भक्ति साहित्यराजस्थानी भाषा एवं साहित्यलोक देवता अर देविया

राजस्थान रा लोक देवी देवता

राजस्थान रा लोक देवी देवता

इण इकाई रौ खास उद्देस्य विद्यार्थियां नै लोक-देवतावां अर उणां रै जीवन-चरित री ओलखाण करावणौ है, जिकै सूं उणां नै खुद री संस्कृति री घणमोली जाणकारी मिल सकै।

प्रस्तावना

मरूधरा रै कण कण मांय भगती अर सगती री धारा अेक-मेक हुयर बरसां सूं बैंवती आय रैयी है। इण धरा पर अैङी पुण्यात्मावां जलम लियो जिणा आपरै बगत में मरूधरा रै समाज नै आतताईयां सूं बचायौ, गऊमाता री रिक्षा करी, गरीब-गुरबां रै जीवण नै आणंदकारी बणायौ।

ऐ पुण्यात्मावां सदा ई स्वहित नै त्याग र लोकहित खातर ई आपरौ जीवण लगाय दियौ। इण कारण सूं अ पुण्यात्मावां मरूधरा रै जनमानस में इण तरियां घुलमिलगी कै जागां-जागां आं री पूजा हुवण लागगी, इणां री वातां, फङां, पवाङां इत्याद रचीजण अर गावीजण लागग्या

अर इणां रा मिंदर, देवरा, थान, पगल्या, समाध्यां इत्याद बणग्या जठै लोग – लूगायां जात, झडूला चढावै अर दरसण करण नै जावै, मिनतां मांगै अर पूरी हूवण पाछै सिरधा सारू परसादी चढावै। आं कारणां सूं आं पुण्यात्मावां नै लोक देवी-देवता रै रूप में ख्यात मिली।

राजस्थान रा लोक देवता इणी भांत हैं

लोक देवियां-इणी भांत हैं

जुग रो दरसाव

राजस्थान रो सामाजिक, सांस्कृतिक अर धार्मिक दरसाव घणौ ई अमोलो अर जगचावो है। इण भौम माथै सगती अर भगती रौ अजब मैल सदा सूं ई एकमेक हुय र चालतो रैयौ है। राजस्थानी जोधा जुध रै मैदानां मांय रणचंडी रै झंडे तल्लै ई आपरो जीवण सारथक मानता हा, तो दूजी कानीं भगती री लहरां मांय डूबता उतरता अठै रा मिनख जीवण रो आनंद लैंवता हा।
राजस्थान री इणी धरा पर लारला सैकङां हजारां बरसां मांय अनेकूं पुण्यात्मावां जलम अर अवतार लियो अर उणां आप आपरै बगत में सदा ही लोकहित रै कामां मांय आपरो जीवन लगाय दियौ।
आं पुण्यात्मावां रै बारै में आज भी घणखरी किंवदंतियां, वांता, पवाङां, पङां इत्याद रै रूप चलण मांय है अर आज भी उणां री याद में अनेकू मिंदर, देवरा, थान, पगल्या, समाध्यां इत्याद मिल जावैला जठै मानखो आपरी तकलीफां अर पीङावां सूं मुगती पावण खातर धोक लगावण नै जावै।

राजस्थान रा लोक देवी-देवता नांव री ई इकाई मांय राजस्थान री ग्रामीण संस्कृति, लोक आस्था, लोक चाह, लोक उच्छब-परब अर लोक देवी-देवतां री भगती-सगती माथै विस्वास अर भरोसो बधै, जनजीवण सुख-सांती सूं रैवै, लोक मरजादावां थरपीजै। लोक परंपरा सूं घणमोलो लोक जुङाव बधै।
मिनख-मानवी जमारै मांय पीङा, अमूजौ मिटावण सारू लोग संस्कृति, रौ फैलाव, मेल-मगरिया, तीज-तिंवांर, लोक देवी-देवतावां रै सारू सरधा-भगती राखतां हरख-कोड, सुख उपजावै अर जीवण-जातरा बधावतां रैवै। पाबूजी, हङबूजी, रामदेवजी, मेहाजी, गोगाजी, मल्लीनाथजी, करणीजी, हिंगराज माता, आवङजी इत्याद सूं प्रेरणा लेवतां थका बालक-बालिकावां री निजू प्रदेस सारू पहचाण बधती जावै।

इण धरी माथै पितर भोमियां, खेतरपाल, लोक देवता अर लोक देवियां रौ मोकलौ प्रभाव है। लोक देवी-देवतावां रै मेल्लां सारू लोग-लुगायां में हरख-उच्छाव अर आछा संस्कार ऊपजै, विद्यार्थियां मांय सद्भाव, सद्प्रेरणा अर संयम रा गुण थरपीजै।

Related Articles

error: Content is protected !!