भक्ति साहित्यराजस्थानी भाषा एवं साहित्य

भगती पद्धति के बारे में बताओ(800 – 1700 ई.)

भगती पद्धति

भगती पद्धति : भगती आन्दोलन आखै भारत रो आन्दोलन हो। ओ आन्दोलन देसी भासावां रै माध्यम सूं गाँव रै लोगां तक पूग्यो। इणसूं ब्राह्मणां रै अेकाधिकार नै चुनौती मिली अर भोळै भाळै लोगां नै बतायो गयो कै भगवान रै सामी सगळा मिनख बरोबर है।

ऊँच, नीच, जात-पाँत आद रा बाङा मिनख रा बणायोङा है। इण सूं जन जागरण हुयौ। ओइ ज भगती मारग आगै चाल’र निरगुण अर सगुण साखावां में बंटग्यौ। हालांकै ओ भेद जितरो है आज बीतो
उण समै कोनी हो।

भगती पद्धति : निरगुण भगती

भगती पद्धति

मध्यकालीन संत परम्परा में संतां जिण वाणी री रचना करी उण नै निरगुण काव्य कैयो जावै। अे संत
मायातीत ब्रह्म नैइ आपरो साध्य मानता। इणां रो कैवणो हो कै ब्रह्म माया रै तीनूं गुणां (रज, सत अर तम) सूं
परै है इण कारण बो निरगुण है। संत स्तुति या साधना में लिखता अर बोलता, ओ संत काव्य रै नावं सूं जगचावो
हुया ।

साहित्य में इण परम्परा रो विकास उपनिसदां, सूफियां वैस्णवां, योगियां अर इस्लाम सूं हुयौर्। ओ इ ज
कारण है कै इण परम्परा में दरसण, साधना, अध्यात्म, उपासना आद सगळो कीं मिलै पण इण रै बावजूद इण
नै किणी दायरै या बाद में नीं बांध्यौ जा सकै।

इण परम्परा रो उद्देस्य हो परमात्मा सूं अळगी हुयेङी बीं रो ही अंस आत्मा नै दुबारा परमात्मा सूं मिलाणो। इण कारण बां योग साधना, उपासना, श्रद्धा, प्रेम आद सगळां रो सहारो लियौ। अे संत परमात्मा नै निराकार, अजन्मो, अविनासी अर हमैस रैवण वाळो मानता।

इण कारण उण रो रूप आकार किण भांत हो सकै ? बो अजर अमर है तो उण रो जलम किण भांत हो सकै ? बीं नै पावण खातर सगळा बारै रा उपाय बेकार है। बो मन अर वाणी रो विसय कोनी। बो इन्द्रियातीत है। उणनै तो संत खुद री लगन, श्रद्धाभाव अर प्रेम रै बलबूतै ही पाय सकै। इणीज कारण संतां बाहरी आडम्बरां रो विरोध कर स्वानुभूति पर जोर दियो।

निरगुण भगती भी दो साखावां में बंटगी – एक ज्ञान मार्गी अर दूजी प्रेम मार्गी।

निरगुण भगती पद्धति : ज्ञान मार्ग


संतां रै बढया जीवण-दरसण रा सूत्र शंकराचार्य रै अद्वैतवाद सूं जुङेङा है। शंकराचार्य रै चिन्तन री विरासत नै लैय’र रामानुजाचार्य आगै बढया। बांरा चेला स्वामी रामानन्द इण परम्परा नै आगै बधाई।

भगती पद्धति

रामानन्द रा भगत निरगुण अर सगुण दोनुवां नै मानणवाळा हा। निरगुण भगती रै विकास रै मूळ में अवतारवाद री उपेक्षा ही। देस में अैङै लोगां री तादाद घणी इ ही जिणा पर नाथपंथी योगियां रो प्रभाव हो। बां रै मन में प्रेम भाव अर
भगती रस री कोई जागां कोनी ही।

इस्लाम रै माध्यम सूं भारतीय चिन्तन पर अेकेस्वरवाद रो प्रभाव भी पङ्यो, जको अवतार वाद या सगुण परमात्मा नै कौनी मानतो। इणा लोगां र्तांइ निरगुण ब्रह्म री उपासना इ जादा ठीक ही। इण ज्ञान मार्ग रो प्रचार-प्रसार बां लोगां में हुयौ जकां नै आज तक धरम में भागीदार कोनी बणाया गया हा। दबयौङा अर अलग थलग लोगां में आत्मगौरव रो भाव जगायो। इण पंथ में जात पांत रो कोई भेद कोनी हो।

