङौ है। इण गीत रै मुजब बैन जीण भाई नै कैवै कैः-

जे म्हारी होती जुग में माय
अकन कंवारी नै नांय बिडारती
कुण पूंछे नैणां हंदो नीर
कुण रे सैलावै जळतो हीवड़ौ
कुण फेरै सिर पर म्हारै हाथ।

अेक सवाळ रै जवाब मांय हर्ष बींनै कैवै:-

असी ए कळी रो सिमाद्यूं घाघरो
अर, मंगवाय द्यूं दिखणी चीर
मोत्यां जड़वाय देयूं ए थारी राखड़ी
हीरां जड़ांद्यूं थारो हार
बिछिया घड़ाद्यूं ए बाई तन्नै बाजणा।

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