भक्ति साहित्यराजस्थानी भाषा एवं साहित्य

वल्लभ सम्प्रदाय री थापणा कुण करी

17वीं सदी में राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय रो आगमन व्हीया, उण सूं पैलां औ सम्प्रदाय ब्रज में घणौ चावौ हो, इणमें राधा-क्रिस्सन री भगती भावना रो नूंवो सरूप मिळै है। इणमें कीरतन, सुमिरण, दास्य, सखा अर माधुर्यता रा बरणाव मिळै है। राजस्थान में नाथद्वारा इणरो खास धाम रैयो है। वल्लभ सम्प्रदाय में वैष्णव भगती रो सोवणो रूप देखण नै मिळै। इणमें श्री क्रिस्सन री लीलावां रो चित्रांकन देखण जोग है। वल्लभाचार्य इण पंथ रो प्रचार अर प्रसार करयो है। वल्लभाचार्य श्री नाथ जी रै सुरुप-पूजन में अस्ट प्रहर भावना, सिणगारढावट अर कीरतन आद रो सुन्दर आयोजन करयो है। इण सम्प्रदाय में ‘अन्नकूट’ अर ‘छप्पन भोग’ जैङा उच्छबी रो प्रचलन भी हो।

वल्लभाचार्य रो जीवण परिचै

इण सम्प्रदाय रा प्रवर्तक वल्लभाचार्य मान्या जावै है। आं रौ जळम वि.सं. 1535 (1478 इ .) में चम्पारण्य नामक गांव में हुयों। अै तैलंग बामण हां, इणारौ पालन-पोसण काशी में व्हीयों। इणारै जळम बाबत विद्वानां में मतभेद है। डाॅ. धीरेन्द्र वर्मा रै मुजब इणारौ जळम बिहार रै चम्पारण जिले में अर इणारौ सुरुवाती जीवण काशी में बित्यो हो। इणारै पिता रो नाम लक्ष्मण भट्ट अर माता रो नाम इलम्मागारू हो। इणारौ परिवार घणो सिमरिध हो। इणारी सिक्षा-दीक्षा भी चोखी हुई ही। आं रा सुरूवाती गुरु लक्ष्मण भट्ट अर माघवेन्द्रपुरी हा, अै छोटी उम्र मैं ही वेद, पुराण, दरसण आद विसयां रा पंडित अर ग्याता बणग्या हा। 1558 सं. में इणारौ ब्या’व हुयो हो। इणारै दोय टाबर व्हीया, जिणामें विठ्ठलनाथ घणा चांवा हा, मोटो बेटो गोपीनाथ हो।

वल्लभाचार्य री मिरत्यु

1642 सं. में काशी में व्हीं ही। तदै गोसाई विठ्ठलनाथ इणारौ पद भार संभाल्यौ हो, वल्लभाचार्य नै ‘शुद्धाद्वैतवाद
रो प्रतिपादन करयो हो।


वल्लभाचार्य री रचनावां रो परिचै

वल्लभाचार्य री रचनावां- बाबत पं. पुरोहित आचार्य इणारै 71 ग्रंथ गिणाया है। रामचन्द्र शुक्ल मुजब इणारै ग्रन्थां रा नाम इण तरै है-

  • पूर्व मीमांसा भाष्य
  • उतर मीमांसा भाष्य
  • सुबोधिनी टीका

सिद्धान्त रहस्य

विठ्ठलनाथ आपरै ग्रन्थ ‘‘विद्वतमंडलम्’’ में आपरै पितृचरण में गोपी पति रति मारग रो प्रवर्तक आचार्य भी कयो है। श्रीमदभागवत री ‘सुबोधिनी’ नाम री टीका रै ‘रास-पंचाध्यायी’ प्रकरण में वल्लभाचार्य जी गोपियां रो विसेस उल्लेख भी करयो है। वल्लभाचार्य ठौङ-ठौङ घूम’र श्री क्रिस्सन भगती रो प्रचार करयो हो उणा इणानै ब्रज में आपरी गाद्दी री
थापना करी ही। श्रीनाथ रो मिन्दर भी इणा बणवायो हो। वि.सं. 1550 में गोकुल रै गोविन्द घाट माथै पुष्टिमार्गी
साखा री थापना करी ही, ‘पुष्टि’ रो मतलब भगवान री भगती करनै उणारी किरपा प्राप्त करणो है। ‘पुष्टि’ रो
सम्बन्ध भगवान रै अनुग्रह सूं है। इणारी रचनावां में श्री क्रिस्सन भगती रा न्यांरा-न्यांरा सरूप रा बणाव मिळै है।