‘हरि को भजे सो हरि को होई’ कैय’र मिनख मिनख नै बराबरी रो दरजो दियौ गयौ।

ज्ञान मार्ग में अद्वैतवाद नै आधार बणा’र योग साधना, गुरू री महिमा, नाम जपणो अर आचारण सुद्धि पर जोर दियो गयौ। बाहरी आडम्बर जिणमें बरत, तीरथ, मूर्ति पूजा आद री आलोचना करी र्गइ । निरगुण धारा नै आगै बधावणै में महारास्ट्र में नामदेव रो नाम प्रमुख है।

उत्तरादै भारत में रामानन्द रै पछै बां रा बारह चेला अर कबीरदास इण मार्ग नै आगै बधावणै में घणो अर महताऊ योगदान दियो। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल रै मुजब तो ज्ञान मार्गी रै संतां में कबीर, रैदास, नानक आद दो-च्यार र्में इ व्यक्तिगत अनुभूति री गैराई अर नुंवोपण हो बाकी सब में पिस्ट पेसण मिलै।

ज्ञान मार्गी संतां री सूची घणी लाम्बी है। कठैइ संतां खुद रा पंथ भी चलाया जिणा रा मूल सिद्धान्त भी हा। दादूदयाल, सुंदरदास, मलूकदास, लालदास, सेन भगत, पीपा, धन्ना, जांभो जी, हरिदास निरजंनी, सिख गुरू परम्परा, बाबा लालदास, सदना अैङा संत कवि हुया है, जिकां री वाणी आज भी लोक मंगळ रो संदेस दैवै। अे संत ‘कानन सुनी’ रै बजाय ‘आँखन देखी’ पर जादा जोर देंवता इण कारण आं री वाणी मैं इमानदारी अर साफगोई साफ झलकै।

निरगुण भगती पद्धति : प्रेम मार्गी


मध्य काल सूं पैली इ साहित्य में अेक अैङी परम्परा री सरूआत हुई जिण नै ‘प्रेम मार्गी (सूफी) साखा’, ‘प्रेम काव्य’, ‘प्रेम कथानक काव्य’, ‘प्रेमाख्यान काव्य’, ‘सूफी काव्य’ आद अनेक नांव दिया गया। असल में नाम इण बात कानी इसारो करै कै आं काव्या में प्रेम विसय नै प्रमुखता दिरीजी है। ज्ञान मार्गी संतां जिण भांत परमात्मा सूं मिलणै तांई ज्ञान अर भगती साधना री राह बताई उणी भांत परमात्मा सूं मिलणै तांई प्रेम री जरूरत बताई । इणा री रचनावां में परम्परागत भारतीय सिणगार भावनां रै बजाय सुछन्द प्रेम री थापना करीजी है।

इणी’ज कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल इण परम्परा नै विदेसी मानली। रामचन्द्र शुक्ल ‘रामायण’ में वर्णित प्रेम नै
आदर्स मानै, इण कारण सूफी काव्य रा प्रेम नै विदेसी बता दियौ।

अठै आ बात ध्यान राखणै जोग है कै भारतीय काव्य में भी सुछन्द प्रेम इ है। इणीज भांत ‘क्रिसन-रूकमणी’, ‘राधाक्रिसन’, ‘नळ – दमयन्ती’, ‘उसा-अनिरूद्ध’ आद री कथावां में सुछन्द प्रेम रोई तो बरणाव है। प्राचीन भारतीय वाङ्गमय रो अध्ययन करयौ जावै तो आ बात सामी आवै कै प्रेमाख्यान काव्य परम्परा भारतीय परम्परा रो इ बिगसाव है। हाँ ! आ बात भी मानणै जोग है कै इण परम्परा नै समै-समै पर बीजी परम्परावां भी प्रभावित करती रैयी जिणसूं वांरी कैई बातां अपणाई गई।
आं काव्यां री विसेतावां रामचन्द्र शुक्ल इण भांत बताई है –

Online References

Wikipedia : Bhakti

Related Articles

error: Content is protected !!