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निम्बार्क सम्प्रदाय री थापणा कुण करी

‘वैष्णव’ धरम रा मूळ प्रवर्तकां में च्यार आचार्य व्हीयां है, जिणामें श्री हंसनारायण (सनक), श्री लिछमी, रूद्र अर ब्रह्म। अै च्यार सम्प्रदाय घणा चांवा व्हीया, कालान्तर में श्री निम्बार्क, श्री रामानुज, श्री विष्णु स्वामी, श्री माध्वाचार्य रा च्यार नामी सम्प्रदाय चावा व्हीया। निम्बार्क सम्प्रदाय रा पैला प्रवर्तक हंस भगवान मान्या जावै है। इण सम्प्रदाय में ‘गोपाल मंत्र’ रो घणौ महत्व है। इणमें 18 अक्षर अर पांच पद है। निम्बार्क सम्प्रदाय में इणी मंत्र रो उपदेस गुरु दिया करता हा, सनक वादियां सूं नारद नै औ मंत्र मिल्यो, उणानै निम्बार्क उपदेस दियो हो। निम्बार्क सम्प्रदाय रै मुजब ब्रह्म नै प्राप्त करणौ ही जीव रो उद्देस्य है। इणरो उपाय सरणागति है। उपासना में भगवत प्रेम रो साधन है। भगवान री पूजा रै रूप में उपासना इण सम्प्रदाय में जरूरी करम है। खुद निम्बार्क जी कैवै है-

‘‘उपासनीयं नितरां जनैः सदा प्रह्यणयेउज्ञानततोउनु वृते।’’

निम्बार्क सम्प्रदाय उपासना प्रधान है। इण सम्प्रदाय में हरैक वैष्णव गुरु सेवा, भगवान रो जप, भागवत पूजा, भागवत रूप चिन्तन रो ही जसगान करै। इणारी उपासना में वैदिकी पूजा, तांत्रिक पूजा, अनुरागात्मक पूजा, नित्य विहार घणा महत्व राखै अर इणारी बारली उपासना प्रणाली में मुद्रा, कंठ तिलक अर स्मृति चिन्ह रो बणाव भी मिळै है। इण पंथ रो प्रचार मथुरा, वृन्दावन अर राजस्थान रै सलेमाबाद में भी देख्यो जा सकै है।

निम्बार्क सम्प्रदाय हरि व्यास देव पांच सुख मान्या है- सेवा, सुरत, उत्साह, सहज अर सिद्धान्त। निम्बार्क सम्प्रदाय में उपासना पद्धति तांत्रिक अर ‘शास्त्रीय’ दोनूं तरै री रैयी है। निम्बार्क नै रंगदेवी रो अवतार मान’र उणानै वात्सल्य रस रो दरसक कयो गयो है। इण तरै इण सम्प्रदाय में श्री क्रिस्सन ही उपास्य, भजनीय, सेव्य अर पूज्य है। क्रिस्सन रै साथै ही
राधा नै भी इ स्ट देवी रै रूप में अंगीकार करयो गयो है। इणारै अनुयायी लिलाट माथै गोपी चंदन री दोय लाम्बी रेखावां नै धारण करै, जिणारै बीच में अेक क्रिस्सन बिन्दु राखै है। इण सम्प्रदाय नै ‘‘सनक सम्प्रदाय’’ अर ‘‘हंस सम्प्रदाय’’ भी कैयो जावै है। सनक अर सनंदन आद राखि इण सम्प्रदाय रा आद आचार्य रैया है।