वल्लभाचार्य री सिस्य परम्परा

वल्लभाचार्य रो मत क्रिस्सन भगती काव्य में घणो चावो हुयो। इणा क्रिस्सन री माधुर्य भगती रो प्रचार करयो है। अे शुद्धाद्वैतवादी हा। इणारै मुजब ब्रह्म, जीव अर जङ जगत में कोई फरक नीं है। इणा क्रिस्सन भगती री थापणा ‘पुष्टिमार्ग’ सूं करी ही। वल्लभाचार्य रै चेलां में

  • विठ्ठलनाथ,
  • कुम्भनदास,
  • सूरदास,
  • परमानंददास
  • क्रिस्सनदास

विठ्ठलनाथ ‘‘विद्वामण्डलनम्’’ नाम री कृति लिखी है। विठ्ठलनाथ अर वल्लभाचार्य रा च्यार च्यार सिस्यां सूं ‘अष्टछाप’ री थापना करी, जिणमें वल्लभाचार्य रा कुम्भनदास, सूरदास, परमानंददास क्रिस्सनदास अर विठ्ठलनाथ रा च्यार सिस्य गोविन्दस्वामी, नंददास, छीतस्वामी अर चतुर्भुजदास हां। अै आठूँ कवि क्रिस्सन भगती परम्परा में ‘‘अष्टछाप’’ नाम सूं घणां चांवा है।

क्रिस्सन भगती रो सरूप


वल्लभाचार्य रै शुद्धाद्वैत मुजब ब्रह्म ही इण जगत में सबसू ऊँचो हो। जीवात्मा अर जङ जगत तात्विक रूप सूं ब्रह्म ही है। ‘शुद्धाद्वैत’ दरसण री साधना ही ‘पुष्टिमार्ग’ है। माधुर्य भाव री उपासना ही ‘पुष्टिमार्ग’ रो आधार है। इण में श्री क्रिस्सन री लीलावां रो बरणाव मिळै है। वल्लभाचार्य गोपिकावां री भगती नै आपरौ आदर्स मानै है। गोपिकावां भी सातविक प्रेम री प्रतीक है। इण खातर पुष्टिमार्गी भगती गोपिकावां नै गुरु मान’र उणारै आचरण रो अनुकरण करणी। वल्लभाचार्य श्री क्रिस्सन नै परब्रह्म मान्यो है। श्री क्रिस्सन सत्, चित, आनन्द रो रूप है अर बै सगळी जागां व्याप्त है-

‘‘पर ब्रह्म तु कृष्णोहि सच्चिदानन्दकं वहत्।
जगतु त्रिविध प्रोक्त ब्रह्म विष्णु शिवास्ततः।
देवता रूपवत प्रोक्ता ब्रह्मणीत्र्थ हरिर्मत।।’’

वल्लभाचार्य रै मुजब श्री क्रिस्सन रो रूप निरगुण है, पण निरगुण व्हैतां थकां भी वै सगुण है। भगतां खातर बै सगुण रूप धारण’र संसार में लीलावां करै है। इण सम्प्रदाय में वात्सल्य अर साख्य भावां री प्रधानता रै कारण दूजा सम्प्रदायां रै अस्ट पोर सेवा विधान सूं न्यारी है। वल्लभ सम्प्रदाय में सेवा रो क्रम मंगला, सिणगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, सिंझ्या-आरती आद खास है। वल्लभाचार्य रो भागवत तत्त्वां माथै आधारित है।

इणा साधना प्रदान पुष्टिमार्ग री खोज करी ही, प्रेम भगती में वल्लभाचार्य भगवान री महिमा रै ‘ग्यान’ अर उणारै ‘ध्यान’ रो समावेस कर दियो। सत्संग, चरित-श्रवण, मनन आद अर बाल गोपाल री सेवा में विसेस रूचि दिखायी ही। वल्लभाचार्य रै मुजब सच्चिदानंद देहधारी क्रिस्सन ही पूरण परब्रह्म है। अणपार संगतियां सूं बै सगळां री आत्मा में रमण करै है, इण खातर वै आत्माराम भी है। ‘पुरुषोत्तम’ रूप में वै ‘अगणितानंद’ अर ‘परमानंद’ रो रूप है। अै आपरै भगतां खातर कैई लीलावां करै है। अै जगत नै सांच अर संसार नै झूठौ मान्यो है। लीला पुरुस आपरी लीला रै खातर इण जगत रो सिरजण करै। ‘अनुग्रह’ भी उणारी लीला रो रूप ही है। सगळा नै पूरी निस्ठा रै साथै क्रिस्सन रो भजन करणो चाहिजै-