निम्बार्क रो जीवण परिचै


निम्बार्क तेलंग बामण हा। डाॅ. भण्डारकर रै मुजब इणारौ जळम सन 1162 मान्यो जावै है। इणारौ जळम वेल्लोरी जिले रै निम्ब नाम रै गांव रै अरुण रिखी री धरम पत्नी जयन्ती रै उदर सूं कांति माह सुदि पख पूनम नै व्हीयो हो, अै बाळपणै सूं ही क्रिस्सन रा भगत हा, दिक्खणांद में भणाई करनै वैराग्य धारण करता हुया भारत री जातरा करता आखिर में वृन्दावन में भगती साधना करी ही। दारसनिक साहित्य में इणारै निम्बार्काचार्य, निम्बादित्य, निम्ब भाष्कर, नियमानंदाचार्य आद नाम भी मिळै है।

निम्बार्क री रचनावां रो परिचै


निम्बार्क कैई ग्रन्थां री रचना करी है, जिणामें उणारा सिद्धान्तां री जाणकारी मिळै है। साथै ही इणारी क्रिस्सन भगती रो रूप भी मिळै है। इणारी रचनावां रा नाम इणगत है-

‘‘वेदान्त परिजात सौरभ, वेदान्त-कामधेनु, मंत्र रहस्य षोङशी, सदाचार प्रकाश, प्रपति चिन्तामणि, दशश्लोकी।’’ इणमें दरसण ग्रन्थां री परम्परा घणी व्यवस्थित रूप सूं मिळै है, पण रस-रीति रो प्रवर्तन वठै भोत पछै व्हीयो है। ‘दशश्लोकी’ ग्रन्थ निश्चित रूप सूं बाद रो ग्रन्थ कैयो जा सकै है। ‘वेदान्त-परिजात’, ‘सौरभ’ अर ‘दशश्लोकी’ ग्रन्थां में इणारै सम्प्रदाय रा सिद्धान्त देखण नै मिळै है।

निम्बार्क री सिस्य परम्परा

निम्बार्क रा चेलां री परम्परा नै आगै बढावण में श्री निवासाचार्य, औदुम्बराचार्य, गौरखाचार्य, विश्वाचार्य, पुरुषोत्माचार्य, देवाचार्य, हरिव्यास देव खास है। निम्बार्क मतावलम्बियां में श्री भट्ट, हरिव्यास देव, रूप रसिक दे अर तत्व वेजा देव भी क्रिस्सन काव्य नै आध्यात्मिकता में डुबौ दियो है, पण काव्यत्व इणारी पोथ्यां में बौत कम मिळै है।

निम्बार्क री क्रिस्सन राधा भगती रो सरूप


निम्बार्क सम्प्रदाय में राधा-क्रिस्सन रै पति-पत्नी सम्बन्धां नै स्वीकार करयौ गयो है। इणमें राधा रै विरह नै घणौ महत्व दियो गयो है। निम्बार्क जीव अर ब्रह्म रै सम्बन्ध नै लैय’र ‘द्वैताद्वैत सिद्धान्त’ रो प्रतिपादन करयौ है। इणारै मत सूं परमार्थ अेक भी है अर परब्रह्म रूप में अनेक है। इणा सगुण, सर्व व्यापी, साकार-ब्रह्म री कल्पना प्रस्तुत करी है। बै प्राकृत दोसां सूं पूरण उन्मुक्त अर कल्याण-गुणां रो अमर कोस है। परमात्मा ही परब्रह्म, नारायण, पुरुषोत्तम, पूरण पुरुस अर भगवान क्रिस्सन आद संज्ञावा (नाम) सूं जाणीजै है। अै भगतां खातर भगवान रै पदारविन्दां री उपासना रै अलावा कोई दूजो साधन ही नीं मानै। क्रिस्सन ही पूरण ब्रह्म है, जिणरी वंदना ब्रह्मा, विष्णु अर महेस करै है। उणारी अणपार सक्तियां है। भगती सूं ही क्रिस्सन प्राप्त व्है सकै है। जिणामें ‘शांत’, साख्य, दास्य, वात्सल्य अर उज्ज्वल रूपां रो विधान है। सर्वेश्वर क्रिस्सन है अर राधा उणारी आह्लादिनी सगती है। उणारौ रुप क्रिस्सन रै अनुकूल ही है। विस्णु अर लिछमी री कल्पना ही इण परम्परा में क्रिस्सन अर राधा री कल्पना रै रूप में देखण नै मिळै है। ‘द्वैताद्वैत सिद्धान्त’ पूरण प्रेम माथै आधारित अनुरागात्मिकता परा-भगती रो संतरो रूप है। इण सम्प्रदाय में ‘रस रूप’ क्रिस्सन रो ही है। वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न अर अनिरुद्ध उणारा
ही स्वस्थ दूजा रूप है। क्रिस्सन री अस्टयामी मानसी सेवा नै अठै घणी मानता मिळी है। चैतन्य अर गौङीय सम्प्रदाय में भी क्रिस्सन सगळी जगां व्याप्त सर्वसर्वेश्वर है। बै सगळी मानतावां रा प्राण वल्लभ है। राधा पूरण सगती अर क्रिस्सन री आखिरी साधना रो पूरण तत्व है। निम्बार्क रा गोपी-क्रिस्सन अर राधावल्लभ रा क्रिस्सन रा अवतारी रूपां रो गुणगान करै है अर क्रिस्सन रो रसात्मक रूप अठै घणखरौ अभिव्यक्त व्हीयो है। निम्बार्क रै मत में जीव अर जगत रो ब्रह्म सूं सम्बन्ध द्वैत
भी है अर अद्वैत भी है। ‘दशश्लोकी’ रै भाष्य में हरिव्यास दैव इण बाबत कैवै भी है-

‘‘एकमेव ब्रह्म विज्ञानरूपं वस्तुतः सर्वाकारम्।
जीव ब्रह्मणोर भेदेउपि वैलक्षण्य व्यवहारोडवतारारिणोरिव।
नित्यास्तेन न क्वापि वाक्यव्याकोपो भक्ति सिद्धिश्च।
न च साधूर्यम्।।’’

निम्बार्कचार्य रै नाम सूं संघ प्रचलित ‘राधाष्टक’ में पढण वाळा नै ओ फळ बतायो है कै इणनै पढ’र क्रिस्सन धाम वृन्दावन में, युग्म सेवानुकूलता, सखी मूरत धार’र नित्य (रोज) निवास करै है-

‘‘सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलताः।’’

क्रिस्सन री सगती अचिंत्य अर अणपार है। बै ‘ऐस्वर्य’ अर ‘माधुर्य’ दोनूं रा आश्रय है। रमा, लिछमी अर भू सगती उणारै ऐस्वर्य रूप री अधिस्ठात्री है, अर गोपी-राधा उणारै प्रेम अर माधुर्य री अधिस्ठात्री है। जीव मात्र भगवान में व्याय है अर सर्वदा भगवान रै अधीन है। जीव अनन्त है। ब्रह्म अंसी है अर जीव अंस है। इण खातर वै सदैव भगवान रै अधीन है-

‘‘सर्वेश्वरस्य हरेरंशोज्यमतो हरे अधीन मित्यर्थः।’’

श्री हरिव्यास दैव परब्रह्म भगवान क्रिस्सन रै दो रूपां रै मुजब, भगवान रै लोकादि प्राप्ति री भुगती भी
दो तरै सूं होवै है-‘ऐश्वर्यानंद’ अर ‘सेवानंद प्रधान’। प्रेम भगती इण सम्प्रदाय में पांच भावां सूं पूरण कैयी गयी है-शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य अर उज्ज्वल। सार – निम्बार्क सम्प्रदाय री क्रिस्सन भगती भावना में प्रेमा भगती, नवधा भगती, माधुर्य रा गुण घणा रैया है। इण भगती भावना में क्रिस्सन रो रसात्मक रूप घणौ सामी आयो है। इण सम्प्रदाय में राधा-क्रिस्सन रै पति-पत्नी संबंधा नै भी स्वीकार करै है।

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