‘‘सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो ब्रजाधिपः।
स्वस्यायमेव धर्मों ही नान्यः क्यापि कदाचन।।’’

भगत रै खातर तनुजा, वितजा अर मानसी सेवा रो विधान है। वल्लभाचार्य रै मुजब प्रेम री तीन अवस्थावां हैं-स्नेह, आसक्ति अर व्यसन। श्री क्रिस्सन रै मानव जळम लेण सम्बन्ध में सूरदासजी कैवै
है-
‘‘याकी कोखि औतरें वे सुत, करै प्रान परिहास।’’

क्रिस्सन री बाळ लीलावां में माखण चोरी, कालिया नाग दमण, पूतना रो वध आद घणखरा चितराम देखण नै मिळै है। कालिया-दमन करण वाळा क्रिस्सन री सुन्दरता रा बरणाव में मुरली (बांसुरी) गाननै सुण’र गोपियां माथै कांई प्रभाव पङै, जिणमें यग्य पत्नी लीला, ‘गोवर्द्धन धारण’ आद कथावां रा चित्रण इण सम्प्रदाय री भगती भावना में देखण नै मिळै है।सूरदास बतायो है कै मोहिणी मुरली रो गान सुणतां ही इण जगत् में ऊँधी गति व्है जावै है। जकां गाय रा बछङा दूध पी रैया हां, बै दूध छोङ देवै है, गायां चारो चरणो छोङ दियो है, जमुना भी ऊँधी धार बैहण लागी अर हवा रूक गयी है-

‘‘मुरली गति विपरीति कराई।
तिहंू भुवन भरि नाद समान्यौ, राधा रमन बजाई।।’’


सूरदास री भांत परमानंददास भी लिख्यो है कै स्याम रो फुटरापो मनमोवणो है ज्य-ज्यूं क्रिस्सन बङा व्है रैया है त्यूं-त्यूं उणारौ अनुराग गोपियां में बढ रैयो है। क्रिस्सन रै रूप अर गुणां माथै वै घणी मंत्र मुग्ध व्है रैयी है। अेक गोपी पिणघट माथै क्रिस्सन रै रूप नै देख’र मंत्र मुग्ध कैय रैयी है-

‘‘सांवरौ बदन देखि लुभानी।
चले जात फिरि चितयौ मोतन, तब ते संग लगानी।
कयल नैन उपरेनो फेर्यो, परमानंदहि जानी।।’’

वल्लभाचार्य नै बाळ-गोपाल क्रिस्सन री पूजा अपणाई अर आपरै चेलां में उणरौ प्रसार भी करयो। लारै सूं विठ्ठलनाथ ‘‘युगल किसोर उपासना’’ रो विधान भी चलायो हो अर नवधा भगती रा सगळा तत्व क्रिस्सन नै लैय’र थापित करया हा। इण तरै ‘शुद्धाद्धैत सिद्धान्त’ क्रिस्सन नै लीला नायक रै रूप में अमर कर दियो। साहित्य में इणीज रूप रो बोलबालो रैयो है। नायक क्रिस्सन में बाळ-क्रिस्सन री प्रतिष्ठा व्ही अर आमीरां रो बाळ देवता अठै रूप बदलाव रै साथै बाळ-क्रिस्सन रै रूप में उपास्य बण्यो हो। अष्टछाप रा कवियां अर सूर नै विसेस रूप सूं बाळ रूप रो लालित्य ‘शास्वत रूप’ सूं थरप दियो। धीरे-धीरे क्रिस्सन रो दारसनिक रूप गायब व्है’र ‘लीलाधर’ रूप ही खास रैयो। वल्लभाचार्य ही लीला नायक रै रूप में क्रिस्सन री सांची प्रतिस्था करी ही।
वल्लभ सम्प्रदाय री क्रिस्सन भगती रो मूल्यांकन करां तो इणमें क्रिस्सन रा चरित में ‘मानवीय अन्तर्वृतियां’ री उद्धात अभिव्यंजना देखण नै मिळै है। क्रिस्सन आपरी सक्रियता, सचेस्टता, जतन, संघर्स, महान दायित्व, उद्देस्य अर महान सांस्कृतिक निरमाण में महताऊ गौरवपूरण भोमका निभायी है।

Related Articles

error: Content is protected !!